अनुनाद

अनुनाद

यह नोट तो तुम्हें वोट के बदले मिला है – पंकज चतुर्वेदी की नई कविताएं

प्रतिरोध और बहस की सुन्दरता पंकज चतुर्वेदी के सौम्य और सादे लहजे में जिस तरह निखरती है, उसे जानना, समकालीन कविता में कला के संघर्ष को जानना है। आज की कविता पर विचार करते हुए प्रगतिशीलता जैसे चलन से बाहर हो चुके शब्द को पंकज एक नया मूल्य और एक नई रोशनी प्रदान करते हैं। समकालीन संकटों और उनसे हमारे बेेबस समझौतों के बीच पंकज की ये नई कविताएं हम हासिल कर पाए हैं और इनके लिए कवि के आभारी हैं। इस पढ़त के लिए पाठकों से जो मेरा अनुरोध है, उसके लिए मैं एक अटूट याद और यक़ीन की तरह वीरेन डंगवाल के ये शब्द इस्तेमाल कर रहा हूं – 
ज़रा
सम्भल कर
धीरज से पढ़
बार-बार पढ़
ठहर- ठहर कर
आँख मूंद कर
आँख खोल कर.
***
इमरजेंसी
इमरजेंसी भी लौटकर
आती है इतिहास में
कहती हुई :
मैं वह नहीं हूँ
जिसने तुम पर
अत्याचार किये थे
इस बार
मैं तुमसे
करने आयी हूँ
प्यार
***

 

पूर्ण बहुमत 
जब पूर्ण बहुमत
दिया जाता है
तब सरकार
पूर्णता से
काम करती है :
पूर्ण उपेक्षा
पूर्ण अत्याचार
दोस्तो,
पूरे मन से
इसे करें
स्वीकार !
***

 

यह नोट

 पहले कभी-कभी
कोई ऐसा नोट
मुझे मिल जाता था
जिसे परखकर
दुकानदार कहते थे
कि नक़ली है

अब वे कहते हैं
कि नक़ली तो नहीं है
पर चलेगा नहीं
क्योंकि यह नोट तो
तुम्हें वोट के
बदले मिला है
***

 

तुम्हारी मेहरबानी
कॉर्पोरेट घरानों का
अरबों रुपये क़र्ज़
माफ़ करने से
जो बैंक औंधे मुँह गिरे
उन्हें नग़दी के
भारी संकट से
उबारने के लिए
तुमने दो सामान्य नोट
अचानक चलन से बाहर किये
और समूचे अवाम को
मुसीबत में डाल दिया
यों छोटे कारोबारियों, बिचौलियों
और जालसाज़ों से
जो हासिल होगा
काले धन का
कुछ हिस्सा
वह उस घाटे की
भरपाई के लिए
जो कॉर्पोरेट घरानों पर
तुम्हारी मेहरबानी का
नतीजा है
और जब कोई पूछता है :
यह अराजकता, तकलीफ़
और अपमान
हम किसके लिए सहते हैं
तो तुम कहते हो :
देश के लिए
जबकि सच यह है
कि पूँजीपतियों का सुख
और जनता का दुख
जिस कारख़ाने में
तुम बनाते हो
उसका नाम तुमने
देशभक्ति रखा है !
***

 
उन्हें यह कल्पना नहीं थी

लोग यह जानते थे
कि बीते पच्चीस बरसों में
तीन लाख किसानों की तरह
ऋणग्रस्त होने पर
आत्महत्या करने से
बचाने उन्हें
कोई नहीं आयेगा
भारत विभाजन से लेकर
गुजरात दंगों तक के उदाहरण से
लोग यह जानते थे
कि साम्प्रदायिकता के चलते
उन्हें कभी भी मारा जा सकता है
कश्मीर को लेकर
अगर युद्ध हुआ
तो लोग यह जानते थे
कि पड़ोसी देश की
आकस्मिक बमबारी में
उनकी जान जा सकती है
इसी तरह बाढ़, भूकंप,
अकाल
बीमारी, दुर्घटना सरीखे
मृत्यु के हज़ार हाथ हैं
लोग यह जानते थे
मगर उन्हें यह कल्पना नहीं थी
कि अपनी ही चुनी सरकार के
व्यवहार से
बैंकों में अपने ही जमा
पैसों को पाने की कोशिश में
असमाप्य-सी क़तार में खड़े-खड़े
असंभव इंतिज़ार में
एक दिन उन्हें मरना पड़ेगा
***

 

शासक की रुलाई
अगर
शासक रोने लगे

तो जनता सोच में
पड़ जाती है
कि आख़िर 
गुनहगार
कौन है !
 
***

 

कसौटी

किसी
राज्य की

नृशंसता जाँचनी हो
तो देखो :
उसकी पुलिस
कितनी कायर है
***

 

सत्यमेव जयतेमार्ग

 शुरू में उसने
ख़ुशी ज़ाहिर की :
अब भारत धार्मिक राज्य
बनने की ओर बढ़ चला

मगर मैंने कहा :
संविधान में तो
पंथनिरपेक्षलिखा है
उसने जवाब दिया :
उसका मतलब
धर्मनिरपेक्षनहीं
और अगर है भी
तो यह तो
तभी तक लिखा है
जब तक हम उसे
लिखा रहने दें
फिर मैंने बात बदली :
संविधान में भारत को
समाजवादीलिखा है
वह बोला : यह एक
विदेशी विचारधारा है
देश का विकास
पूँजी के बग़ैर
नहीं हो सकता
जो महाजनों के
पास है
लोकतंत्र का सबक़ है :
महाजन जिस राह जायें
वही पन्थ है
फिर उसने सहसा
नाराज़ होकर कहा :
लिखा तो जगह-जगह
सत्यमेव जयतेभी है
पर सत्य की जीत
हो कहाँ पायी ?
हम इसी अभियान में लगे हैं
और अगर जज
और पत्रकार मदद करें
तो यह लक्ष्य हम पा लेंगे
***

 
इतिहास में कभी-कभी

इतिहास में कभी-कभी
विपक्ष भी सत्ता में होता है
ज़्यादा सही यह कहना होगा
कि उसकी उप-सत्ता रहती है
उप यानी जो पास में हो
और हूबहू प्रधान न हो
बल्कि उसके जैसा हो
जैसे अध्यक्ष के पास जो रहे
वह उपाध्यक्ष होता है
वैसे ही विपक्ष होता है
***

 

बधाई हो 
कारण
वही हैं
मगर कश्मीर में
पहले कभी इतनी
दहशत नहीं थी
न इज़रायल की
दमन-शैली में
लोग अंधे
किये गये थे
न उनके हाथ में
थे पत्थर
और न ही
देश की सीमा पर था
ख़ून-ख़राबे का
यह मंज़र
अब यही
सामान्य जीवन है :
युद्ध न हो तो भी
युद्ध के हालात में
उसकी मानसिकता में
रहना है
राजसत्ता ने
साबित किया है :
पुराने कारणों से
नये कार्य
पैदा किये
जा सकते हैं
नये महाराज को
बधाई हो !
***

 

रौशनी
उतनी ही
 
जन-शक्ति निर्भर
नहीं किसी पर
वह बिजली की
तीक्ष्ण रेखा-सी
तड़पती है
दुर्दिन के घुमड़ते
घन घमंड में
रौशनी उतनी ही है
जितनी जनता ने
संभव की है
राजसत्ता ने जो
पैदा किया है अँधेरा
उसके बावजूद !
***

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