अनुनाद

पाकिस्तानी कविता में स्त्री तेवर- दूसरी कड़ी

हम गुनहगार औरतें किश्वर नाहीद

ये हम गुनहगार औरतें
जो अहले-जुब्बा की तमकनत से
न रोआब खोयें
न जान बेचें
न सर झुकायें
न हाथ जोड़ें
ये हम गुनहगार औरतें हैं
के: जिनके जिस्मों की फसल बेचें जो लोग
वो सरफ़राज़ ठहरें
नियाबते-इम्तियाज़ ठहरें
ये हम गुनहगार औरतें हैं
के: सच का परचम उठा के निकलीं
तो झूठ से शाहराहें अटी मिली हैं
हर एक दहलीज़ पे
सज़ाओं की दास्तानें रखी मिली हैं
जो बोल सकती थीं, वो ज़बानें कटी मिली हैं
ये हम गुनहगार औरतें हैं
के: अब ताअकुब में रात भी आये
तो ये आंखें नहीं बुझेंगी
के अब जो दीवार गिर चुकी है
उसे उठाने की ज़िद न करना
ये हम गुनहगार औरतें हैं
जो अहले-जुब्बा की तमकनत से
न रोआब खोयें
न जान बेचें
न सर झुकायें, न हाथ जोड़ें.
 
(अहले जुब्बा- मजहब के ठेकेदार, तमकनत- प्रतिष्ठा, सरफ़राज़ – सम्मानित, नियाबते-इम्तेयाज- सही गलत में फर्क करने वाला, ताअकुब- तलाश में )
 
जारी…

0 thoughts on “पाकिस्तानी कविता में स्त्री तेवर- दूसरी कड़ी”

  1. ब्लॉग बुलेटिन टीम की और रश्मि प्रभा जी की ओर से आप सब को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ |

    ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/03/2019 की बुलेटिन, " आरम्भ मुझसे,समापन मुझमें “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !

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