
असल के पीछे का असल अकसर ख़ामोश खड़ा रह जाता है – अर्चना गौतम ‘मीरा’ की कविताऍं
प्रेम – 1 अत्यंत बलवती थी उसकी इच्छा जीवन वरण की डस गया तभी प्रेम पिघला वाहिनियों में पीड़ा का स्वेद
प्रेम – 1 अत्यंत बलवती थी उसकी इच्छा जीवन वरण की डस गया तभी प्रेम पिघला वाहिनियों में पीड़ा का स्वेद
। एक । कबसे किसे जप रहा जल कल कल कल कल ।। । दो । पहाड़ पार जाते आते आधी
अपना एक कोना एक स्त्री! अपने आस पास, सब कुछ रचती है बड़े इत्मीनान से ख़ाली मकान को बंजर ज़मीन
मैं न आऊं लौटकर तो मैं न आऊं लौटकर तो तुम गॉंव के जवानों के पॉंव की माटी की जरा सी
(एक) नदियां अपना रास्ता मांग रही थी जंगल अपनी जमीन मांग रहे थे पहाड़ अपनी प्रकृति मांग रहे थे
| नीलकंठ | अध्यापकों की मार से हमें कौन बचाता था ? एक ही रास्ता था मार से बचने का घर
सँभालने की कला चीजें जब एक के बाद एक आती हैं तोअपनी जगह बनाती जाती हैंराख हो फूल हो कागज़ हो
पहाड़ी औरतें आँखें छलकी ही रहती हैं उबाल पर रहता है कलेजा उनका पहाड़ी औरतें एक बड़े दरख़्त की मानिंद झुकी
माँ बेटियों ने माँ को सिर्फ माँ समझा कभी लड़की क्यों नहीं क्यों नहीं समझा उसके भी सपने रहे होंगे उनकी
वन्दे भारत वन्दे भारत बरेली में बैठते ही बंद हो गए कोच के दरवाज़े भीतर एक महिला की आवाज़ गूँजी अगला