
भूपेन्द्र बिष्ट की कविताओं का अनुवाद / ललित मोहन
प्रेम का लिखा जाना सबसे कठिन हर आदमी के भीतर एक उपन्यास होता है जिसे लिखते हैं दूसरे लोग और इतने
प्रेम का लिखा जाना सबसे कठिन हर आदमी के भीतर एक उपन्यास होता है जिसे लिखते हैं दूसरे लोग और इतने
पौ भरि याँ इ काँ इ धार पार तुमरि फाम धरि छु जेठक सैव ह्यूण क निमैलि सुर्जजसि चौमासकि घोघ जसि
गुरूत्वाकर्षण न्यूटन जेब में रख लो अपना गुरूत्वाकर्षण का नियमधरती का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो रहा है । अब तो इस गोल-मटोल
आङ्-आङ् चिचैल है गो ! आङ्-आङ् चिचैल है गो ! हिकौ-हिकौ कुकैल है गो । मुखां-मुखां म्वडैन फोकी गे । पौन-पाणी
पहाड़ का मसाण ऊ मुकूं फाटी दाड़ीम वाई चे रो छी निसवास छी वी आंखम् एक विश्वास छी वी आंखम् उन
बुढ्या ह्वैगी पैली नी जागदी थै माँ अधरातीम मेरा पिताजी बणौंदा था चाहा सुबेर्योंकी दींदा था हम सब्युंक चाहा की प्याली
वोडु वोडु जमीन मां पढ़न सि पैली पड़दू दिलूँ मां अर वै हि वोडो छाप पड़दू जमीन पर अर जब
मोहनि दूर्गून धार* ठंडी बयाल वालि धार उ धार पलतर छिड़ा* मलतर दुरगूण* हूण लागिरौ बिरालू पोथ जै मोहनि दुरगूण।
अहसास चोटी में चढ़ने के बाद नीचे उतरना शायद धरा में खड़े रहने के लिए जरूरी है इसीलिए चोटी अन्त भी
यहीं तो था यहीं तो था अज्ञात कूट संकेतों के अप्रचलित उच्चारणों में गूँजता तुम्हारी मौलिक हँसी का मन्द्र अनुनाद यहीं