अनुनाद

कविता

उलटबांसियों से पगा है यह क्षणिक जीवन/मंजुला बिष्‍ट

   सखी-संवाद     एक सधन्यवाद पत्र सखी!जितना समझी हूँ अब तलकसंसार में सुख-दुःख की आदी परम्परा रही है,सुख अपने भीतर गिरकर उन्मादी होते

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सदा से ही तमाम जीवनों के लिए अपना जीवन जीती रही है इजा/   गिरीश अधिकारी  की कविताऍं   

     लेसू रोटियां      उनदिनों जब  इजाके पास मडुवा था  औरमेरे पास थी एक जि़द कि गेहूँकी ही रोटी खानी है  तबपदार्पण

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