
धन्ना का खोखा और 2003 का विश्व कप – देवेश पथ सारिया
2003 के क्रिकेट विश्व कप के समय मैं सत्रह साल का था। किराए पर कमरा लेकर अलवर में रहता था। वह

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हिन्दी की दशा-दिशा — लिपिका भूषण की प्रचण्ड प्रवीर से बातचीत ******************* लिपिका : आज़ादी के ७७ साल बाद हिन्दी की

“हम छवियों के युग में रह रहे हैं। छवियों के युग में रहने के कारण कलाकृतियों को देखना आसान और मुश्किल

(1) खादी ने किया हिंदी का आग्रह यह बात उन दिनों की है जब मेरा हिंदी अनुभाग तीसरी मंजिल पर था।

मेधा- हिन्दी साहित्य और न्यू मीडिया के संबंध को आप किस तरह देखते हैं? कमलजीत – मेरी समझ से इस दौर

एक आँख कौंधती है (स्त्री केन्द्रित कविताएँ) । विनोद पदरज । प्रथम संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 150 ।



