
ऐसा कहां से लाऊं कि तुझसा कहूं जिसे – शिरीष मौर्य
ग़ालिब नामवर सिंह के बहुत प्रिय कवि रहे। जिस मिसरे को मैं इस लेख का शीर्षक बना रहा हूं, उसका पहला मिसरा है – आईना
ग़ालिब नामवर सिंह के बहुत प्रिय कवि रहे। जिस मिसरे को मैं इस लेख का शीर्षक बना रहा हूं, उसका पहला मिसरा है – आईना
प्रेम का लिखा जाना सबसे कठिन हर आदमी के भीतर एक उपन्यास होता है जिसे लिखते हैं दूसरे लोग और इतने बेहतर तरीके से कि
पौ फूटिन लागि रै छि। लम्बी-काली रातक आन्यर गर्भ भटि एक हसीन-स्वाणी रात ब्यागे छि। सुरजाक घावाड् काल है पछिल छोड़ भैर अपुण पूरी रफ़्तार में दौड़ान
आदमी भले ही खाली हाथ हो उसकी भाषा हमेशा उसके साथ होती है। आज से कई साल पहले जब हमारे बड़े-बुजुर्ग, पिता या दादा पहाड़
जांठि को घुङुर, कै थें कूनूं दुखि-सुखि, को दिलो हुंङुर। (लाठी का घुंघरु (बजता है) मैं किससे कहूं अपने सुख-दु:ख, कौन देगा हुंङुर)। यह कुमाउनी
अछ्यान मी कैं बड़ै सोच पड़ि रूनान। पैली ले कभतै सोचनै छ्युं कि हमरि बोलि क्यै नटी उंणै। हमि आपणि दुदबोलि कैं क्यै भुलण लागि
दुपहरीमै हाड़ गलूनी वालि घाम में उ हिटनमै छि। पाणी तीसलै गालण सुख गिछि। पसीणलै उ पुररी नै गिछि। पसीण पोछान-पोछान उईक धोतिक पाल लै
पौ भरि याँ इ काँ इ धार पार तुमरि फाम धरि छु जेठक सैव ह्यूण क निमैलि सुर्जजसि चौमासकि घोघ जसि यस छु यो पहाड़
गुरूत्वाकर्षण न्यूटन जेब में रख लो अपना गुरूत्वाकर्षण का नियमधरती का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो रहा है । अब तो इस गोल-मटोल और ढलुआ पृथ्वी परकिसी
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