कभी-कभी कौंधती है एक चिंगारी/शैलेन्द्र चौहान
अहा एक था गाँव गाँव में थे लोग कुछ भले कुछ भोले अधिकांश गरीब और विपन्न लहलहाती थी फसलें गाँव सुंदर था
इसी शाह-ए-राह पर चढ़कर /आनन्द मिश्र
द्रुतगामी सड़क सड़क काली हो या भूरी जहां से भी निकलती है स्याह कर देती है इतिहास को और
महाकवि पिंटा/ प्रचण्ड प्रवीर
ना ना ना। कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं थी। कोई पुरस्कार की होड़ नहीं थी। ये कहानी है महाकवि पिंटा की, जो जम्मू में मामूली ट्रक चलाया
ईजा / गिरीश अधिकारी
अरे ईजा! तू तो बहुत दुबली पतली हो गई , क्या हुआ तुझे?” पूरे दो साल बाद दिल्ली से गांव आया दिनेश अपनी पीठ और
मैं नहीं जा रही स्कूल /ओरहान पामुक/ अनुवाद सिद्धेश्वर सिंह
मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ। मुझे ठंड लग रही है। स्कूल में मुझे कोई भी पसंद नहीं करता। मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ।
एक अख़बार की कहानी/लेखक-ओ.हेनरी अनुवाद -योगेश ध्यानी
सुबह 8 बजे ताजा अखबार ग्यूसेप्पी के समाचार-स्टैंड पर पड़ा था, उस पर अभी भी छपाई का गीलापन था। ग्यूसेपी अपनी आदत के अनुसार दूसरे
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल नहीं है ये एआई की दुनिया/अमित श्रीवास्तव
विज्ञान एक बड़ी सी गेंद है जिसे लपकने के लिए आपके दोनों हाथों की ज़रुरत पड़ती है पर उसे आसमान में उछाल देने के
समाज और संस्कृति
कंग्डाली भाम/ विनिता यशस्वी
कुमाउनी लोक-साहित्य में घुघुत- संजय घिल्डियाल
उत्तम वाग्गेयकार कुमार गंधर्व : रवि जोशी
कविता
बिना माँ के बड़ी होने वाली लड़कियां
कोरियाई कवि कू सेंग की कविताओं का सिलसिला / आठवीं किस्त
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