अनुनाद

राजेश जोशी, महेश पुनेठा और प्रदीप सैनी की कविताओं का अनुवाद / हर्ष काफर

गुरूत्‍वाकर्षण

न्यूटन जेब में रख लो अपना गुरूत्वाकर्षण का नियम
धरती का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो रहा है ।

अब तो इस गोल-मटोल और ढलुआ पृथ्वी पर
किसी एक जगह पाँव टिका कर खड़े रहना भी मुमकिन नहीं
फिसल रही है हर चीज़ अपनी जगह से
कौन कहाँ तक फिसल कर जाएगा,
किस रसातल तक जाएगी यह फिसलन
कोई नहीं कह सकता
हमारे समय का एक ही सच है
कि हर चीज़ फिसल रही है अपनी जगह से ।

पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो रहा है ।

फिजिक्स की पोथियो !
न्यूटन के सिद्धान्त वाले सबक की ज़रूरत नहीं बची ।

पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो रहा है ।

कभी भी फिसल जाती है राष्ट्राध्यक्ष की जबान
कब किसकी जबान फिसल जाएगी कोई नहीं जानता
श्लोक को धकियाकर गिरा देती है फिसलकर आती गालियाँ
गड्डमड्ड हो गए है सारे शब्द
वाक्य से फिसलकर बाहर गिर रहे हैं उनके अर्थं
ऐसी कुछ भाषा बची है हमारे पास
जिसमें कोई किसी की बात नहीं समझ पाता
संवाद सारे ख़त्म हो चुके है, स्वगत कर रहा है
नाटक का हर पात्र ।

आँखों से फिसल कर गिर चुके हैं सारे स्वप्न ।

करोड़ों वर्ष पहले ब्रह्माण्ड में घूमती हज़ारों चट्टानों को
अपने गुरूत्वाकर्षण से समेट कर
धरती ने बनाया था जो चाँद
अपनी जगह से फिसल कर
किसी कारपोरेट के बड़े से जूते में दुबक कर बैठा है
बिल्ली के बच्चे की तरह ।

फिसलन ही फिसलन है पूरे गोलार्ध पर
और पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो गया है !

ओ नींद
मुझे इस भयावह स्वप्न-सत्य से बाहर आने का रास्ता दे 

courtesy : Bhaskar Bhauryal

कुमाउनी अनुवाद 

हगोय यार न्यूटन पल-धर-क आपु गुरुत्वाकर्षण नियम

धरती-क गुरतावकर्षण धीरे-धीरे ख़त्म हूणो रे

हर तरफ़ चिफ़्वपट्ट हगो यार

अब य गोल-मटोल दूनी में, खुट धरणी आसर नी रे गोय

हर चीज़ दन-कीणे

को काँ जाले रड़ल के खबर नेह

माँ क़सम ! कोई के नी कै-सकन

कै पत्त, पाताल जाले छू, य चिफ़्वपन

और हमर बखत-क यई सत्य छू रे

कि हर चीज़ रड़ने आपु जागथें बटी

धरती-क गुरुत्वाकर्षण ख़त्म हूणो रे न्यूटन

कैक जबान कब फिसल जो के पत्त नेहत

क्वींड़, सौव-कठोव 

याँ जाले मनसुप ले चिफ़्वणि

मतलब ! मतलबै-की रगे य दुनी

और उ मतलब ले चिफ़्वपट्ट हेगीं रे

हम्पा अब मतलबैकी भाषा बचगे 

य धरतील आपु गुरुत्वाकर्षणल बड़ाई भोय

जसी इजल सैती पाई भाई नांन तीन

य चाँद ले दुबक बे 

बैठ गो लालानु-क ज्वात भीतेर

बिराऊ पोथिल वाई

पल-धर कौ आपु गुरूत्वाकर्षण-क नियम

धरती गुरुत्वाकर्षण ख़त्म हूणो रे न्यूटन

ओ नीन ! आ

अब तुई मुकु य स्वैण बे भैर निकलण बाट दिखा..

***

पंचेश्‍वर 

पहली बार नहीं दिखाए जा रहे हैं ये सपने 
वे सपनों के सौदागर हैं 
जब–जब पड़ी उन्हें जमीन की जरूरत
वे सपनों के पैकेज लेकर आ गये 
तुम घर के बदले घर मांगोगे 
वे हाँ कहेंगे 
तुम खेत के बदले खेत मांगोगे 
वे हाँ कहेंगे 
तुम जंगल के बदले जंगल मांगोगे 
वे हाँ कहेंगे 
यहाँ तक की तुम नदी के बदले नदी 
तब भी वे हाँ कहेंगे 
तुमसे केवल एन ओ सी में 
दस्तखत मांगेंगे 
जिन्होंने जीवनभर लूटना-चूसना जाना 
वे देश के लिए तुम्हें 
तुम्हारे कर्त्तव्यों के बारे में बताएँगे 
ध्यान रखना 
यही सपने दिखाए थे उन्होंने 
भाखड़ा में 
रिहन्द में 
टिहरी में 
नर्मदा में 
अब तुम्हारे पास आये हैं 
रेडीमेड हैं इनके सपनों के पैकेज 
एक-एक कर निकाल धर देंगे
तुम्हारे सामने 
जैसे कोई कपड़े का व्यापारी थान के थान 
चौंधियां जाती हैं जिन्हें देख आँखें 
वे सपनों के सौदागर हैं 
उन्हें खूब आता है उलझाने का हुनर 
पूछ लेना 
जान लेना 
ख़ोज लेना 
क्या हुआ उनके सपनों का 
जिन्हें तुमसे पहले दिखाए गये थे सपने 
जो आज भी दर-दर भटक रहे हैं 
अपने सपनों की लाश लिए.
 
courtesy : Bhaskar Bhauryal
 
कुमाउनी अनुवाद 

पैल बार ज के दिखाई जानी य स्वैण

उ स्वैणु गलदार छिन

जब-जब पड़ी उनुकू ज़मीन जरवत

उ स्वैणु पैकिज लि भे अ ग्याय

तुम घरक ब्दाव में घर मांगला 

उ होई के द्याल

तुम गाड़-भीड़ा ब्दाव में गाड़-भिड़ मांगला

उ होई के द्याल

तुम धुरक ब्दाव में धुर मांगला 

उ होई के द्याल

याँ जाले कि तुम गाड़ बदाव में गाड़ मांगला 

उ तब ले होई के द्याल

तुम्हू केवल NOC मि दस्तख़त मांगाल

जनूल जीवन भर लूट-खसोट करी

उ देश ख़ातिर 

तुमुकुँ कर्तव्य पाठ पड़ाल

ध्यान धरिया हाँ

यई स्वैण दिखाई उनुल

भाखड़ा में

रिहाँद में

टिहरी में

नर्मदा में

पे अब तुमर मुख थे उड़ई

रेडीमेट छिन उनार स्वैणु पैकेज

एक-एक करभे धर द्याल तुमार मुख थें

जसी कपड़ व्यापारी खोल द्यू 

थानक थान

तुमार आँख़् फ़ाटिया रे जाल

उनकूँ भलीभा उ सौद-पत्त

उ भलीभा जाड़नी बतयूण-बातयूण

सोच लिया 

पूछ लिया 

जरा खोज खबर कर लिया

के हो उनार स्वेणुक

जनुकू तुमे हबे पैली दिखाई स्वैण

जो आज ले दर-दर भटकड़ीय

आपू स्वैणु डानि लि भे

***

स्‍थानीयता 

आसान है करना प्रधानमंत्री की आलोचना
मुख्यमंत्री की करना उससे थोड़ा मुश्किल
विधायक की आलोचना में ख़तरा ज़रूर है
लेकिन ग्राम प्रधान के मामले में तो पिटाई होना तय है।

अमेज़न के वर्षा वनों की चिंता करना कूल है
हिमालय के ग्लेशियरों पर बहस खड़ी करना
थोड़ा मेहनत का काम
बड़े पावर प्लांट का विरोध करना
एक्टिविज्म तो है जिसमें पैसे भी बन सकते हैं
लेकिन पास की नदी से रेत-बजरी भरते हुए
ट्रैक्टर की शिकायत जानलेवा है।

स्थानीयता के सारे संघर्ष ख़तरनाक हैं
भले ही वे कविता में हों या जीवन में।

courtesy : Bhaskar Bhauryal

कुमाउनी अनुवाद 

भौत आसान छू प्रधानमंत्री कु न धरण

मुख्यमंत्री कु जरा मुश्किल

विधायक कु गाई दिण में खत्र तो छू

मगर ग्राम प्रधानक मामूल में

चूटान तय छू

भैर देशाक जंगलू चिंता करण होशियारी छू

हिमालय बर्बादी पे बहस थाड़ करण जरा मुश्किल

ठुल् पॉवर प्लांटक विरोध करण नान बात नी भय

मगर उमें डबल ले बड़ सकनी

आस-पासाक गाड़-गध्यारा बटी बजरी निकालते

टैक्टर-ट्रॉली शिकायत करण में जान ले जै सकें

लोकल-मुद्द हमेशा जानलेवा हुनी दोस्त

अब उ चाहे कविता में हो, या फिर आम जीवन में।

***

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