अनुनाद

भूपेन्‍द्र बिष्‍ट की कविताओं का अनुवाद / ललित मोहन

प्रेम का लिखा जाना सबसे कठिन 

हर आदमी के भीतर एक उपन्यास होता है

जिसे लिखते हैं दूसरे लोग और इतने बेहतर तरीके से

कि जिनके भीतर की कहानी है यह

वह भी मुग्ध हो जाते हैं उसे पढ़ने पर

 

जो पढ़ नहीं सकता 

उसे बता दो कि यह किताब तुम्हारे बारे में है

तो वह भी उसका आवरण देख

एकबारगी होता है मुदित

उल्लसित भी सचमुच

 

अचानक पूछता है कि मेरा नाम क्या लिखा है इसमें

और क्या क्या दर्ज है मेरे बाबत यहां

उसे बताया जाता है इस क़िताब में सब है भईया

वह जो छिपाते हो आप अपनी मेहरारू से

वह भी जो आप खुद से भी नहीं कहते

पर जान जाता है उसे हर जना 

 

वह उदास हो जाता है

कहता है बाबू जी कुछ अच्छा लिखे होते बढ़ियां सा

मसलन, सन भिगोए थे जो तीन रात पहले पोखर में

सही वक्त पर निकाले गए पानी से

या दादा अब भी खुद उठ बैठ लेते हैं और कमली 

फिर से हंसने लगी डेढ़ साल बाद 

 

किताब की चर्चा होती है अदबी दियारे में

साथ में इस गरीब की उदासी और उन पढ़े-लिखों की खुशी

लिखने वाले के लिए एक दूसरे ही मायने में

बोधगम्य होती जाती है

लेखक शुक्र मनाता है भगवान का

अच्छा है जस का तस लिखा नहीं जा सकता 

किसी का प्रेम

 

बस वही उसे निभाता है हर हाल

और छिपाता भी है बड़ी सफाई से

जो करता है प्रेम।

courtesy : Bhaskar Bhauryal

अनुवाद – भौत कठिन हुँ प्रेम लेखण

  हरेक आदिमँक भीतेर एक उपन्यास हुँ

  जैकैं लेखनी दुसर लोग

  और एतु बड़िया भाँतिल

  कि जैक भीतेरेकि कहाणि ह्वीं यौ

  उलै मुग्ध ह्वै जाँ

  उकै पढ़ि बेर

 

जो पढ़ि नि सकन

उकैं बतै दि जाय कि यौ किताब

तुमार बार में छ

तो उलै उ किताबौक रूप देखि बेर

एकबारकी ह्वै जाँ खुशि

हर्ष में भरि जाँ सच्ची

 

अचानक पुछँ म्यौर नाम क्ये लेखि रौ यमैं

और क्ये क्ये दर्ज करि थौ म्यौर बार में याँ

उकैं बतै दि जाँ कि य किताबम सब छ भय्या

उ जो छिपुँ छा तुम अपणि सैणि(पत्नी) हुँ

उलै जो तुम अपुहुँ लै नि कना (कहना)

पर जाणि जाँ उकै हरेक जन

 

उ उदास ह्वै जाँ

कुँछ बाबूजील थ्वाड़ भौल लेखि हुँछि, बढ़िया सि

मान ल्यौ, साण्(जंगली घास) भीजै थौ छि जो तीन रात पैलि खाव में

 सही टैम पर निकालिगो पाँणिम बै

या बुब(दादा) आइ लै खुद उठि बैठि लिनि

और

कमली फिर हँसण लैग्ये डेढ़ साल बाद

 

किताबेकि चर्चा ह्वीं अदबी दियारे में

साथै हि यौ गरीबेकि उदासी और उँ पढ़ी लेखी लोगुँकि खुशी

लेखण वलां लीजि एक दूसर अर्थ मैंजी

सहज ह्वै जीं

लेखक एहसान मनुँ भगवानौंक

ठिक छ, जस क तौस लेखि नि जै सकिन

कैकै प्रेम

 

बस उइ उकै निभूँ हर साल

और छिपुँ लै

भौत बारिक ढंगल

जो करुँ प्रेम ।

***

courtesy : Bhaskar Bhauryal

मां का नाम

बचपन में छिपा दी गई

उसकी तख्ती और दवात

और इस तरह दूर रक्खा गया

उसे वर्णमाला सीखने से

 

बाद में लकड़ी और घास के बड़े बड़े गट्ठर

रख दिए गए सिर पर

ताकि स्वप्न-वय की कोई उमंग उठ न सके

 

यह मां थी मेरी

 

पहले पैरा वाली बात बताई थी 

उसने मुझे एक बार बातों बातों में

दूसरे पैरा वाली बात

मैंने ख़ुद महसूस की

उसके चले जाने के बाद

 

मैं जीवन भर उसका नाम न जान सका

 

एक दिन पिता के सरकारी दस्तावेजों में

“विशना” नाम दिखा मुझे

 

संशय है अब भी

कि वह मां के नाम वाला ‘स’

तालव्य ही ठीक था

या कि होना चाहिए था मूर्धन्य वहां।

courtsey : Bhaskar Bhauryal

अनुवाद – इजौक नाम

नन् छिना में हि लुकै दी गेइ

ऊकि तख्ती और दवात

और यस भाँती अलग रखि गोइ

उकैं वर्णमाल् सीखण बटी

 

बादम्

लकाड़ और घाक ठुल ठुल गढ़ौव

धर दी गोइ उक ख्वर में

ताकि सपनैकि कोइ उम्मीदै न उठ सकै

 

यौ छि मेरि इज

 

पैल पैरा वालि बात बताइ छि

ऊल मैकैं

एक दिन बातुँ बातुँ में

दुसौर पैरा वालि बात

मैल खुद महसूस करि

उक दुँणि बै जाण् बाद

 

मैं उमर भरि ऊक नाम नि जाणि सकि

 

एक दिन बाबूक सरकारि कागजों में

विशना नाम देखी मैकैं

 

शक छ आइ लै

कि इजाक नाम वाल स

तालव्य ही छ या कि हुण चैं दंत्य

या फिर कहिं यौस त नि

कि उ हुनौल वाँ मूर्धन्य ।

***

courtesy : Bhaskar Bhauryal

एलबम 

पहाड़ पर आते हैं

बाहर के लोग गर्मियों में

उनके बच्चे घोड़ा करते हैं किराये का

और चल पड़ते हैं जंगली पगडंडियों पर

 

पहाड़ पर इन दिनों कुछ रेस्त्रां खुलते हैं

जहां उनकी लड़कियां आइसक्रीम खाती हैं

 

पहाड़ के पेड़

बाहर के लोगों के लिए

ठंडी हवा करते हैं

नीला आकाश यहां का खूबसूरती के लिए

जाने कहां से एकाध बादल भी ले आता है सफेद

 

बाहर के लोग

लौटते हैं जब मैदानों की तरफ़

सारा सैर-सपाटा बंद होता है उनके कैमरों में

 

इसके बाद पहाड़

पहाड़ के लोगों के लिए बड़ा सख़्त हो जाता है

बारिश कराता है अथाह

रास्ते बंद हो जाते हैं यहां-वहां जाने के

सर्दी कराता है इतनी

कि लकड़ियां बीनना तक मुश्किल

 

पर इसका कोई दस्तावेज़ नहीं होता

पहाड़ के लोगों के पास

बाहर के लोगों को दिखाने के लिये

 

जैसी उनके पास एक एलबम होती है

सबको दिखाने के लिये।

courtesy : Bhaskar Bhauryal

 

अनुवाद-  एलबम

पहाड़ों में उनी

भ्याराक् लोग गरमी में

उनार नान्

घ्वाड़ करनी किराय में

और चल पड़नी जंगलाक बाटुँ में

 

पहाड़ों में यौ दिनों कुछ होटल खुलनी

जाँ उनार चेली आइसक्रीम खनी

 

पहाड़ुँक पेड़/ भ्याराक् लोगों लीजी

ठंडी हाव करनी

नि‍ल आकाश याँकि खूबसूरति लीजी

जाण काँ बै एकाद बादल लै लियूँ/ सुकिल(सफेद)

 

भ्याराक् लोग/ लौटनि जब मैदानूँ ओर

सारै सैर-सपाट् कैद ह्वै जाँ उनार कैमरूँ में

 

ए बाद पहाड़

पहाड़ाक् लोगुँक लीजी बड़ सक्त ह्वै जाँ

बारिश कर दीं अथाह

बाट् बंद ह्वै जानी याँ- वाँ जणाक्

जाााड़ कर दीं एतुक/ कि लकाड़ बीनण लै मुश्किल

 

पर यैक कोइ दस्तावेज नी हुन

पहाड़ाक् लोगुँक पास

भ्याराक् लोगुँकै देखुणा लीजी

 

जस उनार पास एक एलबम ह्वीं

सबुँकैं देखुणा लीजी ।

***

courtesy : Bhaskar Bhauryal

  पत्थर की दहाड़

एक दिन ऐसा होगा/ अब 

कि मनुष्य चीखना-चिल्लाना छोड़ देगा

तब्दील हो जायेगा

एकदम खामोश और ठोस पत्थर में

 

जम जाएगा नदी के बीचों बीच वह

धारा को दो भागों में बांटेगा फिर

छोटी मछलियां छिपा करेंगी उसकी जड़ में

बड़ी मछलियों से टकरायेगा वह

 

पानी के साथ बहकर आने वाली

घास और पत्तियां

पत्थर के साथ लगकर

झाग बनायेंगी कुछ देर

तब आगे बढ़ेंगी

 

दिन में यूं लगेगा पत्थर

जैसे कोई अपना बदन छुपाता हो वहां

कोई अपना सर उठाता हो जैसे

रात को यूं लगेगा पत्थर

 

एक दिन नदी भी सूख जाएगी

वह पत्थर दहाड़ेगा उस दिन

और उसकी दहाड़ सुनेंगे

धूप में फैले/ आसपास के दूसरे पत्थर

courtesy : Bhaskar Bhauryal

 

अनुवाद –  ढुङेकि दहाड़

एक दिन यौस आल

अब

कि मन्खि चीखण-चिल्लाण छोड़ द्यौल्

बदल जौल्

एकदम खामोश और सख्त ढुङ में

 

जम जौल् गध्याराक् बीचों बीच उ

धार कैं द्वी भागों में बाँटौल फिर

नान माँछ छिप रौल ऊक जड़ में

 ठुल माँछाँहु टकराल उ

 

पाणी दगड़ बग बेर ऊणि वाल

घा और पात

ढुङक् दगड़ि लग बेर

गाज(झाग) बनाल थ्वाड़ देर

तब अघिल हुँ जाल्

 

दिनम यौस लागौल ढुङ

जस कोइ अपण बदन लुकुँ वाँ

कोइ अपण ख्वर उठूँ जस

रात कैं यौस लागौल ढुङ

 

एक दिन गद्यौर् लै सुख जौल

उ ढुङ दहाड़ौल उ दिन

ऊकि दहाड़ सुणाल्

घाम में फैली

अगल-बगलाक् दुसार् ढुङ ।

***

परिचय 

नाम – ललित मोहन ।

स्‍थान – नैनीताल 

कुमाऊँ विश्‍वविद्यालय, नैनीताल  से स्‍नातक, स्‍नातकोत्‍तर और पी-एच. डी. की शिक्षा ग्रहण की है। 

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