
मृत्यु कविताऍं – अरुण देव (समीक्षा- रविभूषण)
‘मृत्यु कविताएँ’ जीवन-विरोधी कविताएँ नहीं हैं – रविभूषण निराला के बाद अरुण देव संभवतः हिन्दी के अकेले कवि हैं, जिन्होंने मरण का
‘मृत्यु कविताएँ’ जीवन-विरोधी कविताएँ नहीं हैं – रविभूषण निराला के बाद अरुण देव संभवतः हिन्दी के अकेले कवि हैं, जिन्होंने मरण का
कवियों का दुःख संसार का कठोरतम जीव मुझे कवि समझ में आता है। देसी भाषा में कहूँ तो बिलकुल ‘कठ करेज’।
विजयदेव नारायण साही का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। वह मूलतः कवि थे। यह अलग बात है कि वह हिंदी आलोचना
विज्ञान एक बड़ी सी गेंद है जिसे लपकने के लिए आपके दोनों हाथों की ज़रुरत पड़ती है पर उसे आसमान
रचनाकारों की दुनिया में अमूमन एक वर्ग ऐसा होता है जो किसी रचनाकार के पहले संग्रह को उसके लेखन के शैशवकाल
मैं सिराज-ए-दिल जौनपुर (SEDJ) की इस समीक्षा की शुरुआत दो स्वीकारोक्तियों के साथ कर रहा हूँ। पहली यह कि मैंने इसे
बहुत ही कम समय में अपनी पहचान बनाने वाले कवि जावेद आलम खान अक्सर अपनी कविताओं में समय से सवाल करते
हिंदी भारत ही नहीं विश्व की एक महत्वपूर्ण संवाद की भाषा है.एक भाषा के साथ यह हमारी अस्मिता और
पुस्तक में‘जिंदगी बुनते थे वो बिखर गए’ एक ऐसा वाक्य है जिसे पढ़ते ही भारत में प्रगति के नाम पर अमूल्य
कैनेडा में वर्षों से रह रहे भारतवंशी व्यंग्यकार धर्मपाल महेंद्र जैन अब वह नाम हो गया है, जिनकी पहचान भारत