जम्मू कश्मीर में हिन्दी कविता और युवा कवि : एक अवलोकन – कमल जीत चौधरी / 03
इस लेख का पहला हिस्सा पढ़ने के लिए यहां और दूसरे के लिए यहां क्लिक करें मजदूरों के जीवन स्तर के
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पहले हिस्से के लिए इस लिंक पर जाएं अशोक कुमार कम लिखते हैं . छपते लगभग नहीं हैं . तीन दशकों
युवा कवि कमल जीत चौधरी से अनुनाद का आग्रह था कि जम्मू-कश्मीर की कविता की पड़ताल करें। उन्होंने एक लम्बा लेख
भीष्म साहनी के नाटकों में शायद “माधवी” ही है जिसकी चर्चा सबसे कम हुई है बावजूद इसके कि वह पौराणिक कथा
गीता गैरोला की संस्मरण पुस्तक की समीक्षा मैं याद को केवल जगह (स्पेस) नहीं मानता और न वर्तमान से पलायन
अनिल कार्की संभावनाओं का एक नाम है और महेश पुनेठा सुपरिचित कवि-समीक्षक। महेश पुनेठा का अनिल के संग्रह पर लिखना सुखद
पृथ्वीराज सिंह को सोशल मीडिया पर मैंने कविता पर उनकी कुछ सधी हुई टिप्पणियों से जाना। कविता की उनकी पढ़त और
मित्रों, उत्तर सदी की हिन्दी कहानी का विकास दुनिया के किसी भी साहित्य में उपलब्ध प्रक्रिया के तहत अपने आप में
इंसानियत के एक समूचे घराने जितना विराट था उनका व्यक्तित्व. कवि, पत्रकार, अध्यापक, दोस्त, पिता, भाई वगैरह तो वे बाद में
मुझे यक़ीन है कि पानी यहीं से निकलेगा गाँव भीतर गाँव बरसों पहले ग्वालियर रेड़ियो के निदेशक ने मुझसे पूछा था,