ग़ालिब की शाइरी पर नीलाभ की टिप्पणी
सौ पुश्त से है पेश:-ए-आबा सिपहगरी कुछ शाइरी ज़रीय:-इज़्ज़त नहीं मुझे ग़ालिब के दीवान को उलटते-पलटते हुए मुझे एक बात महसूस
सौ पुश्त से है पेश:-ए-आबा सिपहगरी कुछ शाइरी ज़रीय:-इज़्ज़त नहीं मुझे ग़ालिब के दीवान को उलटते-पलटते हुए मुझे एक बात महसूस
आशीष मिश्र की ओर से मुझे यह सुखद संचयन प्राप्त हुआ। इसे भेजते हुए आशीष ने लिखा है –”मैंने सुबोध जी
विमलेश त्रिपाठी समकालीन समय के सर्वाधिक संभावनाशील और विश्वसनीय युवा साहित्यकार हैं। उन्होंने हम बचे रहेंगे, एक देश और मरे हुए
कुंवर रवीन्द्र पर कुछ पहले किसी पत्रिका के लिए मैंने एक लेख लिखा था, जो छपा पर मुझसे कहीं गुम हो
हाशिये की आवाजों से भरी मुखर कविता प्रखर पत्रकार व वाम राजनीतिक, सांस्कृतिक संगठनों से लम्बे समय से सक्रिय रूप से
गोविंद माथुर के हाल में प्रकाशित कविता संग्रह ‘ नमक की तरह ‘ को पढ़ना एक प्रीतिकर अनुभव है। भारतीय निम्न
इस समीक्षा का मूल रूप ‘पक्षधर’ में छपा है। यहां इसे संशोधन (समीक्षक के शब्दों में काफ़ी जोड़-घटाव) के उपरान्त पुन:प्रकाशित
‘उधेड़बुन’ हर सजीव प्राणी के अन्दर कभी न कभी अवश्य होती है | छोटे लोगों के पास अपनी छोटी उधेड़बुनें हैं
केशव तिवारी आज के महत्वपूर्ण कवियों में हैं। अनुनाद पर ही प्रकाशन तिथि के क्रमानुसार शिरीष कुमार मौर्य, सुबोध शुक्ल तथा
‘ इधर की कविता का असली चेहरा तो वो है जिसका सौन्दर्य शास्त्र थोड़ा अलग है,अगर इस कविता ने बिना रस,छंद,