हल और हलंत के कवि: अष्टभुजा शुक्ल के कविता संग्रह पर आशीष मिश्र
इस समीक्षा का मूल रूप ‘पक्षधर’ में छपा है। यहां इसे संशोधन (समीक्षक के शब्दों में काफ़ी जोड़-घटाव) के उपरान्त पुन:प्रकाशित
इस समीक्षा का मूल रूप ‘पक्षधर’ में छपा है। यहां इसे संशोधन (समीक्षक के शब्दों में काफ़ी जोड़-घटाव) के उपरान्त पुन:प्रकाशित
‘उधेड़बुन’ हर सजीव प्राणी के अन्दर कभी न कभी अवश्य होती है | छोटे लोगों के पास अपनी छोटी उधेड़बुनें हैं
केशव तिवारी आज के महत्वपूर्ण कवियों में हैं। अनुनाद पर ही प्रकाशन तिथि के क्रमानुसार शिरीष कुमार मौर्य, सुबोध शुक्ल तथा
‘ इधर की कविता का असली चेहरा तो वो है जिसका सौन्दर्य शास्त्र थोड़ा अलग है,अगर इस कविता ने बिना रस,छंद,
(राहुल देव युवा समीक्षक हैं। अभी उन्होंने असुविधा ब्लॉग पर आत्मारंजन के कविता संग्रह पर बहुत सधी हुई समीक्षा लिखी है।
कुछ बहसतलब खरी कविताओं के बीच नीलकमल का दूसरा कविता संग्रह ‘यह पेड़ों के कपड़े बदलने का समय है’ कई दिन
लोकोन्मुख आस्वाद की कविताएं :पांव तले की मिट्टी – आशीष कुमार “ कहा जा रहा है कविता खत्म हो रही
इस अनुक्रम का पहला शोधालेख जितेन्द्र कुमार ने लिखा है, जिसे इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है। अंग्रेजी के
लोक की अवधारणा को बिलकुल नए अध्येता अब मिल रहे हैं। मेरे दो विद्यार्थी जितेन्द्र कुमार और शिव प्रकाश त्रिपाठी इसी
वैद्यनाथ मिश्रा,यात्री या फिर सबसे प्रसिद्ध व लोकप्रिय नाम बाबा नागार्जुन हिंदी एवम् मैथिली साहित्य के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध नाम