अनुनाद

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प्रांजल और वेगवान कविताएं : विमलेश त्रिपाठी के नए कविता संग्रह पर ब्रज श्रीवास्तव


‘ इधर की कविता का असली चेहरा तो वो है जिसका सौन्दर्य शास्त्र थोड़ा अलग है,अगर इस कविता ने बिना रस,छंद, अलंकर, यति,गति,आदि के अपनी पहचान ना केवल बनाई है बल्कि एक ज़ुरूरत की मानिंद मान ली गई है तो ये यूँ ही नहीं है,कविता में कविता होने के लिये ज़रूरी है भेदक वाक्य का होना. ना की उसकी रग रग में कला का होना.अगर कला हो तो इतनी सी हो,कि उसे तलाशने में ही पाठ्क का कलाबोध जाग जाये,एक कविता को मीठी होने की,रसवंती होने की क्या ज़रूरत है भला ,जब वह स्वयम समाज का आइना होने के संकल्प के संग मोर्चे पर बैठी हो.निसंदेह यह संचरित होती है संवेदना से या  फिर अनुभूति से.ये विचार मेरे मानस में तब आए,जब में अपने अनुज् सम  युवा कवि विमलेश त्रिपाठी का कविता संग्रह ‘एक देश और मरे हुए लोग ‘पढ़ रहा था.

विमलेश दरअसल विपुल लेखन के लिये तत्पर कवि हैं.उनकी प्रतिभा में यह शामिल है कि वह जगह जगह पर कविता के बिंदु देख लेते हैं और उन बिन्दुओं को इस तरह से फैला देते हैं की उन्हें जोड़ने पर एक मुकम्मिल भाव चित्र बनता है.ज़ाहिर है यह जागती संवेदना के बिना मुमकिन नहीं,बिना काव्य विवेक के संभव नहीं.बिना अपनी अर्जित भाषा के भी संभव नहीं .पुस्तक के फ्लेप पर डॉ.नामवर सिंह ने उनके बारे में कहा भी है.’.यह कवि अपने भाषिक सरोकार के जरिये अच्छी कवितायेँ लिखने में सफल हुआ है ‘|अगर कवि से ही जाना जाये की उसके लिये कविता लिखने का क्या मतलब है तो वह बताते हैं –

महज लिखनी नहीं होती हैं कवितायेँ
शब्दों की महीन लीक पर तय करनी होती है एक पूरी उम्र
ज़मीं में धसकर कुछ नम  कतरे लाने होते हैं .

कविता संग्रह की कविता को यदि हम जीवन के वैविध्य के आलोक में गुनेंगे तो पाएंगे इनके सरोकार मुक्तिबोध की प्रयोगशील,और प्रगतिशील कविता से मेल खाते दिखाई देते हैं जो एक काव्य परंपरा के विस्तार का आशाजनक पड़ाव है.

एक देश जहाँ मुर्दे लोग सबसे अधिक ताकतवर
जिन्दा लोगों को भेजा जा रहा जेल
चढ़ाया जा राहा सूली पर ,,

मुक्तिबोध को याद करते हुए ही उनकी एक कविता है जिसमे एक अदभुत कवितांश है ..

‘चलो कह रहा हूँ की मेरा नाम विमलेश त्रिपाठी
वल्ड काशीनाथ त्रिपाठी है
और मेरे होने
और ना होने से कोई फर्क नहीं पढना तुम्हे .
   हम जिस वातावरण में जीवन जी रहे हैं वहां सब सुभीता ही सुभीता नहीं है .

पूरे जतन और मेहनत करने के बावजूद मंजिल नहीं मिलती.साधन नहीं मिलते,तो ये ना माना जाये कि ये भाग्य या नियति का खेल है .कम से कम कवि तो इस विचार का हिमायती नहीं होता.वह गुस्सा प्रकट करता  है ,खीजता है क्षुब्ध होता है.यह आवाज़ वस्तुतः कई बेवाशों की आवाज़ होती है.

कुछ भी ना कर पाने की बेवशी के समय में
में तंग आकर लिख रहा हूँ  कवितायेँ
जैसे की बक रहा हूँ  गलियां

ऐसी अनेक वक्रोक्तियों के जरिये विमलेश की कविता अपना मारक असर छोड़ने में कामयाब होती हैं .नागार्जुन ने कभी इस शैली का प्रयोग अपनी कविता में किया और वे नारों की तरह साहित्य जगत में स्वीकार की गयीं .जब कवि जन के हितरक्षक की तरह सामने आता है तो वह कविता के माध्यम से राजनीति की मदद करने की ज़रूरी pahal करता है ,,एक कवि को अंततः अपनी पक्षधर ता  स्पष्ट करना ही होती है ..वार्तोल्ट ब्रेख्त के शब्दों में कहें तो बुरी ख़बर के प्रति सजग रहना ही होता है,दरअसल यह कविता ही राजनीतिक कविता होती है जिसमे प्रतिरोध का स्वर साफ और तेज हुआ करता हैं.विमलेश ऐसा कर रहे हैं..

विमलेश के अंतःकरण की पड़ताल करना एक मुश्किल कार्य है उस से भी अधिक मुश्किल उनकी कविता की रेंज को ठीक ठीक बयां करना क्यूँकि वह चारों  और सोचते हैं.एक ही कविता के अन्तः शिल्प में बहुआयाम दिखाई देते हैं.उनकी कविता में गद्य अवश्य है लेकिन गद्यात्मकता नहीं.उनकी रचना अक्सर  एक आकर्षक  शिल्पमें ढली सन्देश प्रकीर्ण करती हुई कविता होती है. स्वानुभूति को तात्कालिक रूप से दर्ज की गई इस रचना की ताकत ही यही है की वहां नितांत ताजगी होती है.यहाँ पश्चातवर्ती छैनी का कोई काम नजर नहीं आता.विचार् प्रधान कविता ऐसी ही होती है.

भरोसा रखना इस देश के करोड़ों लोगों पर
जो सब कुछ सहकर भी रहते हैं जिंदा
सहेजते हैं एक एक शब्द
और जीते रहते हैं सदियों छोटे छोटे तर्कों के सहारे.

मनुष्य को सबसे अधिक प्रीति, अपने दुखों और सुखों से होती है .अपने दुखों के लिये वह एक हमदर्द की तलाश में रहा करता है.अपनी खुशियों के वक्त उछलता उसका मन चाहता है की कोई निश्छल मिले जो उसकी ख़ुशी में शामिल हो जाये.कोई मिले जो उसके संघर्ष के वक्त उसके कंधे पर अपनेपन का हाथ रखे रहे.यह सब मिलना एक दुर्लभ संयोग ही होता है .परन्तु. एक चीज़ ऐसी है जो मनुष्य के लिये ऐसी शक्ल में उपस्थित होती है वह है कविता..|इसीलिए तो कविता की प्रासंगिकता कभी कम नहीं होती,कवि संयोगवश अनेक स्थितियों को अपनी कविता में कहता है जो सबको अपनी सी प्रतीत होती है.

उन्होंने हर बार मेरी छाती पर छुरियां चलाई
हर एक जगह बेरहमी से क़त्ल किया.
और हर बार  मेरा सच उनकी झूठ को पराजित करता रहा.

विरोधाभासी शब्दों के साथ  कविता का गठन भी विमलेश की एक दीगर खासियत है.में उस से सच बोलता /और उसके पास पहुँचते ना पहुँचते वह झूठ में बादल जाता …./

कविता संग्रह् की अधिकांश कवितायेँ आसां और संप्रेषित होने वाली हैं दिखने में आसान ये कवितायेँ अर्थ निर्मिती के लिहाज से आसान नहीं है.इनमे मनुष्य जीवन की जटिलताओं की बयानगी है.इनमे विद्रूप का चित्रण है इनमे सोजन्य का सन्देश है ,कोमल अनुभूतियाँ हैं,और एक बड़ा सोच है जिसकी उम्मीद एक कवि से ही की जाती है .

इस संग्रह की एक लम्बी कविता ‘पागल आदमी की चिट्ठी’ ध्यातव्य है,इसमें कवि की संवेदना का और कवित विवेक का उच्च स्तर देखते ही बनता है.

पागल आदमी की चिट्ठी में
संविधान नहीं लिखा होता.
इस देश के सबसे बूढ़े आदमी का नाम लिखा होता है.
जिसे किसी सरफिरे ने तीन गोलियां दागीं थीं
और जिसे लोग इस देश का राष्ट्र पिता कहते थे.

संग्रह की कविताओं को पांच  हिस्सों ,इस तरह में,बिना नाम की नदियाँ ,दुख-सुख का संगीत,कविता नहीं ,और ,एक देश और मरे हुए लोग. जैसे उपशीर्षकों में वर्गीकरण पाठक के लिये एक सुविधा ही है.इनमे कवि का अन्तरंग और बहिरंग अलग अलग और एक साथ भी पढ़ा जा सकता है.देखी जा सकतीं है कल्पना शीलता ,भाषा के साथ प्रिय सा खिलंदड पन और, उन अनुभूतियों की साझेदारी जो एक आम आदमी के जीवन से अक्सर गुजरती है.

कवितायेँ क्या हैं …
यदि उस दिन के लिये नहीं हैं
उस झुटपुटे अँधेरे के लिये नहीं हैं
और उस टूटे कोने के लिये नहीं हैं.

पाब्लो नेरुदा की ये पंक्तियाँ कविता होने की कुछ शर्तें निरुपित करती हुई बहुत सी कविताओं की कसोटी भी तय करतीं हैं ..उनमे विमलेश की कवितायेँ भी खरी उतरतीं हैं.क्यूंकि अधिकतर कवितायेँ उस दिन का ही ज़िक्र करतीं हैं,उस अँधेरे के लिये और टूटे कोने के लिये हैं.जो मानवता के लिये बाधा कारक हैं.

पिछले कुछ दशकों में कविता में जो बदलाव आए,उनके लिये आधुनिक परिश्तिथियाँ,बाजारवाद,उपनिवेशवाद,आतंकवाद ,आदि जवाबदार रहे.यही वजह रही की कविता की बनावट और बुनाबट में भी परिवर्तन आया और उसकी पहुँच सौद्देश्य बनी.हलाकि ये बहस भी बनी रही कि,कविता ने छंद से मुक्ति पाकर बहुत कुछ खोया भी है.लेकिन ये बेमानी रही आई. क्योंकि आरम्भ से अब तक कविता बंधन मुक्त   होने की राह पर ही चलती रही है..और आज हमारे पास निराला,मुक्तिबोध,त्रिलोचन,नागार्जुन,कुंवरनारायण ,राजेश जोशी,अरुणकमल,मंगलेश डबराल,कुमार अम्बुज,पवन करन,सहित अन्य समकालीन कवियों की कविता की समृद्ध विरासत है.जिस तरह से युवतम कवियों की दीरघा  में विमलेश की कविता रेखांकित हो रही है,तो एक आश्वस्ति है कि वह इस विराट में अपना ठिकाना बनायेंगे और वो ठिकाना  लंबे समय तक अपने अनूठे सृजन के वास्ते आलोकित  रहेगा.  पर ये भी कहना होगा किइस संग्रह की कविताओं में अगर  विमलेश बाजवक्त उद्विग्नता प्रकट करते हुए,अपने सुख दुःख की अन्तरंग बात करते हुए,गहन चिंता करते हुए कवि लगते हैं.तो कभी कभी सपाट तौर पर भी अपनी बात कहते हुए किसी सौन्दर्य को उसमे जड़ने की कवायद नहीं करते. फिर भी प्रांजल और वेगवान कविता के लिये मुमकिन है विमलेश को कालांतर तक याद रखा जाये.

में जिंदा रहूँगा
असंख्य वर्षों तक
अपने हाथों में स्याही से भरी कलम थामे

संग्रह में  कुछ कवितायेँ और हैं जिन्हें हर एक पढ़कर रोमांचित होगा..’आजी की खोई हुई तस्वीर मिलने पर.,’तुम्हे ईद मुबारक..’’बहनें,’’घर.’’हम बचे रहेंगे.

इस वक्त युवा कविता ने अपनी एक आकाश गंगा की स्थापना अपने मौलिक लेखन के दम पर कर ली है,कहा जा सकता है की विमलेश की कविता उसका ख़ास हिस्सा है.|उनकी आगामी कविताओं के लिये इंतजार किया जाना चाहिए.
***
ब्रज श्रीवास्तव
233,हरिपुरा,विदिशा म.प्र
पिन ;४६४००१
मोब/9425034312

0 thoughts on “प्रांजल और वेगवान कविताएं : विमलेश त्रिपाठी के नए कविता संग्रह पर ब्रज श्रीवास्तव”

  1. ब्रज श्रीवास्तव जी आभार ,आपने विमलेश जी की कविताओं की समग्र समीक्षा की ।विमलेश जी की कवितायेँ यथार्थ परक कवितायेँ है ।
    ब्लॉग पर आना अच्छा लगा ।
    धन्यवाद

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