मैं चुपके से कहता अपना प्यार: जॉन बर्जर
(महाकवि नाज़िम हिकमत की कालजयी कविता यादवेन्द्र जी के सुन्दर अनुवाद में पढ़ने के बाद बारी है जॉन बर्जर के इस
(महाकवि नाज़िम हिकमत की कालजयी कविता यादवेन्द्र जी के सुन्दर अनुवाद में पढ़ने के बाद बारी है जॉन बर्जर के इस
(पिछले दिनों मैंने देखा ऑल जस्टीफाईड छपी हुई, ‘गद्य’ ‘दिखती’ हुई कवितायें वेब पर प्रकाशित होने पर कुछ लोगों को लगा
(यह समीक्षानुमा छोटा लेख अनुनाद पर लगाए जाने से पहले एक-दो पत्रिकाओं में छप चुका है) शैलेय के कविता संकलन पर
“तुषार धवल की कविता ‘काला राक्षस ‘ को पढ़ते हुए मुझे कई बार मुक्तिबोध– खासकर उनकी ‘अँधेरे में’ की याद आई
नेरूदा ने आलोचना को राजगीर का हाथ, इस्पात की रेखा, और सामाजिक तबकों की धड़्कन कहा था। यह आलोचना की जनपक्षधरता
मैं बहुत लंबे समय से चाहता हूँ कि अनुनाद पर अब तक लंबित रहे विचार – विमर्श के पक्ष को किसी