साक्ष्य (विटनेस) की कविता पाठक को रूबरू कराती है उसकी व्याख्या से जुड़ी एक दिलचस्प समस्या से. हम अभ्यस्त हैं अपेक्षाकृत सरल श्रेणियों के: फ़र्क करते हैं “वैयक्तिक” और “राजनीतिक” कविताओं में; पहली श्रेणी से भान होता है प्रेम और भावनात्मक क्षति के गीतों का, और दूसरी इशारा करती है एक सार्वजनिक भागीदारी की ओर जो ज़रूरी होते हुए भी विभाजनात्मक (डिवाइज़िव) है. वैयक्तिक और राजनीतिक के बीच का भेद राजनीतिक क्षेत्र को बहुत अधिक और बेहद कम विस्तार दे देता है; उसी समय वह वैयक्तिक को बना देता है अति महत्त्वपूर्ण और यथेष्ट महत्त्व न रखनेवाला. अगर हम वैयक्तिक के आयाम को तजते हैं तो प्रतिरोध की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण जगह के छूटने का खतरा होता है. वैयक्तिक का सेलेब्रेशन हालाँकि एक मायोपिया दर्शा सकता है; अक्षमता यह देख पाने की कि अर्थव्यवस्था और राज्य की विशाल संरचनाएं अगर व्यक्तिगत के दुर्बल क्षेत्र को निर्धारित न भी करें तो सीमाबद्ध कैसे करती हैं.
हमें एक तीसरे पद की आवश्यकता है, एक ऐसा पद जो राज्य एवं वैयक्तिक की कथित सुरक्षित शरण-स्थलियों के बीच की स्पेस को बयान कर सके. इस स्पेस को हम नाम दे देते हैं “सामाजिक”. उत्तरी अमेरिका के बाशिंदों के तौर पर हम खुशनसीब हैं: हमारे लिए लड़ाइयाँ (अगर हम खुद लड़ने वाले न हों) लड़ी जाती हैं कहीं और, दूसरे देशों में. जिन पर बम बरसाए जाते हैं वे औरों के शहर होते हैं. जिन घरों को ध्वस्त कर दिया जाता है वे घर होते हैं दूसरों के. हम खुशकिस्मत इसलिए भी हैं कि हम मार्शल लॉ के अधीन नहीं रहते, नाम मात्र के प्रतिबन्ध हैं राज्य सेंसरशिप पर, हमारे नागरिकों को देशनिकाला नहीं दिया जाता. अपने सहयोगियों को चुनने और अपनी सामुदायिक ज़िन्दगियों को निर्धारित करने के लिए हम वैधिक एवं न्यायिक तौर पर स्वतंत्र हैं. मगर हमें शायद अपनी सामाजिक ज़िन्दगियों को अपनी पसंद (चॉयस) का प्रतिफल मात्र नहीं मान लेना चाहिए: प्रतिरोध और संघर्ष का एक स्थान है यह सामाजिक, जहाँ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं, कविताएँ पढ़ी जाती हैं और विरोध प्रचारित किया जाता है. ये वह क्षेत्र है जिसमें इन्साफ़ के नाम पर राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ़ दावे पेश किये जाते हैं.
इस सामाजिक स्पेस में कविता को स्थित करके हम अपने कुछेक अवशिष्ट पूर्वाग्रहों को दूर कर सकते हैं. जो कविता पराकाष्ठा की अवस्थिति के दूसरे छोर से हमें पुकारती है, उसका मूल्यांकन “विशुद्धता” (एक्युरसी) और “जीवन सत्य” (ट्रुथ ऑफ़ लाइफ) की सरलीकृत धारणाओं द्वारा नहीं किया जा सकता. उस कविता का मूल्यांकन तो, जैसा कि लूडविग विट्गनस्टाइन ने कन्फेशन के बारे में कहा था, उसके परिणामों के आधार पर करना होगा न कि उसमें निहित सच्चाई को प्रमाणित करने की हमारी क्षमता के आधार पर. वास्तव में कविता हमारे लिए इस बात का एकमात्र प्रमाण हो सकती है कि कोई घटना घटी है: हमारे लिए वह किसी घटना के एकमात्र सुराग (ट्रेस) के तौर पर जिंदा है. वैसे तो कुछ भी नहीं है हमारे वास्ते जिस पर कविता को स्थापित किया जा सके, कोई निष्पक्ष विवरण मौजूद नहीं है जो हमें बताए कि किसी टेक्स्ट को “वस्तुनिष्ठ” सच के तौर पर देखा जाए या नहीं. कविता है सुराग की तरह, कविता है प्रमाण की भाँति.
हमें एक तीसरे पद की आवश्यकता है, एक ऐसा पद जो राज्य एवं वैयक्तिक की कथित सुरक्षित शरण-स्थलियों के बीच की स्पेस को बयान कर सके. इस स्पेस को हम नाम दे देते हैं “सामाजिक”. उत्तरी अमेरिका के बाशिंदों के तौर पर हम खुशनसीब हैं: हमारे लिए लड़ाइयाँ (अगर हम खुद लड़ने वाले न हों) लड़ी जाती हैं कहीं और, दूसरे देशों में. जिन पर बम बरसाए जाते हैं वे औरों के शहर होते हैं. जिन घरों को ध्वस्त कर दिया जाता है वे घर होते हैं दूसरों के. हम खुशकिस्मत इसलिए भी हैं कि हम मार्शल लॉ के अधीन नहीं रहते, नाम मात्र के प्रतिबन्ध हैं राज्य सेंसरशिप पर, हमारे नागरिकों को देशनिकाला नहीं दिया जाता. अपने सहयोगियों को चुनने और अपनी सामुदायिक ज़िन्दगियों को निर्धारित करने के लिए हम वैधिक एवं न्यायिक तौर पर स्वतंत्र हैं. मगर हमें शायद अपनी सामाजिक ज़िन्दगियों को अपनी पसंद (चॉयस) का प्रतिफल मात्र नहीं मान लेना चाहिए: प्रतिरोध और संघर्ष का एक स्थान है यह सामाजिक, जहाँ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं, कविताएँ पढ़ी जाती हैं और विरोध प्रचारित किया जाता है. ये वह क्षेत्र है जिसमें इन्साफ़ के नाम पर राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ़ दावे पेश किये जाते हैं.
इस सामाजिक स्पेस में कविता को स्थित करके हम अपने कुछेक अवशिष्ट पूर्वाग्रहों को दूर कर सकते हैं. जो कविता पराकाष्ठा की अवस्थिति के दूसरे छोर से हमें पुकारती है, उसका मूल्यांकन “विशुद्धता” (एक्युरसी) और “जीवन सत्य” (ट्रुथ ऑफ़ लाइफ) की सरलीकृत धारणाओं द्वारा नहीं किया जा सकता. उस कविता का मूल्यांकन तो, जैसा कि लूडविग विट्गनस्टाइन ने कन्फेशन के बारे में कहा था, उसके परिणामों के आधार पर करना होगा न कि उसमें निहित सच्चाई को प्रमाणित करने की हमारी क्षमता के आधार पर. वास्तव में कविता हमारे लिए इस बात का एकमात्र प्रमाण हो सकती है कि कोई घटना घटी है: हमारे लिए वह किसी घटना के एकमात्र सुराग (ट्रेस) के तौर पर जिंदा है. वैसे तो कुछ भी नहीं है हमारे वास्ते जिस पर कविता को स्थापित किया जा सके, कोई निष्पक्ष विवरण मौजूद नहीं है जो हमें बताए कि किसी टेक्स्ट को “वस्तुनिष्ठ” सच के तौर पर देखा जाए या नहीं. कविता है सुराग की तरह, कविता है प्रमाण की भाँति.
– कैरोलिन फोर्शे, “ट्वेनटिएथ सेंचुरी पोएट्री ऑफ़ विटनेस,” अमेरिकन पोएट्री रिव्यू 22:2 (मार्च–एप्रिल 1993), 17 से.
अच्छा लगा शिरीष. इसे मैं लोगों को पढ़ाऊँगा. बहुत बहुत आभार.
so AUTHENTIC approach..
with such a clearity of thoughts /
made me think…HONESTY in work is collabration of so many aspects.!!
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कई बार "सच्चाई"–चीखती–हुई मिल्ती है /
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देखो…क्सिने, कहा लिखा और कहा कहा पहुच गया !!!!
बिल्कुल सही कहा आपने ……
excellent!