अनुनाद

विज्ञान के दरवाज़े पर कविता की दस्तक- दूसरी कड़ी

प्रस्‍तुति – यादवेन्‍द्र
पूरी कविता और इस पर बहस के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें  …
द पब्लिक एजेंडा के नवम्बर 2010 में प्रकाशित साहित्य विशेषांक में वरिष्ठ कवि राजेश जोशी की एक अनोखी कविता है बिजली का मीटर पढने वाले से बातचीत जो विज्ञान और कविता के बीच की सदियों से लीपपोत कर सुरक्षित खड़ी की गयी विभाजक दीवार का बड़े साहस और अधिकार से अतिक्रमण करती है.जैसा कि शीर्षक से ही जाहिर है यह एक घर में बिजली का मीटर पढने गए एक मुलाजिम और घर के बासिन्दे के बीच एक बातचीत का ब्यौरा देती है.आम तौर पर इस तरह के मुलाजिमों को बातचीत करने लायक नहीं समझा जाता और वे डाकिया ,अख़बार वाले और गैस का सिलिंडर पहुँचाने वाले लड़कों की श्रेणी में आते हैं जिनका काम अदृश्य हवा की तरह चुपचाप बाहर बाहर से ही काम निबटा कर आगे का रास्ता देखने का होता है.मीटर पढने वाला घर में रौशनी पैदा करने के लिए इस्तेमाल की गयी बिजली का हिसाब करता है पर बात इतने से ही नहीं बनती…
“क्या तुम्हारी प्रौद्योगिकी में कोई ऐसी भी हिकमत है
अपनी आवाज को थोड़ा सा मजाकिया बनाते हुए
मैं पूछता हूँ
कि जिससे जाना जा सके कि इस अवधि में
कितना अँधेरा पैदा किया गया हमारे घरों में?
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हमलोग एक ऐसे समय के नागरिक हैं
जिसमें हर दिन मंहगी होती जाती है रौशनी
और बढ़ता जाता है अँधेरे का आयतन लगातार”
सहज बोध की संरचना में न समाने वाले बेधक प्रश्नों से मीटर पढने वाले के चिढने पर कवि सरलता से कहता है:
“मैं अँधेरा शब्द का इस्तेमाल अँधेरे के लिए ही कर रहा हूँ
दूसरे किसी अर्थ में नहीं”
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“ऐसा कोई मीटर नहीं जो अँधेरे का हिसाब किताब रखता हो”
यहाँ मैं अपने पाठकों के साथ साझा करना चाहता हूँ कि अँधेरे को ले कर दुनिया में अलग अलग तरह के वैज्ञानिक अध्ययन किये जा रहे हैं…और जीव विज्ञान और अंधकार के अंतरसम्बन्ध के लिए पिछले दिनों एक नया शब्द भी गढ़ा गया है; स्कोटो बायोलोजी.अब तक के वैज्ञानिक अध्ययन यह बताते हैं कि अन्धकार में लम्बे समय तक रहने से बीमारियाँ (मुख्य रूप में कैंसर और मानसिक बीमारियाँ) ज्यादा होती हैं.नोर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी ने अटलांटिक में जल सतह के आस पास रहने वाली मछलियों पर अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि जब यही मछलियाँ अँधेरी गुफाओं के अंदर जाकर रहने लगती हैं तो उनकी प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है.
हाल में प्रकाशित एक बहुचर्चित शोधपत्र में(जिसका शीर्षक है: Good Lamps are the Best Police) बताया गया है कि अंधकार लोगों में बेइमानी और स्वार्थ की भावना को कई गुणा ज्यादा बढ़ा देता है.यहाँ तक कि काला चश्मा पहन कर भी लोगों के मन में खोट आने लगती है,अनेक व्यक्तियों के साथ किये गए वैज्ञानिक प्रयोगों से यह बात सामने आयी है.
इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में कवि राजेश जोशी का मीटर रीडर से किया गया प्रश्न सम्पूर्ण मानव जाति के व्यवहार को समझने की एक निर्दोष और सोद्देश्य कोशिश है…उनकी इस सार्वभौम सजगता को सलाम.
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0 thoughts on “विज्ञान के दरवाज़े पर कविता की दस्तक- दूसरी कड़ी”

  1. एक पुरानी कविता राजेश जी की हाथ लगी है.. " बिजली सुधारने वाले, हालांकि इसमें और उसमें दशकों का अंतर है लेकिन शायद कुछ गूँज सुनाई पड़े.. मैंने कबाड़खाना पर लगाई है ..

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