
एक देश बारह दुनिया’ रिपोर्ताज के बहाने विकासात्मक विरोधाभास पर एक निगाह/ दीक्षा मेहरा
पुस्तक में‘जिंदगी बुनते थे वो बिखर गए’ एक ऐसा वाक्य है जिसे पढ़ते ही भारत में प्रगति के नाम पर अमूल्य
पुस्तक में‘जिंदगी बुनते थे वो बिखर गए’ एक ऐसा वाक्य है जिसे पढ़ते ही भारत में प्रगति के नाम पर अमूल्य
कैनेडा में वर्षों से रह रहे भारतवंशी व्यंग्यकार धर्मपाल महेंद्र जैन अब वह नाम हो गया है, जिनकी पहचान भारत
ग़ालिब एक सांसारिक कवि हैं। मोह-लिप्त मगर माया-निर्लिप्त। दुनियाबी रंगीनियों को अगर होठों से पीने में हाथ साथ
खेमकरण ‘सोमन’ के कविता संग्रह ‘नई दिल्ली दो सौ बत्तीस किलोमीटर’ में संकलित सभी कविताएँ भोगे हुए जीवन-यर्थाथ की सहज अभिव्यक्तियां हैं। जीवन
पिछले दिनों मेरे किसी मित्र ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर के हवाले से कहा कि गुरुदेव का मत था कि यदि कोई उनसे
गहन निराशा भी ताकतवर होती है
अमित हिन्दी के उन दुर्लभ युवा कवियों में है, जो सिर्फ़ कविता करने का हठ नहीं ठाने रहते, बल्कि उसे समृद्ध
इक्कीसवीं सदी के आरम्भ में हिन्दी में जिन महत्वपूर्ण कथाकारों की आमद हुई है, प्रचण्ड प्रवीर उनमें बेहद ख़ास और अलग
विष्णु खरे हिन्दी कविता के इलाक़े में हुई बहुत बड़ी हलचल का नाम है। कितनी ही उथलपुथल उनके नाम दर्ज़ हैं।