अनुनाद

अनुनाद

आलोचना / समीक्षा

एक देश बारह दुनिया’ रिपोर्ताज के बहाने विकासात्‍मक विरोधाभास पर एक निगाह/ दीक्षा मेहरा

पुस्‍तक में‘जिंदगी बुनते थे वो बिखर गए’ एक ऐसा वाक्‍य है जिसे पढ़ते ही भारत में प्रगति के नाम पर अमूल्‍य

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हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है-  देवेन्द्र आर्य

                                ग़ालिब एक सांसारिक कवि हैं। मोह-लिप्त मगर माया-निर्लिप्त। दुनियाबी रंगीनियों को अगर होठों से पीने में हाथ साथ

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वर्तमान समय की विद्रूपता और विसंगतियों का रेखांकन – दीक्षा मेहरा

खेमकरण ‘सोमन’ के कविता संग्रह ‘नई दिल्‍ली दो सौ बत्‍तीस किलोमीटर’ में संकलित सभी कविताएँ भोगे हुए जीवन-यर्थाथ की सहज अभिव्यक्तियां हैं। जीवन

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