अनुनाद

अनुनाद

हिन्‍दी ग़ज़ल में अंग्रेजी के तत्‍व/डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री

 

 

हिंदी भारत ही नहीं विश्व की एक महत्वपूर्ण संवाद की भाषा है.एक भाषा के साथ यह हमारी अस्मिता और सांस्कृतिक मूल्यों की निशानी भी है.इसके पास एक समृद्ध व्याकरण,भाषा और काव्यशास्त्र तथा अन्य भाषाओं के शब्दों को पचाने की अद्भुत क्षमता है.हिंदी में जो बोली जाती है,वही लिखी जाती है.इसमें साइलेंट शब्द नहीं होते. यह भाषा अपनी प्रमुख बोलियों अवधि,कन्नौजी,बुंदेली,बघेली,भोजपुरी,राजस्थानी,छत्तीसगढ़ी मालवी, नागपुरी मगही,मैथिली और कई देशज तथा विदेशज शब्दों से मिलकर बनी है.इसलिए हिंदी ग़ज़ल का स्वभाव हिंदी भाषा के स्वभाव से मिलता जुलता है. हिंदी गजल महबूब की भाषा है,और एक महबूब की भाषा वही होती है जिसमें किसी भाषा की बंदिश नहीं होती.जो मिठास के साथ जवान से निकल जाए गुफ्तगू बन जाती है.

भाषा के स्तर पर भी गजल ने कई दौर देखे हैं.गजल जब अरबी में थी,फिर फारसी और उर्दू में आई तो उस समय तक यह बोलचाल की भाषा की गजल नहीं थी. उसके अपने कारण भी थे.यह बादशाह के हरम में पली -बढ़ी,इसलिए वहां भाषाई ललित्य से ज्यादा भाषाई ज्ञान और कौशल पर ध्यान दिया गया.

उर्दू में ग़ालिब ने सबसे पहले ग़ज़ल को आम फ़हम शब्दों में लाने की कोशिश की.उनकी गजल पहली बार सल्तनत से निकलकर आम लोगों तक पहुंची, और शायद यही कारण है कि उर्दू गजल में ग़ालिब का मुकाम आज भी काफी ज्यादा है. उन्होंने फारसी की चली आ रही गजल को हिंदुस्तानी जबान में लाने की कोशिश की,और उन्हें नज़्म -उद -दौला जैसा खिताब भी मिला. कहने को ग़ालिब से पहले मीर की शायरी में भी गजल को सहज बनाने का यत्न देखा जा सकता है, लेकिन ग़ालिब की शायरी उनसे ज्यादा आम लोगों से जुड़ती है.उनका एक बड़ा मशहूर शेर भी है-

 हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे

 कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़े -बयां और

 असल में किसी कविता की भाषा उसके कथन और अंतर्वस्तु से बनती है. अज्ञेय कविता के गुण और भाषा के गुण को एक करके देखते थे. कविता की कुछ विधायें व्यंजनात्मक होती हैं तो कुछ में सपाट व्यायनी पाई जाती है.कभी-कभी कवि का मूड भी भाषा को प्रभावित करता है. एक समय में होने के बावजूद मुक्तिबोध,रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती और कुंवर नारायण की कविता के भवबोध में अंतर पाया जाता है.

हिंदी गजल जहां आरंभ से ही भाषा को सरल और सहज करने की कोशिश में लगी हुई है,वहीं आधुनिक हिंदी कवि मानते हैं कि एक ही शब्द,मुहावरे प्रतीक और बिंब कविता में बार-बार प्रयोग होने से अपना अर्थ गाम्भीर्य  खो देते हैं. सच तो यह है की बौद्धिक विमर्श वाली कविता किसी खास व्यक्ति तक सीमित हो कर रह जाती है.हिंदी कविता का इतिहास बताता है कि आम जनता के बीच जिस तरह दोहे और गजल अपनी सहजता और सम्प्रेषणीयता के कारण लोकप्रिय हुए,वह स्थान अलग-अलग भाषा विधान और अमूर्तता के कारण काव्य की अन्य भाषा नहीं ले सकी.

 हिंदी ग़ज़ल में जितने हिंदी के शब्द हैं,उतने ही अन्य भाषाओं के भी,या फिर यूं कहें कि हिंदी ग़ज़ल में जितना भाषा का सवाल है उससे ज्यादा अभिव्यंजना का सवाल है, पर ऐसा भी नहीं कि हिंदी के तमाम गज़लकार और समीक्षक इसके पैरोकार रहे हों. हिंदी ग़ज़ल का एक वर्ग ऐसा भी है जो हिंदी गजलों में शुद्ध हिंदी और संस्कृतनिष्ठ शब्दों में लिखने का हिमायती है. कुछ गजल प्रधान पत्रिका के संपादक भी ऐसे हैं जिन्होंने हिंदी- संस्कृत शब्दों से युक्त शुद्ध ग़ज़ल भेजने का बोर्ड टांग रखा है. असल में गजल लेखन एक स्वतः प्रक्रिया है. उसकी जबान खुद चलकर शायरी के पास आती है,जिसे किसी संश्लिष्ट भाषा में कैद नहीं किया जा सकता. एक कवि या शायर अपनी रचना में जिस विचार को रखता है,वह विचार भाषा के रूप में हमारे सामने आती है. हिंदी ग़ज़ल में कहन , सुख-दुख और तकलीफ में भी आम आदमी की है,तो भाषा में भी उन्हीं के अनुभव, चिंतन- मनन और संवेदनाओं  से जुड़ी हुई है. संसद से सड़क तक के धूमिल जब कहते हैं-

 अधजले शब्दों के ढेर में तुम/

 क्या तलाश रहे हो

 तो वह एक प्रकार से आमजन की भाषा में लौटने का आग्रह करते हैं

 हिंदी ग़ज़ल में उर्दू -हिंदी और लोक भाषा के शब्द ही नहीं हैं, बल्कि ऐसे अंग्रेजी शब्द भी हैं जो हमारी जवान में घुल- मिल गए हैं. ऐसे शेरों में जब अंग्रेजी के वर्ड आते हैं तो उससे शेर की खूबसूरती में और ज्यादा इजाफा हो जाता है. साथ ही अशआर में पुख्तगी भी आती है,और लालित्य भी पैदा होता है. कुछ शेर देखें –

 

 साल चढ़े ही छुट्टी लेकर बैठ गया

 सूरज की अब्सेंट लगाई जाएगी- -अशोक अग्रवाल नूर

 

 मेरे आने की तारीखें बराबर देखती होगी

 वो हर शब सोने से पहले कैलेंडर देखी होगी

ए. एफ नज़र

 

 एक कश लेकर महज़ सिगरेट तुमने फेंक दी

 और मैं बेचैन होकर देर तक जलता रहा

विनय मिश्र

 

 बहुत मिस्टेक होती जा रही है

 मोहब्बत फेक होती जा रही है

एम. ए तुराज़

 

 हमारे कान कोई डस्टबिन हैं 

 जो इनमें फेंक दो बेकार बातें

के पी अनमोल

 

 वक्त के इस शार्पनर में जिंदगी छिलती रही

 मैं बनाता ही रहा इस पेंसिल को नोकदार 

हरेराम समीप

 

अगर आप गौर करें तो इस अशआर को देखकर पाएंगे कि यहां एब्सेंट,कैलेंडर, सिगरेट,मिस्टेक,डस्टबिन जैसे शब्दों से शेर मज़ीद खूबसूरत और दिलकश बन गए हैं. उनकी जगह पर अगर दूसरे शब्द रखे जाते तो शायद यह इतने प्रभावपूर्ण नहीं बनते.

हिंदी भाषा की यही विशेषता है कि यह सगी मां किसी की भाषा से सौतेलापन नहीं रखती, कुछ और ऐसे शेर देखे जा सकते हैं-

 

 खुशी से कांप रही थी यह उंगलियां इतनी

 डिलीट हो गया एक शख्स सेव करते हुए

फहीम बदायूंनी 

 

 मुझे डायवोर्स देकर तू भला क्यों

 मेरी सेहत बराबर पूछता है

हरेराम समीप

 

 कब न जाने लौट कर आ जाए तू ये सोचकर

 इस मकाने -दिल पर चस्पा आज तक टूलेट है

ऩज्‍म सुभाष

 

 वायरस मोहब्बत का बढ़ रहा है तेजी से

 इसके वास्ते भी एक वैक्सीन जरूरी है

फौज़िया अख्तर

 

 बस इस सबब से कि उसमें तुम्हारा अक्स रहा

 मैं आईनों से कई डील करता रहता था

शानुर रहमान साबरी

 

 वह जो सारे शहर का गाइड है 

 उसको अपना पता नहीं मालूम

बशीर बद्र

 यह हिंदी ग़ज़ल में प्रयुक्त अंग्रेजी के ऐसे शब्द हैं, जिसके माध्यम से सच्चाई की तीव्रता और गहराई को समझने में मदद मिली है.इसमें भाषा आरोपित नहीं बल्कि वास्तविक होकर हमारे सामने आई है. हिंदी ग़ज़ल में यह शब्द प्रयोग के तौर पर पहली बार प्रयुक्त हुए हैं , जिसे कविता के योग्य नहीं समझा गया था.नई कविता में जो कुछ अंग्रेजी के शब्द रिपीट होते हैं वह वास्तव में यौन क्रिया से संबंधित ऐसे शब्द हैं जिसे नग्नता छिपाने के लिए प्रयोग किया गया है,पर हिंदी ग़ज़ल में जहां प्रेम का वर्णन है,वहां भी खालिस पाकीज़गी और श्लीलता का होना लाज़िम है. यह ऐसी महबूबा है जिसे बेहियाई और उरयानियत नापसंद  है.

 

ग़ज़ल में मौजूद यह अंग्रेजी भाषा के शब्द समकालीन जीवन की अवस्था की वास्तविकता को मजबूती से रखते हैं.यह ऐसे शब्द हैं जो गजल को स्पष्ट करते हैं ना कि दुरूह बनाते हैं कुछ और शेर मुलाहिजा हों –

 

 अम्न के मुद्दे पर हर भाषण में फोकस भी किया

 किंतु पैने युद्ध के हथियार भी करते रहे

ज़हीर कुरैशी

 

 उसको तालीम मिली डैड- ममी के युग में

 उसकी मां-बाप पुराने नहीं अच्छे लगते

उर्मिलेश

 

 हम तो सूरज है ठंड मुल्कों के

 मूड आता है तब निकलते हैं

विज्ञान व्रत

 

 कहां तुम प्यार के पीछे पड़े हो

 ये दुनिया फास्ट होती जा रही है

ज़ियाउर रहमान जाफ़री

 

 किताबें खोल कर बैठे हैं लेकिन

 रिवीजन बस तुम्हारा हो रहा है

प्रतीक शुक्ला

 

 चाहो तो सारी रात रहो ऑनलाइन तुम

 अब राब्ता नहीं है तेरे लास्ट सीन का

राहुल कुमार

 

 बाद मरने के मेरे तकिये के नीचे जो मिला

 सब सुसाइड नोट समझे थे मेरी ताज़ा ग़ज़ल

अशोक मिज़ाज

 

ग़ज़ल अपने इसी भाषाई समन्वय और लालित्य के कारण लोकप्रिय होती गई.आज मुशायरों का मतलब ही गजल समझा जाने लगा है.एक समय था जब फिल्मों को सफल बनाने में ग़ज़ल की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका थी. असल में गजल जज्बातों का बयान है, और अपने जज्बात को प्रस्तुत करने के लिए भाषा स्वाभाविक तौर पर सहजता से सामने आती है.

 फिराक कहा करते थे कि कंठ से जो दर्द भरी आह निकलती है,वही गजल है. भाषा के संबंध में यह बात बार-बार दोहराई गई है कि  जो भाषा दूसरी भाषा के शब्दों को पचा पाती है,वही भाषा जिंदा रहती है. अंग्रेजी में हर वर्ष सैकड़ो नये शब्द जुड़ जाते हैं और शब्द सम्पदा को समृद्ध करते हैं.गजल हमेशा खालिस गजल बनकर हमारे सामने आती है. गजल की अपनी रचना प्रक्रिया और नखरे हैं.हर साल को गजल के शिल्प और नखरे का ध्यान रखना होता है. यहां यह भी समझना जरूरी है  कि गजल सिर्फ़  बहर नहीं है उसमें कथ्य का होना भी उतना ही जरूरी है.

  चंद्रसेन विराट और चांद मुंगेरी जैसे शायर हिंदी ग़ज़ल में हिंदी के जातीय शब्दों के हिमायती रहे हैं, पर दुष्यंत से लेकर आज के अधिकांश गज़लगो -अनिरुद्ध सिंहा,ज्ञान प्रकाश विवेक,डॉ.भावना,विज्ञान व्रत,कमलेश भट्ट कमल,नूर मोहम्मद नूर,वशिष्ठ अनूप आदि गजल में उस भाषा के हिमायती रहे हैं जो जन सामान्य में रच बस गई है. यही कारण है कि हिंदी ग़ज़ल में उर्दू अरबी और फारसी शब्दों के साथ अंग्रेजी के शब्द भी इसी सरलता और संपूर्णता से देखे जा सकते हैं. चंद और शेर देखें –

 

 टेबल पर हमने खत लिखकर छोड़ दिया

 भारी मन से फिर अपना घर छोड़ दिया

अनिरुद्ध सिन्हा

 

 बहुत कंफ्यूज करती है हमेशा

 सड़क के बीच ये उलझन की आदत

डॉ. भावना

 

 क्यों नहीं निज प्रांत में ही जॉब हो

 आप क्या-क्या कर रहे हैं क्या कहें

हरि नारायण सिंह हरि

 

 कितना मुश्किल है अपने खो देना

 हम इमेजिन भी कर नहीं सकते

 

 आदर्शो को रहने दो

 सिस्टम भ्रष्टाचारी है

एस सी शर्मा

 

 आओ गूगल पे चैट करते हैं

 कौन चिट्ठी का इंतजार करे

राजेंद्र तिवारी

 

 कोका-कोला क्रेज बढ़ाये 

 दूध दही से तोबा तोबा

अविनाश भारती

 

 सुबह की भीड़ में अक्सर यह ट्रैफिक जाम होती है

 अगर हम देर से पहुंचे हमारी बेबसी होगी

विकास

 

 सांस लेने पर भी जीएसटी लगे

 वो मसौदा भी बनाया जा रहा

डी एम मिश्र

 

 जाहिर है हिंदी ग़ज़ल में अंग्रेजी के यह शब्द न मात्र इसकी तासीर बढ़ा देते हैं, बल्कि हमें अभिभूत भी करते हैं. एक ही शेर में गूगल और चिट्ठी शब्द तथा प्रांत और जॉब जैसे शब्द यह बताने के लिए काफी है कि हिंदी गजल को गजल से मतलब है वह भाषा की सीमा या वर्गीकरण के पीछे नहीं पड़ती.

 हिंदी की कुछ ऐसी भी गजलें हैं,जिसमें प्रयोग के तौर पर गजल के हर शेर में अंग्रेजी शब्दों का बखूबी निर्वाह हुआ है. हिंदी के युवा गजलकार अभिषेक सिंह अपनी गजलों में बराबर प्रयोग कर रहे हैं. उनकी एक गजल के तीन शेर देखें –

 

 तमाम उम्र भला कौन ऐसे धड़केगा

 हमारे दिल में खुदा का मशीन लगता है

 

 करूं तो सॉल्व में कैसे पुराने मेथड से

 हमारा इश्क का परचा नवीन लगता है

 

 समय के कैमरे में कैद हो रहे हैं हम

 ये जिंदगी किसी मूवी का सीन लगता है

अभिषेक सिंह

 

 इसके बरअक्स ऐसी भी गजलें मिलती हैं, जिसमें कुछ अप्रचलित अंग्रेजी के शब्द भी दिखते हैं,पर उसे भी पढ़ते हुए आनंद मैं कोई ख़लल पैदा नहीं होता –

 

 अजब यही था कि दुनिया की रश में होता था

 वह एक शख्स जो मेरे क्रश में होता था

 

 तुम्हारी कुरबतें एम्यूज मुझको करती थीं 

 मैं उसके बाद मुसलसल ब्लश में होता था

शानुर रहमान साबरी

 पर जहां यह शब्द सहजता से आते हैं,वह शेर और अधिक प्रभावपूर्ण बन जाते हैं –

 

 किचन की खिड़कियों का रुख बदल दो

 मेरे बच्चे बहुत रोते हैं साहब

तनवीर साकित

 

 जो अक्सर खोये -खोये अपने ही पैकर में रहते हैं

 नई तहज़ीब के बच्चे हैं कंप्यूटर में रहते हैं

ए. एफ नज़र

 

 खुशी के साथ ग्लोबल आपदाएं

 भई खतरा तो हर व्यापार में है

 

आजकल जो उड़ रहे हैं रोज़ चार्टर प्लेन से

वे चुनावी रैलियों में फिर दलित हो जायेंगे

राहुल शिवाय 

 इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हिंदी गजल जिस तरह से अपना सफर तय कर रही है,और आम लोगों की जबान पर मौजूद है इसका कारण यह है कि यहां इसकी बात उसी की जबान में है यह जवान किस भाषा की है प्रश्न यह नहीं है. प्रश्न यह है कि आम आदमी उस भाषा और अभिव्यक्ति से अपने आप को कितना जोड़ पाता है. हिंदी शेर में जहां भी अंग्रेजी,अरबी,फारसी उर्दू के शब्द इस्तेमाल हुए हैं उसने गजल के सौंदर्य और संपदा में वृद्धि की है इसलिए ऐसे प्रयोग को स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए.

 

 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top