अनुनाद

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क्रूर कहानियों के भयावह शहर में – अमित श्रीवास्‍तव

अमित हिन्‍दी के उन दुर्लभ युवा कवियों में है, जो सिर्फ़ कविता करने का हठ नहीं ठाने रहते, बल्कि उसे समृद्ध बनाने वाली वैचारिक और भाषिक संरचनाओं में
भरपूर आवाजाही रखते हैं। वे कविता के इलाक़ों में दूर-दूर तक निकलते हैं। अमित में भाषा और कविता की ऐसी यात्राओं पर निकलने की विकलता सदा से रही है। नामालूम दिखायी देती ये यात्राऍं दरअसल कई स्‍तरों पर महत्‍वपूर्ण होती हैं। कविता को समझने के लिए की गई ऐसी ही एक रचनात्‍मक यात्रा इस लेख के रूप में अमित ने अनुनाद से साझा की है। मैं आशा करता हॅूं कि कोई और नहीं तो युवा कवि अवश्‍य इस लेख को दिलचस्‍पी से पढ़ेंगे
, इसमें दर्ज़ नाम उनके लिए उतने अपरिचित भी नहीं हैं, ये सब हमारे ही दौर के सन्‍दर्भ हैं। 
अमित के लेख में कार्देनाल की कविता का यह अपूर्व पाठ समग्रता में किसी भी बड़ी कविता को समझने की एक राह बनाता/दिखाता है। अनुनाद इस आलेख के लिए अमित को शुक्रिया कहता है, यह अनुनाद का हासिल है। 
 
    रूम 5600 : क्रूर कहानियों के भयावह शहर में    
 
कविता गिनती की किताब नहीं है कि जिसे शुरू या अंत से ही शुरू किया जाने की बाध्यता है. कविता किसी चित्रकार के कैनवास पर बनी पेंटिंग हो सकती है जिसे किसी भी बिंदु पर केंद्रित होकर, किसी भी दिशा या पैटर्न से पढ़ा जा सके. उस बिंदु को परिधि तक का विस्तार दिया जा सकेआज से तकरीबन चार दशक पहले स्पानी कवि अर्नेस्तो कार्देनाल ने एक कविता लिखी `रूम 5600.’ कविता स्वतंत्र रूप से पहली दफा `सिटी लाइट्स प्रकाशन हाउसके `पॉकेट पोएट्स सिरीज़के अंतर्गत अनुवादक जोनाथन कोहेन के अंग्रेज़ी अनुवाद में छपी है. वैसे ये कविता कार्देनाल की Cosmic Canticle का 23वाँ हिस्सा है जो समग्रता से बाद में प्रकाशित हुआ. बाइबिल के गेय हिस्से को Canticle कहते हैं. यहाँ वो पूरी कविता नहीं दी जा रही. इसे कविता पढ़ने के शऊर के साथ पढ़ने के लिए पाठकों के लिए छोड़ जा रहा है. यहाँ जो बताने का उद्देश्य है वो एक राजनीति की बात है. उस बात में एक पेंटिंग का ज़िक्र है और पेंटिंग में इस कविता के शुरुआती निशान हैं. हालांकि तो पेंटिग और ही कविता किसी भी बिंदु पर इसे प्रत्यक्ष करती है.
They
had a happy childhood on the banks of the Hudson
on
a 3500-acre estate
with
11 mansions and 8 swimming pools
and
1500 servants
and
a great house of toys
but
when they grew up they moved into Room 5600
(actually
the 55th and 56th floors of the tallest skyscraper
at
Rockefeller Center)
where
hundreds and hundreds of foundations and corporations
are
managed like
—what
truly is—
a single
fortune.
किसी शानदार यथार्थपरक उपन्यास का प्रारंभिक ड्राफ्ट सी लगती ये कविता सूचना क्रांति के अंखुवाने वाले दौर में सूचना की अतिशयता, हितबंध बंटवारे और अपने हितों के लिए उसका प्रबंधन, विखंडन और निर्माण की सारी दीगर बातों को समेट लेती है. विकास क्रम में उद्योगो के बाद किस तरह से सूचना तंत्र पूंजीवाद के प्रसारप्रसार और अस्तित्व के लिए उसके साथीसाजनहमसाए की तरह साथ लग लिया है, उसकी बानगी इस कविता में पूरी तफसील के साथ मौजूद है. आज हम इस महादेश में जैसा महसूस कर रहे हैं, (या शायद आज भी उस ख़तरे की अंदरूनी बुनावट को खोल सकने में अक्षम हैं) उसकी इतनी बारीक़ पड़ताल इस कविता में मौजूद है कि जैसे कोई गुनी दर्जी किसी सिलाई को सिलसिलेवार गाँठगाँठ, धागाधागा उधेड़ रहा हो. जितने चौकन्ने उसके हाथ होते हैं, जितनी पैनी निगाह होती है और जितनी सावधान सी लापरवाही उस क़ाबिल कामगार के चेहरे पर नज़र आती है उतने चौकन्नेपन से कार्देनाल शब्दचयन करते हैं, उतनी ही पैनी निगाह से ब्यौरे खोलते जाते हैं और उतनी ही सावधान लापरवाही की व्यंजना इस कविता में नज़र आती है. 
खैर! हमें इस कविता पर अभी नहीं रुकना है. कविता के बारे में इस संक्षिप्त जानकारी के बाद अब हम `रूम 5600’ में प्रवेश कर सकते हैं. लकिन इस कविता को अपने साथ अपनी जेब, दराज या मेज़ पर फैलाकर रखियेगा जबतलक हम इस रूम में थोड़ी देर के लिए रुकेंगे. रूम 5600 अमरीका के सबसे बड़े मीडिया समूह नेशनल ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी यानिएनबीसी’ का हेडक्वार्टर है. ये हेडक्वार्टर 850 फुट ऊंची, 66 माले की एक गगनचुम्बी इमारत में स्थित है जिसे ’30 रॉकफेलर प्लाज़ा’ या संक्षेप में ’30 रॉक’ कहते हैं जो ‘रॉकफेलर सेंटर’ जो ऐसी ही 19 इमारतों का समूह है, की मुख्य इमारत
है. 1932
से 1940 के बीच बन कर तैयार हुआ ये सेंटर अमरीका के आधुनिक इतिहास केसबसे अमीर शख्स’ के रूप में जाने गए व्यक्ति जॉन डी रॉकफेलर और उनके परिवार ने बनवाया. उस वक्त मौजूदरेडियो कोर्पोरेशन ऑफ़ अमरीकाऔर उसकी सहयोगी संस्थाएंएनबीसी’ औररेडिओ कीथ ओर्फियमके साथ अनुबंध हुआ और 42.5 लाख डॉलर प्रतिवर्ष किराए पर दिए जा सकने वाले चार बड़े स्टूडियो वहाँ बनाए गए. इमारत बनने के दौरान मेक्सिको के पेंटर डिएगो रिवेरा जिन्हें, मेक्सिको केम्यूरल आन्दोलन‘ (दीवार पर चित्र बनाने के आंदोलन) के लिए जाना जाता है, को मुख्य इमारत की लॉबी की दीवार पर एक म्यूरल उकेरने के लिए 21 हज़ार डॉलर में अनुबंधित किया गया.
  
रिवेरा ने `मैन एट क्रॉसरोड्सकी संकल्पना पर काम शुरू किया और लगभग पूरा भी कर लिया. `मैन एट क्रॉसरोड्ससमकालीन सामाजिक और वैज्ञानिक संस्कृति को केंद्र में रखते हुए बनाई गयी थी जिसमें मौलिक रूप से तीन पैनल थे. केन्द्रीय पैनेल या भाग में एक कामगार को मशीनों पर नियन्त्रण करते हुए दिखाया गया था. उसके आजूबाजू के दो पैनेल नैतिक विकास और भौतिक विकास के सीमान्त क्षेत्र थे, जो क्रमशः समाजवाद और पूंजीवाद के द्योतक थे. पेंटिंग की मूल अंतर्वस्तु और खुद पेंटर की बौद्धिक प्रतिबद्धता की वजह से उसके अनावरण से पहले ही एक बखेड़ा खड़ा हो गया. तत्कालीन प्रमुख अखबारदि न्यूयार्क वर्ल्ड टेलीग्राम’ में इस ख़बर के छपने के बाद कि पेंटिंग में लेनिन का चित्र उकेरा गया है जो पूंजीवाद को सायास समाजवाद से नीचा दिखाने का प्रयास है. पेंटिंग पूंजीवाद की मुखालिफत में है, इस बात को लेकर एक बड़ा बवाल उठा और उसके बाद लेनिन की छवि उसमे से हटाने हटाने के मुद्दे पर न्यायिक प्रक्रियाओं से गुजरने का सिलसिला भी बना. अंततः उस पर्दानशीं पेंटिंग को लोगों द्वारा दीदार होने से पहले ही फाड़कर नष्ट कर दिया गया. वो तो अच्छा हुआ कि रिवेरा को इसकी भनक लग चुकी थी और उसने उसके श्वेतश्याम फोटो निकलवा कर रख लिए थे जिसके आधार पर रिवेरा ने बाद में मेक्सिको में एक अलहदा नाममैन, कंट्रोलर ऑफ यूनिवर्सके नाम से पेंटिंग को पूरा कियाबाद में उस स्थान पर दूसरे विख्यात पेंटर सर्ट, पेंट करने को तैयार हुए (पेशकश पिकासो से भी की गई थी लेकिन किन्हीं कारणों से बात नहीं बनी) औरअमेरिकन प्रोग्रेसनाम से एक म्यूरल बनाया जिसमें आधुनिक अमरीका को बनाते हुए बहुत से नामीगिरामी लोगों को प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया जिसमें एक नाम महात्मा गाँधी का भी है.
इस पूरे घटनाक्रम पर ‘क्रेडल विद रॉक’ तथा ‘फ्रीडा’ नाम से दो फिल्में और ई. बी. व्हाइट की एक कविता ‘आई पेंट व्हाट आई सी : अ बैले ऑफ आर्टिस्टिक इंटिग्रिटी’ अस्तित्व में आईं. अब हमें उस दीवार को छोड़कर बाहर आना होगा और जब तक इस घटना के तत्काल बाद लिखी गई इस ‘आई पेंट, व्हाट आई सी…’ कविता में उठे कलाकार की प्रतिबद्धता के प्रश्न से जूझें हमें उस पेंटिंग को कम से कम उसकी श्वेत-श्याम फोटो को अपनी ज़ेहन में रखे रहना होगा.
I
paint what I think, said Rivera
And
the thing that is dearest in life to me
In
a bourgeois hall is Integrity;
However…
I’ll
take out a couple of people drinkin’
And
put in a picture of Abraham Lincoln;
I
could even give you McCormick’s reaper
And
still not make my art much cheaper
But
the head of Lenin has got to stay!
इसका तर्जुमा तो नहीं पर इसकी पीठिका पर कुछ आधार वाक्य खड़े किये जा सकते हैं. मसलन कलाकार के लिए अपनी कला के प्रति समर्पण और इमानदारी सर्वोपरि है. कलाकार के लिए उसका नज़रिया सर्वोपरि है. कलाकार के लिए उसकी अनुभूति सर्वोपरि है. कलाकार के लिए उसकी प्रतिबद्धता सर्वोपरि है. कार्देनाल ने जो लिखा वो वही है, जो वो लिखना चाहते थे, जो लिखा दिखता है. कार्देनाल ने जो देखा, वही लिखा. कार्देनाल ने जैसा सोचा, वैसा लिखा. समकालीन समाज में पूंजी, तकनीक और राजनीति का एक बेहद अमानवीय और शोषणकारी सम्मिलन इतिहास के अब तक के अपने जटिलतम स्वरूप में उपस्थित है. आज जब ये पता चलता है कि सूचना सच और झूठ के ज़रूरी आग्रहों से मुक्त कर दी गई है, फेक न्यूज़ और फेक न्यूज़ को साफ़ करने का कारोबार दुनिया के बड़े उद्योगों में शामिल किए जाने की क़ुव्वत रखता है, कार्देनाल चार दशक पहले से ही इस खेल को सजगता से देख रहे हैं. कार्देनाल जैसा कवि ही खेल के उस जटिल ढांचे को तोड़कर उसके अंदर जाकर वहाँ से निपट नंगा सच निकाल भी सकता है. ‘रूम 5600’ उस षड्यंत्रकारी महासम्मिलन और अनवरत खेले जा रहे उस कारोबारी खेल की गहन पड़ताल की कविता है, उसका रेशा-रेशा खोलती हुई-      
1
gallon of gas that cost the planet to produce it
1
million dollars . . .
And
Venezuela sold its oil for trinkets.
Twelve-year-old
girls up for sale in the Northeast.
The
cassava bread sour.
Sterilization
of women in the Amazon.
Monopoly
even of life itself.
The
millions flowing to them
गहन राजनैतिक बोध की इस कविता में कविताई की सूक्ष्म बुनावट है. एक बड़े कैनवास पर, जीवन के एक विस्तृत फलक को उकेरती किसी पेंटिंग में व्यक्ति, घटना और विचार के बारीक़ स्ट्रोक्स के जैसी.
Terrifying
nations with cruel stories.
Its
bat-like shadow over the culture, the academies.
All
the weight of the presses on us.
Subjected
to the whims of their stock companies.
That’s
why, Daniel Berrigan, Nicaragua’s boys are fighting.
Whether
milk or poison
the
product doesn’t matter
bread
or napalm
the
product doesn’t matter.
कितनी ख़ूबसूरती से जटिल राजनैतिक वाक्यों के भीतर व्यंजना गूंथी गयी है. इस दैत्याकार आख्यान को पूरी इमानदारी से अभिव्यक्त करने के लिए जीवन का जितना ख़तरा एक कवि उठाता है, इस कथ्य को कविता में उतारने के लिए अभिव्यक्ति के शुष्क हो जाने का भी उतना ही खतरा उसे उठाना पड़ता है. कविता का सौन्दर्य दोनों ही खतरों से बढ़ा हुआ दीखता है.  वहाँ उस दीवार पर `मैन एट क्रॉसरोड्सपेंटिंग के स्थान पर `रूम 5600’ कविता लिखी जा सकती थी. यहाँ इस कविता में इन शब्दों के भीतर उस फाड़कर नष्ट कर दी गई पेंटिंग को देखा जा सकता है, या कमअजकम उसकी कहानी तो सुनी ही जा सकती है. बशर्ते उन दोनों को जोड़ कर देख सकने के लिए आपके पास एक सजग निगाह हो या फिर `आई पेंट, व्हाट आई सी: अ बैले ऑफ आर्टिस्टिक इंटेग्रिटी’ जैसी कोई कविता.

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