बुढ्या ह्वैगी
पैली नी जागदी थै माँ अधरातीम
मेरा पिताजी बणौंदा था चाहा सुबेर्योंकी
दींदा था हम सब्युंक चाहा की प्याली बिछौंण्युम
काळी गौड़ी ज्यू बंधी रैंद थै चौकम
रतब्यांदी गाड़दा था पिताजी वींथैं भैर उगाड़ि मंगन
पिताजी का रैंद मैं थैं अपड़ी माँ सदानी ज्वान ल्हगदी थै
ऊंका होण से बिंदुली-टिकुलीम सजीं माँ भौत स्वाणि चितेंदी
थै
अब अचणचक माँ बुढ्या दिखेंण ल्हैगी
सुबेर ब्यवेणा दिख्यऊ वै सी पैली उठ जांदी माँ
पैली स्येंदी थै ज्यू निचन्त ह्वैकी
वींकी नीन्द अब सर्र बिजाळे जांद कुई आवाज ह्वंदा ही
जब मैत जांदु मैं
तब पिताजी की जगा माँ ह्वंदी रस्वाड़िम सुबेर्योंक
इतगा स्वाणि दिखेंण वळी माँ
अब बिगर बिंदुली-टिकुली का सबुम दिखेंण ल्हैगी बुढ्या

(हिन्दी अनुवाद)
पहले नहीं जागती थी माँ आधी रात में
मेरे पिताजी बनाते थे चाय सुबह की
देते थे चाय की प्याली हम सबको बिछौने पे
काली गाय जो आँगन में बंधी रहती थी
रात खुलते ही निकालते थे पिताजी उसे बाहर गौशाला से
पिताजी के रहते मुझे अपनी माँ सदा जवान लगती थी
उनके रहने से बिंदी-सिंदूर में सजी माँ बहुत सुन्दर दिखाई
देती थी
अब औचक ही माँ बूढ़ी दिखने लगी है
भोर का तारा दिखे उससे पहले ही जाग जाती है माँ
पहले जो निश्चिंत होकर सोती थी
अब उसकी नींद तुरंत टूट जाती है कोई भी आवाज़ होते ही
जब मैं मायके जाती हूँ
तो पिताजी की जगह माँ होती है सुबह रसोई में
इतनी सुन्दर दिखने वाली माँ
अब बिना बिंदी-सिंदूर के सभी में बूढ़ी दिखने लगी है
***
जब ह्युं पड़दु
जब ह्यूं पड़दु तब ल्हगौंदिन कांठी जागर
अधरातिम जब सुनिंद रैंदि दुन्या स्वींणुंम
तब न्हयेंदु हिमाल झक्क सफेद ह्यूं मा
यीं ह्यूं की ही पाड़ करदु जग्वाळ सालभर
ह्यूं पड़दु तब बचौंदु पाड़ पाणी अपड़ा कंठ मा
तबी त बगदी जांदीन बारामासी गंगा जमुना
ह्यूं मा डुबिक ही त जागदिन लाल सेब की कुंगळी कल्ली
डाळी – बुटळी, पौन- पंछी
गाड-गदनी अर डांडी – कांठी
मनौंदिन भगवती
पूजदिन द्यौ-द्येबता
कि झम्म पड़ु ह्यूं अर पाड़ की उमर बढ़ जाऊ!
(हिन्दी अनुवाद)
जब बर्फ गिरती है तो चोटियां गाती हैं जागर
आधी रात को जब दुनिया गहरी नींद में सपनों में डूबी रहती है
तब हिमालय करता है स्नान झक्क सफेद बर्फ में
इस बर्फ की ही करता है प्रतीक्षा पहाड़ साल भर
जब बर्फ गिरती है तो बचाता है पहाड़ अपने कंठ में पानी
तभी तो बहती जाती हैं बारामासी गंगा-यमुना
बर्फ में डूब कर ही तो जागती हैं लाल सेब की कोमल कोंपलें
पेड़-पौधे, हवा-पंछी
गाड-गदेरे, पहाड़-चोटियां
सब भगवती का ध्यान करती हैं
पूजती हैं देवी-देवता
कि ख़ूब बर्फ गिरे और पहाड़ की आयु बढ़ जाए।
***

वींकी खुद
हैर्याळी जम जांदी पाड़ै नस्युंम
जब वा छूंदी अपणी हाथ्युंन
कोंपळी सी फुटदिन ठंगरी डाळ्युं फर
जब वा हैंसदी मुलमुल कैरिकी
जब भट्यौंदी डांड्युं धार फर वा
तब पड़दी छपछपी पाड़ै जिकुड़ीमा
उतौळु ह्वै जांदु गौं गुठ्यार वींकी अन्वार देखणौ
अणमणी ह्वै जांदीन डांडी-कांठी
जब नी सुणेंदु वींकु खिखताट
अर जब वा हिटदी अपड़ी गुंदक्याळी खुट्युंन
तब सरमै जांदीन
नाजै बाल, गुणत्याळी ह्वै जंदिन
डोखरी-पुंगड़ी
अर जब वा नी दिखेंदी न भिंडी दिनुं तलक
बौग मार देंदिन पौन-पंछी
धारा-मंगरा बगणु छोड़ देंदान
तब ऋतु बौड़नु भूल जांदीन
तब खौळ्युं रै जांदु रे पाड़!
(हिन्दी अनुवाद)
पहाड़ की नसों में हरियाली जम जाती है
जब वो अपने हाथों से छू लेती है पहाड़
कोंपल सी फूटती है सूख चुके पेड़ों पर
जब वो धीमे-धीमे मुस्कुराती है
जब वो पहाड़ी धार पर मिलती है
तो पहाड़ के हृदय को सुकून मिलता है
पूरा गाँव और आँगन उसकी झलक देखने के लिए उतावला हो जाता है
अनमनी हो जाती हैं पहाड़ की धवल चोटियां और हरी-भरी वादियाँ
जब उसकी खिलखिलाहट सुनाई नहीं देती
और जब वो अपने सुकोमल गुदगुदे पैरों से चलती है
तो अनाज की बालियां शर्मा जाती हैं
गुणवंती हो जाते हैं खेत और क्यारियाँ
और जब वो बहुत दिनों तक दिखाई नहीं देती न
तो मौन धारण कर लेते हैं हवा-पक्षी
पानी की धाराएँ और स्रोत प्रवाह छोड़ देते हैं
ऋतुएँ लौटना भूल जाती हैं
और पहाड़ बौखलाया हुआ रह जाता है।
***

त्वैकुथैं ल्युंलू जलम
त्वैकुथैं ल्यूंलु जलम ये पाड़म हर बार दगड़्या
तू बणिक ऐल्यु क्वी छ्व्वोया का भेस
त किनारों फर रौलु हरीं घास बणिक दगड़्या
तू बणल्यु जो देबदारौ घणु बण
त लगुली बणिक त्वैसी भेंट्यौलु दगड़्या
तू बणिक ऐल्यु ज्यू क्वे खुदेड़ घीत
त मैं तेरी भौंण बणुलु दगड़्या
तू बणल्यु बाळाकु लोरी
त मैं वींकी दुधबोली बण जौलु दगड़्या
धै ल्हगैकी बथौंदु त्वैथैं
मैं त्वैकुथैं ल्यूंलु जलम ये पाड़म हर बार दगड़्या
(हिन्दी अनुवाद)
तेरे लिए ही जन्म लूंगी हर बार इस पहाड़ पर साथी
अगर तू किसी पानी के स्रोत के उद्गम में आएगा
तो मैं उसके किनारे उगी नर्म घास के रूप में रहूँगी
अगर तू देवदार के घने वन के रूप में जन्मेगा
तो मैं तुझसे किसी लता की तरह लिपट कर मिलूँगी साथी
अगर तू किसी मार्मिक लोकगीत की तरह रहेगा
तो मैं उस गीत की धुन बन जाऊँगी साथी
अगर तू किसी बालक के लिए लोरी का रूप धारण करेगा
तो मैं उसकी दूधबोली(माँ-भाषा) बन जाऊँगी साथी
आवाज़ लगाकर, पुकारकर बताती हूँ तुझे
मैं तेरे लिए लूंगी हर बार जन्म इस पहाड़ पर साथी।
***

सूंण मेरी सरम्याळी मायादार
त्वै देखिक मेरी जिकुड़ीम
फुटदिन कतगा ही छ्वोय्या
पराण फूलदेई मनौण्या ह्वै जांदु लठ्याळी
पट्ट ब्वोटिक तेरी खुद की अंग्वाळ
मैं पौंछि जांदु अपणा पाड़्युंम
पईंया की झक्क झुकीं डाळ्युं फर
खिल्यां फुलुन लगाई छुंई मैंमा
तेरा औंण से हैंसणु छ पईंया
ह्यूंवळी कांठ्युं कु रंग जनु तेरु गात लठ्याळी
अर तेरी गल्वड़्युंम खिल्युं हो जनु बुरांस
तेरु हिटणु यनु छ जनु कि
छळछळांदु गंगाजी कु पाणी
तेरी हंसी सूंणीक ही त खिलदी फ्योंली…,
बौड़दु चैत, फुटदन कुटमुणा
डाळ्युं फर…..
तेरी युं सुरम्याळी आँख्युं की सौं छन
बुरु न मानी
सुआपंखी स्वीणुंम अळझ्युं मेरु हिया
युं आँख्युं की मायादार छुंयुंम बिसरीगी सुध अपणी!
(हिन्दी अनुवाद)
सुन ओ मेरी शर्मिली प्रेमिका
तुझे देख कर मेरे हृदय में
न जाने कितने ही मीठे पानी की धाराएँ फूट पड़ती हैं
मेरा मन फूलदेई मनाने का होने लगता है
तेरी स्मृति का आलिंगन करते ही
मैं अपने पहाड़ में पहुँच जाता हूँ
पईंया के फूलों से लकदक झुकी डाल ने
मुझे बताया है कि
तेरे आने से ही खिलखिला रहे हैं पईंया के फूल
बर्फ से सफेद हुईं चोटियों के रंग जैसा तेरा बदन
और तेरे कपोलों पर जैसे बुरांश खिला हो
तेरा चलना ऐसा है
जैसे गंगाजी की छलछलाती धारा हो
तेरी हंसी सुनकर ही तो खिलती है फ्योंली
लौटता है चैत महीना, सूख चुकी डालियों
पर कोंपल फूटती हैं
तेरी इन सुरमेदार आँखों की सौगंध खाकर कहता हूँ
बुरा न मान लेना
सुन्दर प्रेमिल सपनों में डूबा मेरा मन
तेरी इन आँखों की प्रेमिल बातों में अपनी सुधबुध खो चुका
है।
***

तेरी हैंसी सूंणीक
दगड़्या तेरी हैंसी सूंणीक ही त
सुबेर हूंदी पाड़ूम
चट्ट ल्हगदु घाम हिंवाळी कांठ्युंम
तेरी हैंसी की अंग्वाळ बोटीक….
दगड़्या तेरी हैंसी सुंणेंदी जब दूर धारूम
तब चखुला गीत लांदन
घेंन्दुड़ी बौड़दिन सूना पड़यां चौकूंम…
तेरी हैंसी सूंणीक
फुटदन छ्वय्या पाड़ूम, भेंटेंदु चैत,
बेटी_ब्वारी मेसौंदिन मैत की
खुद
सार्युंम झक्क झुकदिन
साठी की बाल…..
तेरी कांसाकी थाळी जनी
खंणखंणादी हैंसी सूंणीक ही त
बीठूं फर दाथुड़ी छंणछंणांदी
चौक नाचदु तेरी हैंसी सूंणी
लांदु थड़्या अर चौंफला….
रुमुक प्वड़्दी ही हूंदी
तेरी हैंसी से रस्वाड़ीम रस्यांण
अर जब रातिमा तू
सुनिंद स्वीणुंम रैंदी न भग्यानी
तब जोन टक्क लगैकि
हेरदु तेरी तिबारी ओजाक…
मेरी दगड़्या…..
तू हैंसणी रायी सदानी
पाड़ की जिकुड़ी धकध्यांदी राली रे!
(हिन्दी अनुवाद)
मेरी प्रिय साथी तेरी हंसी सुनके ही तो
पहाड़ों पर सुबह होती है
तेरी हंसी को गले लगाकर ही
धूप लगती है बर्फ से उजली चोटियों पर
मेरी साथी जब तेरी हंसी सुनाई देती है दूर पहाड़ी धार पर
तब ही तो पंछी गीत गाते हैं
गौरैया लौट आती है सूने हो चुके आँगन में
तेरी हंसी सुनकर ही
मीठे पानी के स्रोत फूट पड़ते हैं पहाड़ों पर, चैत का महीना लौट मिलता है
बहू-बेटियां मायके की याद करती हैं
खेतों में लकदक धान की बालियां झुक जाती हैं
कांसी की थाल जैसी
खनकदार हंसी सुनकर ही तो
पहाड़ी खेतों की मेढ़ों पर दरांती से बंधे घुँघरू छनछनाते
हैं
आँगन तेरी हंसी सुनकर नृत्यरत् हो जाता है
और आँगन नाचता है थड़्या और चौंफुला (लोकनृत्य)
शाम होती है तो
तेरी हंसी सुनकर ही रसोई में रौनक हो जाती है
और रात को जब तू
गहरी नींद में सुन्दर सपनों में डूबी रहती है न भाग्यवान
तब चाँद टकटकी लगाकर तेरी छत से
तुझे ही देखता रहता है
मेरी प्रिय साथी
तू हंसती रहना हमेशा
पहाड़ का हृदय धड़कता रहेगा।
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(कविताओं का हिन्दी अनुवाद स्वयं कवि द्वारा किया गया है।)
नाम : रुचि बहुगुणा उनियाल जन्म : 18-10-1983, देहरादून उत्तराखंड
शिक्षा : एम. ए. अंग्रेज़ी साहित्य , समाज शास्त्र
प्रकाशित पुस्तकें : प्रथम पुस्तक – मन को ठौर, (बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित) प्रेम तुम रहना,प्रेम कविताओं का साझा संकलन
(सर्व भाषा ट्रस्ट से प्रकाशित)
वर्ष 2022 में दूसरा कविता संग्रह- २ १/२ आखर की बात (प्रेम कविताएँ) न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन नई दिल्ली से प्रकाशित।
प्रकाशन : प्रतिष्ठित पत्रिका पाखी, परिंदे, युगवाणी,
कविकुंभ, आदिज्ञान, स्त्री लेखा सहित सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व आलेख प्रकाशित, मलयालम,
उड़िया, पंजाबी, बांग्ला,
मराठी, संस्कृत, अंग्रेज़ी व अन्य कई भारतीय भाषाओं में कविताएँ अनूदित, भारतीय कविता कोश व प्रतिष्ठित वेब पत्रिका हिन्दवी, स्त्री दर्पण,
जानकीपुल,समकालीन जनमत, अविसद के साथ ही पहलीबार ब्लॉगस्पॉट पर रचनाएँ प्रकाशित
शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक :छुंईं की कुट्यारी (संस्मरणात्मक गद्य)
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन
निवास स्थान : नरेंद्र नगर, टिहरी गढ़वाल पत्र व्यवहार :न्यू उनियाल मेडिकल स्टोर नरेंद्र नगर, ज़िला टिहरी गढ़वाल,
पिन कोड – 249175
सम्पर्क सूत्र : ruchitauniyalpg@gmail.com