अनुनाद

हमर दयाप्त हमर जास छन / हर्ष काफर

पहाड़ का मसाण

ऊ मुकूं फाटी दाड़ीम वाई चे रो छी 

निसवास छी वी आंखम्

एक विश्वास छी वी आंखम्

उन बखे ले, जाण बखे ले

मिन सोचो आंगाव हालोल

ऊ जांठ टेक भे थाड़ ह रो छी

ऊ तापी घाम कु, 

फिर फिर तापणों छी

उ फाटी दादिम वाई चे रो छी।।

courtesy : Bhaskar Bhauryal

मे उज्यां विल, चाई–निचाई कर दे 

ऊ थाई में कोर्र भात खाणो छी

विक आंस छूटणा छी

भात नमकीन हुणों छी

ऊ गौर-बाछा वाई, उगेर लाग रो छी 

ऊ चाई निचाई करणों छी

 

ऊ हर तरफ़ बे चे रो छी

हाजरी फूल बटी

पिपव बोट बटी

केमू गाड़ी भीतेर

यो भ्योव ऊ डान,

गाड़ बटी, गाड़ भाड़ बटी

गाज्यों भूड़ बटी

पिरुव टान बटी

यो मोड़ ऊ मोड़ 

ऊ मुकु पगलूणों छी

म्योर बरमान रिंगणों छी

मिन सोचो चाहा पी लिह्नू

ऊ चाहा दुकान में बैठ रो छी 

चुप चाप बीड़ी फुकुणों छी

 

पुछड़ी तार जे

पीछाडी पड़ गोय

लोदिया मिठ्ठे में

खेरना पकोड़ी में

कैंची धाम बटी

भवाली बज्याण में

भीमताल ताल बटी

कुमाऊं द्वार जाले

फिर मुकु छोड़ दे

फिर ले, द्वाप लाग रो छी

पुठ फरूणे हिम्मत नि भय

ऊ मुकु डान काना बे चे रो छी

 

सेती पाई च्यालाँ कु

कसी बेग द्यु यो पहाड़

हर तरफ बे छितरी गो

आपूण हाड़ चाणों छी।

में भितेर पहाड़ चाणों छी

 

ऊ भडाई बाकरो बास चितुणों छी 

ऊ मुकु फाटी दादिम वाई चे रो छी

courtesy : Bhaskar Bhauryal

 हिन्दी अनुवाद

वो फटे दाड़िम की तरह मुझे देख रहा था

उसकी आंखों में बिछड़ाव का पानी था

एक विश्वास था उसकी आंख में

आते वक्त भी, जाते वक्त भी

मुझे लगा, गले लगा लेगा

मगर वो छड़ी टेके खड़ा रहा

उसके लिए नया नहीं था

वो तापे हुए घाम को

फिर फिर ताप रहा था

वो फटे दाड़िम की तरह मुझे ताक रहा था

 

फिर मेरी तरफ देखा अनदेखा कर दिया

वो थाली में सूखा भात खा रहा था

आंसू टपक रहे थे थाली में 

भात नमकीन हो रहा था

जो गाय की तरह जुगाली कर रहा था

मेरी तरफ देखा अनदेखा कर दिया

 

वो हर तरफ से देख रहा था

गेंदे के फूल से

पीपल के पेड़ से

केमू की गाड़ी के भीतर

ये पहाड़ वो पहाड़

नदी में, नदी के भाड़ से

घास से , झाड़ से

पिरूल के टान से

उसने मुझे पगला दिया

मेरे सिर घूमने लगा

सोचा कि चाय पीलूं

वो चाय की दुकान पर बैठा था

चुप चाप बीड़ी पी रहा था

 

जैसे कोई तारा पीछे पड़ जाए 

वो वैसे पीछे पड़ गया था

लोधिया की मिठाई में

खेरना की पकोड़ी में

कैंची धाम से

भवाली के बांज के जंगलों में

भीमताल के ताल से

कुमाऊं द्वार तक

फिर उसने मुझे छोड़ दिया

पर छुपकर देख रहा था

मेरी पलट कर देखने की हिम्मत नहीं हुई

वो ऊंचे पहाड़ों से मुझे ताक रहा था

 

पाले पोसे बच्चों को

कैसे बहाता है पहाड़

वो अपनी हड्डियां देख रहा था

मेरे भीतर का पहाड़ ढूंढ रहा था बाय

 

वो भुनी हुई बकरी की गंध महसूस कर रहा था

वो फटे दाड़िम की तरह मुझे देख रहा था

*** 

courtesy : Bhaskar Bhauryal

 

 

अरे ओ लोक बचुणी वालों 

अरे ओ लोक बचुणी वालों

जागर भागनोल चाचड़ी

लोक नेहत रे

मि छीन लोक 

मुकु बचाओ 

 

खुदेड़ न्यौली नेहत

न्यौली खुदेड़ नेहत 

न्यौली में खुदेड़ गाओ

खुदेड़ में न्यौली गाओ 

पर पैली मुकु बचाओ 

 

लाल निसाण कुं अघिल करो 

भले पिछाड़ी करो

मगर सफ़ेद कुँ लहराओ 

अरे ओ छोलियो, छलण छोड़ दियो हमकुँ

हमेंरि तलवारु मि धार छू 

तुम आपुण तलवार आँफर लगाओ

मगर सबसे पैली 

मुकु बचाओ

 

मि छिन रे लोक 

courtesy : Bhaskar Bhauryal

हिन्‍दी  अनुवाद

अबे ओ लोक बचाने वालों

हुड़का, भगनोल, चाचड़ी

लोक नहीं है रे

मैं हूं लोक मुझे बचाओ

 

खुदेड़ न्यौली नहीं है

न्यौली खुदेड़ नहीं है

न्यौली में खुदेड़ गाओ

खुदेड़ में न्यौली गाओ 

पर पहले मुझे बचाओ 

 

लाल निसाण को आगे करो

भले पीछे करो

मगर सफ़ेद निसाण को लहराओ 

अबे छोलियो, छलना छोड़ दो हमें 

हमारी तलवारों में धार है

तुम अपनी तलवार में धार लगाओ 

मगर सबसे पहले 

मुझे बचाओ 

 

मैं हूं लोक

*** 

courtesy : Bhaskar Bhauryal

 

 

जली हुई धूणी बटी, चिलम जलूने रे गईं 

जली हुई धूणी बटी, चिलम जलूने रे गईं

धूणी–कसी जली बता, य–बात बीच रे गई

कैले ढुंग फोड़ी बता, कैले गार –तगार दे

ऊ स्वेण को आंखू मि छी,जो बखाई उजड़ गईं

भाबरे की रात छी, ऊ रात नंग रात छी

द्रोपदी बिलख पड़ी, दयाप्त चाय्यें रे पड़ी

कैले धात दे बता, कैले घात खित बता

हर तरफ चिचाट छी , सांस छुटने रे गई

य हिमाल, देवदार, आंखूं मि रची –बसी

ज़िंदगी पहाड़ छी, पहाड़ हुने रे गई

 

गवाव–गुसें निपट पड़ी तो, राग फिर नई बाजों

तस्करू कपाव में पहाड़–क मकुट छाजों

लूट यां, खसोट वा, हर तरफ चिरान छी

दयारी में बजयाणी में, टीटाट छी भीभट छी

गाड़ में मशीन देखि, गध्यार सहम सहम पड़ी 

खरड़ खरड़, रगड़ रगड़, ऊ ताव तावे निकल पड़ी

ज़िंदगी गलत सलत सवाल पूछने रे गई

गलत सवाल कोई तो सही जवाब दियो जरा

य हिमाल, देवदार, आंखूं मि रची –बसी

ज़िंदगी पहाड़ छी, पहाड़ हुने रे गई

 

 पेली हमुल आपू दयाप्त बड़ाई

फिर हमर द्वाप्तुल बड़ा हमुकु

हमर दयाप्त हमर जास छन

काठ खुट छन उनार, लूव कपाव छु

ऊ आपु काठ खुटुल हिटनी अरड़ पट्ट

हाव, ह्यू, तुसार में

हमर सैणीयांक कपाव लूव छू

उनर कपाव बे

ब्वाज गढ़वा नी उतरन

ऊ थाड़-थाड़े झीट घड़ी लिजी बिछे लिनी आपु साँस

 

हमार दयाप्त ले , हम जस छिन

दूबाऊ-पताव , तेज़-तर्रार, निडर

सही गलत पछाड़ छु उनुकु

पर ऊ धीरे धीरे गायब हूणई

उन जाग थे ऊणई 

साफ सफ़ेद नवाई धूवाई

संगमरमर दयाप्त

 

हमर पास आपु बहुत दयापत छी

घराक अलग 

बणाक अलग

गोरू-बाँछा अलग

नौव,गाड़, गध्यार, बोट-डाव

एड़ी,काली, हरु,कवू ,कोट, काव

पे गुरु पे पे पे

गोल ज्यु ,भोल ज्यु ,गंगनाथ,नागमल

भैरव,चमू ,बधाण, सेम , छूरमल

 

हमारा दयाप्त नाखर नी करन

जे हम खानू उई खानी

जां हम जानु

वै उनी

ऊ हमुकू छितराट नी करण दिन

 

मगर अब कोई दूर देश बे अभे

कोई उनुकू धात लगुणों 

ऊनर नाम लीहणों

ऊ अचरज में पड़ गईं

ऊ हम मुख चाणई और हम हूँ कुणई

यो के तमास छु ?

कां कां सारला मुकुँ ?

देखो ! यो मज़ाक ठीक नेहत्…

courtesy : Bhaskar Bhauryal

हिन्दी अनुवाद

पहले हमने हमारे देवता बनाएं

फिर हमारे देवताओं ने हमें बनाया बीबी

हमारे देवता हमारे जैसे है

लकड़ी के पांव हैं उनके

लोहे का कपाल है

वो लकड़ी के पावों से चलते हैं

सर्द हवाओं में, बर्फ में, तुषार में

हमारी औरतों का सर लोहे के हैं

उनके सर से नहीं उतरता कभी भी बोझ

वो खड़े खड़े, छाव देख

बिछा लेती हैं अपनी सांसे 

हमारे देवता भी हमारे जैसे दिखते हैं

दुबले पतले, तेज़ तर्रार, निडर

सही गलत की परख है उनको

पर धीरे धीरे वो गायब हो रहे हैं

ओर उनकी जगह

साफ सुथरे नहलाएं धुलाए

संगमरमर के देवता ले रहे हैं

हमारे पास हमारे बहुत से देवता हैं

घर के अलग, वन के अलग

यहां तक कि हमारे मवेशियों के भी

नौव गाड़ गदय्यार बोट डाव

एड़ी ,काली, हरु,कवू ,कोट, काव

पे गुरु पे पे पे

ग्वे्वेल ज्यु ,भोल ज्यु ,गंगनाथ नागमल

भैरव,चमू ,बधाण, सेम , छूरमल

हमारे देवता नखरें नहीं करते मवेशियों

जो हम खाते हैं, वहीं खाते हैं।

हम जाते हैं

वो साथ आते हैं

वो हमको छितराने नहीं देते

मगर अब कोई दूर देश से आकर

उन्हें धात देता है, 

उनका नाम लेता है

वो अर्चन में पड़ कर

हमारा चहरा देखते हुए , पूछते हैं

ये क्या तमाशा है??

मुझे कहां ले जाया जा रहा है अब ??।

*** 

कविताओं का हिन्‍दी अनुवाद स्‍वयं कवि द्वारा किया गया है। 

 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top