आकंठ प्रेम में डूब कर तुम्हें ऐसा ही पाती हूं/तुलसी छेत्री की कविताएं
मन के नील हमारे यहां जब शरीर पर नील पड़ जाता है तो कहते हैं डायन खून चूस लेती है
मन के नील हमारे यहां जब शरीर पर नील पड़ जाता है तो कहते हैं डायन खून चूस लेती है
1 मैंने जब भी उसकी बात की आँखें भर कर की गालों में लाल कोंपलें फूटने तक आवाज़
ठूंठ पिता के जाने के बाद उनकी अनुपस्थिति का अहसास सबसे अधिक कही नुमाया हुआ तो वो मां का सूना
गॉंव की औरतें दौर भले हो ग्लोबल विलेज का पर अब भी भोली हैं गांव की औरतें
अगर अगर भोजन करते हुए तुम्हें इस बात की शर्म आए कि दुनिया में करोड़ों लोग भूखे हैं तो समझ
आत्मकथ्य जिस रात चौबारे पर उतरी चाँदनी उस गांव में एक नयी किलकारी गूँजी चीन के हमले
1 मैं दुल्की चाल से चलते हुए घर पहुँचता हूँघंटों के उपरांत मेरे अतीत के बियाबान के एकमात्र आश्रय स्थल पर
Bluebird (नीला पक्षी) मेरे दिल में एक नीला पक्षी है जो बाहर निकलना चाहता है किन्तु मैं उसके लिए
युद्ध के दिनों में कवि होने का क्या मतलब होता है युद्व के दिनों
सिर्फ़ एक शब्द नहीं, कोई शब्द आसमान में जब आते हैं बादल कोरे कागज में जैसे आ जाता है शब्द