मोहनि दूर्गून

(हिन्दी अनुवाद)
धार
जहां ठंडी ठंडी सी हवा बह रही है
उस धार के बगल में एक झरने के ऊपर की ओर
दूर्गून हो रहा है
मोहनि नाम की लड़की का दूर्गून
बिल्ली के बच्चे जैसी प्यारी
मोहनि का दूर्गून।
मोहनि आज अपने मायके पहुंची है
अपनी माँ की पौचिं के साथ
अपने पिता के वस्त्रों के साथ
मामा की दी नथ के साथ
चाचा के दिए रथ के साथ
और साथ हैं ताई चाची मौसी
सबके दूध दही के बक्से l
अगर साथ है तो आज सिर्फ इस मायके की सम्पत्ति
अब नहीं है वो पहले की चुलबुल सी नटखट लड़की
वो ककड़ी की बेल, जौं , तिल
कुछ भी साथ नहीं है
साथ है तो वो एक जीजा
जो अपने सुन्दर सूट पैंट में है
जो सभी गाव की लड़कियों को मन में एक तीस जगा रहा है
मोहनि के पिता देख रहे हैं
अब डिलीट हो चुका है आश्विन का महीना और चातुर्मास
ना अब दही और दूध पाने की आशा बाकी है
और ना ही चक्की पीसने वाली बहू बनी
ना ही धान रोपने वाली महिला
अब ना ही उसने किसी के साथ काम पालटाने
और ना ही कहीं घास काटने को जाना है
ये बाँज का पेड़ भी तेरा रास्ता देखे था
और ये गाय का गोठ तक अधूरा सा लग रहा था
ये कुत्ते बिल्ली बकरी ऐसा लग रहा था
जैसे सब परेशान से है
कुमाऊँ के द्वार पहुच चुका है चेली तेरा ये हाड़-मांस का शरीर
पर ऐसा लगता है कि जैसे
तू रोज आवाज़ दे रही हो कि
छूट गया पहाड़
छूट गया पहाड़
छूट गया पहाड़ ।
आम्
राति ब्यान पन्यार भटि
आंग खूकलनि, धोती बेड़नि,
घाद् लगूनि आम्
पाणि च्यैड़नि गरम कर दियै,
चाहा घुटुक बणै दियै
ऑडर लगूनि आम्।

खोली देली का टुक भटी
धोती बेड़ि बीड़ी फूकि
गिज फरकूनि आम्
चाहा घड़कूनी,उस करे तस नि करे
अपण खाप जोरल
ब्वारि काम पटूनि आम् ।
दिन दोपहरी भात पकूनी
दाल घुंगरानी
खट्टा बणूनि आम्
सबनै खवै पिवै लम्पसर सिवै
अपण कारोबार
सफल बणूनि आम् ।
डाण धुराक् बांज भटि
खोल देलि टुक तक
ब्वारि का जोर पर
अपू में एक पहाड़ जोड़नि
कमर टूटि आम् ।
दिन बीती साल भ्यो, साल बीती बरस
सासू दिना ब्वारि पर
कसि नि भै तब कटक
आब ब्वारि जसि आऊंन
नै आन पर ऊ
पहाड़ वालि आम् ।
(हिंदी अनुवाद)
सुबह-सुबह से पानी के धारे से
शरीर धोकर, कपड़े लगाकर
आवाज़ लगाती आमा
पानी को गरम कर देना
चाय की घूंट बना देना
ऑर्डर लगाती आमा ।
खोली घर के दरवाजे से
अपनी धोती पहने बीड़ी फूकती
मुँह मटकाती आमा
चाय पीते हुए
ऐसा करना वैसा नहीं
अपने मुँह के जोर पर
बहू का हाथ बाँटती आमा ।
दिन दोपहर में चावल पकाकर
दाल में तड़का देकर
चटनी बनाती आमा
सभी को खिला-पीला बढ़िया से सुला कर
अपना कारोबार
सफल बनाती आमा ।
पहाड़ की चोटी के बाँज से लेकर
खोली के मकान के दरवाजे तक
बहू के जोर पर
अपने में एक पहाड़ जोड़ती
कमर टूटी आमा ।
दिन बीते साल हुए साल बीत कर वर्षों
सास के दिन बहू पर
क्या नहीं हुई परेशानियां
अब बहू जैसे भी आएं
पर नहीं आ सकती है अब वो
पहाड़ वाली आमा ।
***
(कविताओं का हिन्दी अनुवाद स्वयं कवि द्वारा किया गया है। )
क्या बात है बहुत ही सुंदर🙌
Really a good initiative to explore the culture and to make it global ♥️♥️kudoss