विपिन
चौधरी की लिखी जीवनी मैं रोज़
उदित होती हूं :माया एंजेलो का विद्रोही जीवन से एक अंश
1950
के दशक के अंत में माया अन्ज़ेलो, अश्वेत
राइटर्स गिल्ड में शामिल हो गयी. वहीँ पर माया की मुलाकात एक प्रमुख अश्वेत लेखक
जेम्स बाल्डविन से हुयी बाद में चल कर बेल्ड्विन उनके भाई, दोस्त
और सलाहकार बन उनके दुःख- सुख में भागीदार बनते रहे . १९५० में अमेरिका में बनी ‘हार्लेम राइटर्स गिल्ड‘ एफ्रो- अमेरिकन लेखक
औरकलाकारों से संबंधित सबसे पुरानी संस्था थी. रोसा गे, जॉन
ओलिवर किल्लेंस, डॉ जॉन हेनरिक क्लार्के, विल्लर्ड मूर और वाल्टर क्रिसमस जैसे ख्यातिनाम लेखक, विचारक और कार्यकर्ताओं ने इस संस्था का गठन किया था. इस संस्था का मुख्य
उद्देश्य प्रवासी अफ़्रीकी लेखकों के कार्यो के विकास और उसके प्रकाशन में सहायता
करना भी शामिल था. जब माया अन्ज़ेलो इस अश्वेत कला आंदोलन के साथ जुडी तो उनकी सक्रिय
भागीदारी ने इस आन्दोलन में एक ईंधन के रूप में काम किया।
हार्लेम
नवजागरण के विपरीत, अश्वेत राइटर्स
गिल्ड के ब्लैक आर्ट आन्दोलन ने नागरिक अधिकारों के प्रबुद्ध नेता मल्कोल्म एक्स की
हत्या के बाद से गति पकड़ी। उसके बाद तो यह आन्दोलन एक पॉवर आन्दोलन बन गया,
तभी इस संस्था ने एक कट्टरपंथी और आतंकवादी सौन्दर्य को जैसे गले से
लगा लिया और यह एक उग्र कला आदोलन के रूप में जाना जाने लगा. माया अन्ज़ेलो ‘हार्लेम लेखक संघ‘ की एक मजबूत इकाई बन गयी थी.अमरी
बरक और जेम्स बाल्डविन के साथ मिलकर अफ्रीकन-अमेरिकन लोगों के लिये रचनात्मकता और
सशक्तिकरण के लिये दरवाज़े खोले। इस संगठन के रचनात्मक आगाज़ से आने वाली पीढियां
कला के माध्यम से अपने सामाजिक अन्याय के प्रति मुखर हो सकी और उन्हें कला के
विभिन्न छेत्रों में आगे आने की प्रेरणा मिली।
इस कला आन्दोलन से जुड़ कर माया अन्ज़ेलो
का व्यक्तित्व अधिक पुख्ता और जागरूक हुआ, खुले मन मस्तिष्क
वाले लोग माया के आस- पास मौजूद थे. वे सब समाज में मौजूदा हालत में परिवर्तन लाना
चाहते थे और इसलिये नाटक, लेखन और कला के दूसरे माध्यमों में
जायदा से जायदा सक्रियता दिखा रहे थे. माया अन्जेलो शुरू से ही कला के प्रति समर्पित
थी और अब इस आन्दोलन में शामिल हो कर उनकी कलात्मक अभिरुचि उफान पर थी.. वर्ष १९६०
में उन्होंने फ्रेंच नाटककार जीन गेनेट के नाटक ‘द
ब्लैक” में हिस्सा लिया। ‘द ब्लैक‘ एक महत्वपूर्ण नाटक था जिसमे माया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आज भी ‘द ब्लैक‘ नाटक को साठ के दशक में फ्रांस में सबसे
लंबे समय तक चलने वाला ( तीन साल ) गैर संगीत ब्रॉडवे माना जाता है। 1958 में लिखित और नाट्य निर्देशक जीन जेनेट द्वारा निर्देशित नाटक “द
ब्लैक” साठ के दशक में मंचित उस दौर का बेहद सफल नाटक था. अश्वेत कला आन्दोलन
की एक अहम् प्रस्तुति के रूप में इस नाटक को जाना गया. 2007 में
फिर से दुबारा इस नाटक को नए कलेवर में लंदन के स्ट्रेटफोर्ड, थिएटर रॉयल में खेला गया.तब नयी पीढ़ी में इस नाटक के प्रति रूचि जाग्रत
करने के लिए हिप हॉप, स्लैम कविता का रीमिक्स भी शामिल किया गया
था. हमारे सबसे गहरे बैठे नस्लीय पूर्वाग्रहों का सामना करने के क्रम में किरदारों
का सफेद श्रृंगार धारण कर समाज ने उतरना दर्शकों को हतप्रभ कर देता था.
१९६६
में उन्होंने हास्य अभिनेता गॉडफ्रे कैम्ब्रिज के साथ
“स्वतंत्रता के लिए कैबरे” नामक नाटक में काम किया। इस
महत्वपूर्ण कलात्मक योजना में शामिल होने के बाद वर्ष 1961-1962 में माया अन्ज़ेलो ने काहिरा, मिस्र से प्रकाशित होने
वाले अखबार “अरब ऑब्जर्वर” के लिए एक सहयोगी संपादक के रूप में काम
किया। अरब आब्जर्वरसे , अंग्रेजी में निकलने साथ- साथ एक लेखिका
के रूप में और फिर सन 1964 से लेकर 1966 में घाना टाइम्स और घाना प्रसारण निगम के साथ जुडी रही. इसके साथ ही वर्ष
1964 में माया अन्ज़ेलो,घाना विश्वविद्यालय के संगीत
-नाटक स्कूल की सहायक प्रशासक, और घाना प्रसारण कार्पोरेशन
और घाना टाइम्स अखबार , घाना से कार्यरत हुयी, इसी समय माया ने नाटक‘मदर करेज‘ में भी काम किया। घाना विश्वविद्यालय में”मदर करेज”में भी माया अन्ज़ेलो
दिखी।
1973 में उन्होंने ” लुक अवे” में में भी
काम किया। इस नाटक में माया अन्जेलो के साथ सहयोगी थी गेराल्दिन पेज और नाट्य
निर्देशक थे रिप टोरन.नाटक के मुख्य किरदार का नाम ममैरी लिंकन था और मंच में देश
काल के रूप में पागल रोगियों काबताविया के स्थित अस्पताल की.कहानी की पृष्ठभूमि
में अमेरिका के पहले राष्ट्रपति के पत्नी श्रीमती लिंकन के उस दिन की प्रसंग की है
जब राष्ट्रपति की हत्या( जून 14, 1875) हुयी थी. उस रात
श्रीमती लिंकन पर क्या बीता इस नाटक में यही दर्शाया गया था. माया बेहद तल्लीनता
से नाटकों के किरदारों के साथ खुद को जोड़ लेने के सफल होती थी. एक बार किसी अवसर
पर माया को सेनानी डॉ. मार्टिन लूथर किंग का भाषण सुनने को मिला उनके सामाजिक
संदेशों से प्रेरित होकर, माया ने अपने जीवन को नागरिक
अधिकारों के संघर्ष का एक हिस्सा बनने का फैसला किया.
माया की लगन को देखते हुए डॉ
लूथर किंग ने उन्हें उत्तरी समन्वयक के रूप में एक पद की पेशकश की.यह वर्ष 1961
ही था जब माया दक्षिण अफ्रीकी नागरिक अधिकार आंदोलन के कार्यकर्ता वुसुम्ज़ी
मके के प्रेम में गिरफ्तार हुयी, प्रेम की इसी राह पर चलते
हुए माया ने वुसुम्ज़ी का लगभग लोनान और अफ्रीका में भी पीछा किया इस वक़्त माया के
ऊपर एक जुनूनी पत्रकार वाला जज्बा तारी हो चूका था. वह अपने काम में डूब चुकी थी
लेकिन एक बार फिर माया का प्रेम अधिक दिनों तक ठहर नहीं पाया। तब माया अपने बेटे
को साथ लेकर काहिरा चली गयी और 1962 में घाना, दक्षिण अफ्रीका चली गयी और वहां एक स्वतंत्र पत्रकार और ‘अफ्रीकन रिव्यु‘की फीचर संपादक के रूप में काम किया।
तीन साल तक वहां काम करने के बाद 1966 में माया संयुक्त
राज्य अमेरिका लौटीं और अश्वेत अमेरिकियों के नागरिक अधिकार आंदोलन में मदद करने के
इरादे से लौटीं।
दो साल तक माया ने नागरिक अधिकारों के लिये खूब काम किया। लोग जागरूक
हो रहे थे और उनके भीतर हौसला बढ़ रहा था कि तभी 1968 में
मेल्कम एक्स की हत्या कर दी गयी. मेल्कम को अश्वेत अमेरिकियों
के आत्मसम्मान को ऊपर उठाने और उनहें अफ्रीकी विरासत के साथ दुबारा जोड़ने में
सक्रिय योगदान का श्रेय दिया जाता है. मेल्कम को इतिहास में सबसे महत्त्वपूर्ण और सबसे
प्रभावशाली अफ्रीकी अमेरिकियों में से माना गया है, 21 फ़रवरी,
1965 को जब मैल्कम एक्स न्यू यॉर्क के मैनहट्टन में अफ्रीकी मूल के
अमेरिकी एकता संगठन को संबोधित करने की तैयारी कर रहे थे तब कोई 400 दर्शकों में से पहली पंक्ति में बैठे किसी व्यक्ति ने उन्हें गोली मार दी.
उनके अंगरक्षक कुछ करते कि अपने हाथों में बंदूक लिए दो और हमलावर नज़दीक से उनपर
गोली चलाने लगे, उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ उनकी ऑटोप्सी
रिपोर्ट में मालूम हुआ की इस बहादुर इंसान के शरीर पर २१ गोली लगी हैं. माया इस
हत्या से हिल गयी तब उनका एकमात्र सहारा था कविता लिखना, जिसमें
माया को परम संतोष मिलता था.
***
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माया एंजेलो की कविता ‘वुमन वर्क‘ / अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह
मुझे करनी है बच्चों की देखभाल
अभी कपड़ों को तहैय्या करना है करीने से
फर्श पर झाड़ू – पोंछा लगाना है
और बाज़ार से खरीद कर ले आना है खाने पीने का सामान।
अभी तलने को रखा पड़ा है चिकन
छुटके को नहलाना धुलाना पोंछना भी है
खाने के वक्त
देना ही होगा सबको संग – साथ।
अभी बाकी है
बगीचे की निराई – गुड़ाई
कमीजों पर करनी है इस्त्री
और बच्चों को पहनाना है स्कूली ड्रेस।
काटना भी तो है इस मुए कैन को
और एक बार फिर से
बुहारना ही होगा यह झोंपड़ा
अरे ! बीमार की तीमारदारी तो रह ही गई
अभी बीनना – बटोरना है इधर उधर बिखरे रूई के टुकड़ों को।
धूप ! तुम मुझमें चमक भर जाओ
बारिश ! बरस जाओ मुझ पर
ओस की बूँदों ! मुझ पर हौले – हौले गिरो
और भौंहों में भर दो थोड़ी ठंडक ।
आँधियों ! मुझे यहाँ से दूर उड़ा ले जाओ
तेज हवाओं के जोर से धकेल दो दूर
करने दो अनंत आकाश में तैराकी तब तक
जब तक कि आ न जाए मेरे जी को आराम।
बर्फ़ के फाहों ! मुझ पर आहिस्ता – आहिस्ता गिरो
अपनी उजली धवल चादरें उढ़ाकर
मुझे बर्फीले चुंबन दे जाओ
और सुला दो आज रात चैन से भरी नींद।
सूरज , बारिश , झुके हुए आसमान
पर्वतों , समुद्रों , पत्तियों , पत्थरों
चमकते सितारों और दिप – दिप करते चाँद
तुम्हीं सब तो हो मेरे अपने
तुम्हीं सब तो हो मेरे हमराज़।
***
माया एंजेलो की कविता के साथ उनके बारे में जो कुछ परिचयात्मक ढंग से लिखा गया है; वह प्रशंसनीय है। कविता हमारे समय की सचबयानी है। इस बारे में मैं तो कुछ भी कह सकने का हकदार नहीं हूँ; क्योंकि मैं अपनी स्त्री को ‘वर्किंग वुमन’ के सिवा कुछ समझता ही नहीं। शायद! आपकी भलमनसाहत दूजे किस्म की हो; किन्तु यह कविता मेरे भीतर का एक कोना भी बदल सकी, तो वह कम नहीं होगा।
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