अनुनाद

हम बंड थे किसी हांडी में पके ही नहीं- डोगरी कवि दर्शन दर्शी की कविताएं: अनुवाद एवं चयन- कमल जीत चौधरी

 


   स्वीकारोक्ति        

 

कटोरी में समुद्र

अंजलि में पृथ्वी सजाकर 

मैं बहुत खुश था

अपने आप को एक मीर समझता था।

 

एक दिन गली में नज़र ओलार गयी

देखा

कि

पड़ोसी ने समुद्र को

त्राम्बड़ी* में डाला हुआ है

और पृथ्वी को अपने बहुत बड़े आँगन में 

सजाकर रखा है…

उस दिन से एक चुभन से मर रहा हूँ

अब न खुश हूँ

न मीर हूँ

बस दिन रात

पड़ोसी के आँगन से बड़ा आँगन 

और उसकी त्राम्बड़ी से बड़ी त्राम्बड़ी ढूँढ़
रहा हूँ।

  ***

 * त्राम्बड़ी–  आटा गूँथने का विशेष बर्तन/परात

 

    डाकिया       

 

शुक्ल पक्ष के चाँद ने 

कृष्ण पक्ष में मेरे पास आकर कहा-

मैंने उस स्त्री को विवस्त्र नहाते देखा
था

उसकी जाँघों पर

कुछ लिखा था

उस इबारत पर

तुम्हारे नाम का पुख़्ता भ्रम हुआ है

यह सुनना था

कि मैं अपने पुष्ट पट्टों* को गुदवाकर

उसके नाम के भाव सजाकर

सोच के खेतों में

नई इच्छाएँ उगाकर

शुक्ल पक्ष के चाँद का इंतज़ार कर रहा हूँ

ताकि मैं भी अनलंकृत होकर नहाऊँ

और चाँद मेरा

डाकिया बनकर

मेरे पट्टों पर लिखी 

कैफ़ियत की चिट्ठी उसे दे आए।

  ***

 * पट्ट–  जांघ

 

   रास्ता        

 

तोपों के ऊपर टँगा 

सेतु-सा इंद्रधनुष 

अम्बर को बाहों में भरने के लिए

उकसाता है

पर आकाश चढ़ने की नसैनी नहीं बनता

 

खुशबू ,

अनेक पते थमाती है

पर पतों की पगडण्डी नहीं बनती

 

लोक चर्चा,

हम दोनों के नाम से गाँठा हुआ

एक हिचकोला है

जो हमें कभी मिलवा नहीं सका

 

इंद्रधनुष, खुशबू और लोकचर्चा

उघार तो सकते हैं;

पर रास्ता नहीं बन सकते।

  ***


    लकीर (कवितांश)   

 

दो बिंदुओं को जोड़कर खींची जाए

तो ज्यामिति हुई

ज़रीब रखकर खेतों में खींची जाए

तो बंटवारा हुआ

धरती की छाती पर रखकर खींची जाए

तो दो देशों के बीच सीमारेखा बन जाती है

जो उत्तर-पुस्तिका पर खींच दी जाए

तो काटा मान लिया जाता है…

  ***


   सक्खने*  

 

सिर थे 

         पत्थर थे 

         
         टक्करें थीं

 

घाव थे लहू था पीड़ा थी

 

हाथ थे 

         खार थे 

         
        चुभन थी

 

ठोकर थी पैर थे चीख थी

 

पत्ते थे 

        प्यार था 

         
         भूलें थीं

 

स्मृतियाँ थीं दोस्त थे आग थी

 

मौसम थे 

         
  ख्याल था 

         
               तस्वीरें
थीं

 

रेखाशास्त्र था हथेली थी लकीरें थीं

 

दिन थे 

        तारीखें थीं

 

ऑंख थी आस थी प्रतीक्षा थी

 

कंधों पर ओसियां** थीं 

लकीरें थीं

टूटे दिल की चीत्कार थी

 

सूर्ख फूल बहार हमने जानी ही नहीं 

करते बाड़ कैसे पार; हुन्नर ही नहीं 

दैहिक प्रेम बाढ़ हमने जानी नहीं

मांसलता हमने जानी नहीं 

 

हम बंड*** थे

किसी हांडी में पके ही नहीं। 

सक्खने थे

सारी उम्र सक्खने ही रहे।

  ***

* सक्खने –  खाली/कोरे/पंक्ति से
बाहर/शून्य

 ** ओसियां – प्रश्नावली

 *** बंड –  पकाए हुए चावलों में जो
दाना छिलके समेत रह जाता है।
 

 

   पहला पत्थर (कवितांश)   

 

मेरी छंड* से लिपटाकर;

और बच-बचाकर,

जिसने मेरा फूल-पत्र

उसकी छत पर पहुँचाया था-

वह था:

मेरी जवानी का पहला पत्थर!

***

* छंड–  (Throw) पत्थर आदि
फेंकने को छंड कहते हैं।
 

 

                                                   दर्शन दर्शी    

दर्शन दर्शी
डोगरी के वरिष्ठ कवि लेखक और स्तम्भकार हैं। इनका वास्तविक नाम दर्शन कुमार वैद
है। इनका जन्म बिलावर (कठुआ
, जम्मू-कश्मीर) के एक ऐतिहासिक गाँव भड्डू में 1949 ई. में हुआ। अध्यापन और जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा में रहकर सेवानिवृत्त
हुए
, दर्शी मूलतः रोमानी प्रवृत्ति के कवि हैं। इनके लेखन
में व्यष्टि और स्वीकारोक्ति देखी जा सकती है। डोगरी में इनके दो कविता संग्रह और
एक उपन्यास प्रकाशित हैं।
कोरे काकल कोरी तलियांनामक कविता संग्रह पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (2006 में) प्राप्त हुआ। इनका उपन्यास; ‘गास ओपरा धरत
बग्गानी
हिन्दी में भी अनूदित व प्रकाशित है। इसके अलावा
अंग्रेज़ी में भी इनकी तीन किताबें हैं। दर्शन दर्शी साहित्य अकादमी के डोगरी
सलाहकार बोर्ड के संयोजक भी रहे है।
 

 सम्पर्क: 248, S.R.Enclave, Sidhra,
Jammu–180019.
मोबाइल नम्बर- 9419000319

मेल– darshandarshijammu@gmail.com

                                                

                                               कमल जीत चौधरी    

कमल जीत चौधरी की कविताएँ, आलेख और
अनुवाद अनेक पत्र-पत्रिकाओं
, ब्लॉग्स, वेबसाइट्स
और सामूहिक संकलनों में प्रकाशित हैं। इनकी कुछ कविताएँ मराठी
, उड़िया और बंगला में अनूदित व प्रकाशित हैं। ‘हिन्दी
का नमक
‘,  ‘दुनिया का अंतिम घोषणापत्रऔर समकाल की आवाज़-चयनित कविताएँनामक इनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं। इन्होंने जम्मू-कश्मीर के समकालीन कवियों की चुनिंदा कविताओं की किताब मुझे आई. डी. कार्ड दिलाओका संपादन भी किया है।
इनका पहला कविता संग्रह
; ‘हिन्दी का नमक‘; ‘अनुनाद सम्मानऔर पाखी:शब्द
साधक सम्मान
से सम्मानित है। 

सम्पर्क: गाँव व डाक- काली बड़ी, तहसील व ज़िला- साम्बा, पिन कोड- 184121 जम्मू-कश्मीर फोन नम्बर- 9419274404

0 thoughts on “हम बंड थे किसी हांडी में पके ही नहीं- डोगरी कवि दर्शन दर्शी की कविताएं: अनुवाद एवं चयन- कमल जीत चौधरी”

  1. वाह, बहुत ही हृदय को प्रसन्न करने वाला अनुवाद। एक सुंदर दुनिया में ले जाने की पहल के लिए कमल जीत जी को बधाई । डोगरी के जाने माने कवि दर्शन दर्शी जी को भी बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

  2. बहुत ही सुंदर तथा सशक्त कविताएँ और उतना ही सुंदर अनुवाद. दौनों मित्रों को बहुत बहुत बधाई.

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