अहा
एक था गाँव
गाँव में थे लोग
कुछ भले कुछ भोले
अधिकांश गरीब और विपन्न
लहलहाती थी फसलें
गाँव सुंदर था
एक मुखिया था
राजनीति थी
जन-बल का जोर था
शक्ति प्रदर्शन और अपराध
ईर्ष्या और अहंकार
पीछे पुलिस थी, लालच था
फौजदारी थी, मुकदमे थे
जिले में न्यायालय था, जेल थी, अफसर थे
वकील थे, तारीखें थी
एक अजब सा दुष्चक्र था
गजब संजाल
लोक पर हावी था तंत्र
भले और भोले दोनों मुखिया के पाले में
मेहनती किसान, मजदूर लगे रहते अपने काम में
नहीं समझते जो राजनीति
वे बनते शिकार
सालों साल उलझे रहते मुकदमों में
शोषण था अबाध
बिन पैसे नहीं था न्याय
मुश्किल था निर्दोष साबित कर पाना खुद को
दुर्दिनों की मार झेलता उनका परिवार
यह सब चलता नियति मान सहज भाव से
कभी धीमी गति से कभी तेजी से
मान लिया था ग्रामवासियों ने इसे जीवन का अंग
कभी कभी सुखद पल भी आते थे जीवन में
नहीं होता था झगड़ा झांसा
बतियाते लोग चौपालों में
गाते आल्हा
होली पर खेलते फाग, गाते होली
मिलते गले इकदूसरे से
दीवाली पर जलाते दीप
छोड़ते पटाखे यथासंभव
मनाते खुशियां
नहीं होती जिनकी सामर्थ्य
शामिल होते दूसरों की खुशियों में
उन्हीं क्षणों में याद आती गुप्त जी की कविता
अहा ग्राम्य जीवन भी क्या जीवन है
इन्हीं पलों को मन में समेटे दूर चला आया गाँव से
और पीछे मुड़कर नहीं देखा कभी
चिंगारी
सुनाने को नहीं बची कहानियां
अक्सर तो सुनता ही रहा
मौन को अस्त्र की तरह इस्तेमाल किया
क्या जिया कैसे जिया
वो सब क्या सोचना
न कुछ गर्व करने लायक न पछतावे की बात
पढ़ लिख लिए
मिला रोजगार
कोल्हू के बैल की तरह जुते रहे
विवाह, बच्चे, परिवार
ओढ़ ली जिम्मेदारी
कुछ समय निकाल पढ़ना- लिखना, सभा- सम्मेलन
और दुनिया बदलने की चिंता
बेहतर समाज
समृद्ध संस्कृति
लोग अपनी अपनी बेहतरी में मशगूल
वैश्वीकरण के संजाल में
धुंधलका बढ़ता रहा
धीरे-धीरे खोता गया वो सब
जो संजोया था बरसों-बरस
मन में उड़ती रही पतंगें
आसमान धुंध से भरा था
फूल खिले थे
दृष्टि धुंधली थी
कैटरेक्ट बढ़ आया था आँखों में
हो रहा था बहुत कुछ देश दुनिया में
सूचनाएं ही सूचनाएं
भूख,सूखा, युद्ध, भूकंप, तूफान
और सुविधाओं का बड़ा जखीरा
आनंद, मनोरंजन, भाँति-भाँति के पकवान
भ्रम और झूठ
टीवी,अखबार, वाट्सएप और यूट्यूब
माईकल जैक्सन की तर्ज़ पर नाचता गोएबल्स
कानों में जमता रहा मैल
बचा था मुँह बोलता कड़वा
याद रखने को है क्या
मस्तिष्क में खून और हवा पहुंचती
ऐलोपैथिक टेबलेट की शक्ल
कभी-कभी कौंधती है एक चिंगारी
युवावस्था में पनपी थी जो मन में
थोड़ी देर के लिए
लौट आता है यौवन
जड़ें कहॉं हैं
मुझे जड़ों का ज्ञान नहीं है
कहाँ हैं मेरी जड़ें
हाँ याद है पैतृक गाँव, ननिहाल
कुछ और गाँव,कस्बे जहाँ मैं रहा, पढ़ा और विकसित हुआ
फिर घूमता रहा अनगिनत गाँव, कस्बे, शहर
नौकरी थी, चलाना था घर, परिवार
निभाने थे संबंध, पूरी करनी थी जरूरतें, ख्वाहिशें, शौक
देखा, सीखा, समझा बहुत कुछ
वेश-भूषा, खानपान, भाषा, संस्कृति
बसा हूँ अब गुलाबी नगरी में
गुलाबीपन से दूर
विस्तार पाए उपनगर में
नहीं महसूसता कुछ अलग
जिन नगरों में रहा उनसे
कॉस्मोपोलिटन प्रत्यय
बहुत कुछ समान वेशभूषा, खानपान,
तीज-त्यौहार, रस्म-रवायत
भाषा मानक और मन स्वांतःसुखाय
बोलियाँ घरों तक सीमित
क्या जड़ों की बात करूं
हायब्रिड पौधे हैं, वृक्ष हैं
जमीन कोई भी हो
वे समरूप हैं
समस्यायें वही हैं
वे ही हैं रोजगार
फर्क है गाँव और शहर का
नहीं हैं खेत न कम संसाधन
ग्रामवासी उजड़कर पहुंच रहे
नगरों में
भूल गया हूँ जड़ों को
देख रहा हूँ
तना,
पत्ते, फूल, फल
इन्हें देखकर मुदित हूँ
नहीं है मरीचिका कोई
शरीर पस्त है
आगे नहीं बढ़ा जाता
इस रेगिस्तान में अमिट मरीचिका!
नहीं! आगे नहीं बढूंगा
भ्रम नहीं है अब कोई
खेजड़ी का पेड़ मेरी जीवनरेखा है
ये जो नन्हा पौधा है
यही भविष्य का स्वप्न है
इसे सींचूंगा ओस की बूंदों से
रोपूंगा कुछ और पौधे
खोजूंगा वनस्पतियां
जुटाऊंगा बीज पौधों के
टाँके में भरा पानी ढंकने के लिए खोजना है
कोई शिला, खेजड़ी की टहनियां, आक के पत्ते और मिट्टी
गढ्ढा गहरा करना है
वाष्पित होने से रोकना है
करना है बादलों का इंतजार
बनाना है एक झूपा
बच सकूं ताप और ठंडी हवाओं से
हवाओं का रुख और गति समझना है
सुनना है इनका संगीत
डूबना है इन स्वर लहरियों में
रोहिड़े में फूल के खिलने पर
बेतहाशा खुश होना है
अब यहीं रुकना है मुझे
यही है मेरा गंतव्य
अगर कोई भटकता हुआ मनुष्य
आयेगा यहां तो उसे मैं
ठहराऊंगा झूपे में
खाने को दूंगा रेत में उगा शाक
पीने को दूंगा टांके में संरक्षित पानी
सुनाऊंगा उसे सूनेपन का संगीत
और मरीचिका का सच
जो समझा हूं मैं इस जीवन-प्रवास में
जड़ता
ठहर गया है सब कुछ
समय,हवा, सांस,धड़कन
न्यूरॉन बंद कर चुके हैं संकेत देना
मस्तिष्क में गुंजलक है
जड़ता व्याप्त है धरती और आकाश में
जो चल रहा है वह चल रहा है
चलना ही है उसे, बिना सोचे समझे
जो रुका है वह रुका ही रहेगा
बाहरी किसी हस्तक्षेप के बिना
नहीं होगा किसी की स्थिति में परिवर्तन स्वतः
यह न्यूटन का गति का पहला नियम है
ऊर्जा चाहिए बहुत, तोड़ने के लिए जड़ता
तोड़-ताड़ में हो सकता है विध्वंस भी
दूर से झांकती है सृजनात्मकता
दिगंत के छोर से
सौर मंडल में
उत्प्रेरक बन
वास्तविक प्रेरणा तो धरती पर
मनुष्यों के परस्पर संबधों के ताप से उपजती है
जो ठंडे पड़े हैं इन दिनों
कहॉं हैं अब वो नक्शे’पा
गुंजलक है हर तरफ
नहीं चलता दिमाग़
क्या करना है
किसके लिए करना है
या सोचना है सिर्फ़ अपने बारे
कुछ सीखा था, पढ़ा था, सोचा था
वो नक्शे‘पा धुंधले हुए
स्मृतियों में कुछ है जो
उभरता है कभी कभी
कुछ परिजन, कुछ शिक्षक, कुछ मित्र
दादी का कंधे पर बिठाकर सिंहपुर मेला ले जाना
लकड़ी, प्लास्टिक और मिट्टी के
छोटे-छोटे आकर्षक खिलौने, बर्तन
मिठाई, पूरियां और देशी आम
दूसरी दुनिया में स्कूल, शिक्षक और सहपाठी
जरूरतें सिर्फ एक जोड़ कपड़े, खाना और खेलना
न कुहासा, धुंध, न कोई चाहत
खुला आंगन, खुला आसमान
दुख, सुख छणिक
छोटी थी दुनिया
श्रम, संतोष, सहजता, सहिष्णुता
कम विवाद, संवाद अधिक
तेज धूप, लू, उड़ती धूल
आँखों में किरकिराती
हल,बैल, गाय,भैंस, बकरियां
चौमासा, कीचड़, खरीफ की फसल
मक्का, ज्वार, बाजरा
चौपाल, आल्हा, रामचरित मानस
शिशिर, हेमंत, रबी की फसल
आलू, गुड़, गन्ना
अलाव, विबाइयां, सरसों के तेल की मालिश
हायर सेकंडरी स्कूल
फर्क आर्ट, साइंस, कॉमर्स का
क्या बनना है
बाबू, शिक्षक, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील
कुछ सपने, कुछ आशंकाएं
व्यवसायिक शिक्षा
साहित्य, पत्रिकाएं, लायब्रेरी, विचार, राजनीति, दर्शन
पूंजी, मनुस्यता, समाज, समता
बहसें, विचारधारा
वसुधैव कुटुंबकम
प्रसाद, पंत, निराला
मुक्तिबोध, नागार्जुन, त्रिलोचन
नेहरू, लोहिया, अटल, पीसी जोशी, डांगे, ईएमएस, ज्योति बसु, पटनायक, मजूमदार
नौकरी, विवाह, परिवार
बदल रहा था बहुत कुछ
रफ्तार धीमी थी तब
जिज्ञासा बहुत थी
उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण, उत्तर आधुनिकता
रथ यात्रा, बाबरी मस्जिद, गुजरात
मन में उठते सवाल
स्वाधीनता और कुर्बानियां अनेक
भगत,सुखदेव, राजगुरू, बिस्मिल, आजाद, अशफाक
नक्शे‘पा धुंधलाए कुछ और
बढ़ी आवारा पूंजी
बढ़ी परिवर्तन की गति
युवा पीढ़ी के अपने पैमाने, सपने, आदर्श
टेक्नोलॉजी, सूचना प्रौद्योगिकी, मनःस्थिति
चौंधियाई आँखें
मिटे नक्शे‘पा
रास्ते अनेक, अनेक भ्रम
लकीर पीटते रहे हम
धुंधली आँखों से देखते गुबार
शायद कोई सपना पल रहा होगा
नई आँखों में
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संपर्क : 34/242, सेक्टर -3, प्रताप नगर, जयपुर – 302033 (राजस्थान)
मो.7838897877