अनुनाद

ब्राह्मणी – शंभु राणा / अनुवाद : हिमांशु विश्‍वकर्मा

courtesy : Bhaskar Bhauryal

दुपहरीमै हाड़ गलूनी वालि घाम में उ हिटनमै छि। पाणी तीसलै गालण सुख गिछि। पसीणलै उ पुररी नै गिछि। पसीण पोछान-पोछान उईक धोतिक पाल लै भलिकै भिज गिछि। हिटनैकि चाल शरब्बीनैकि जैसि है गिछि। एक कदमलै टीपण पहाड़ छि, आंगैकि ताक़त जाणि कैले चुसि है…!

उ एक यजमान यां बरियाताक शकुनआंखर गानैदें गई छि और अब लड़ी-झगड़ी वापस उनै छि। रात्ते-रात्ते यजमानै दगाड़ झगड़ है गिछि। उईक कुनैछि कि डबलनाक दगाड़ एक ध्वेति लै दियो। एक्को त च्योल छ व्यिक, द्वि-चारजै कि छन। एक ध्वेतित् मेरि लै हुन्येभे। पर यजमनले न मानि। तभै यहैंलै रीस आ ग्ये। जदुक भेंट राखिछ उहै वें ख़िदबैर, दमकिनैं बाट लागि ग्ये।

दमकिबैर वां भटी आएत गिछि पर अब पछत लै पडनैछी। गौ आजिलै छै-सात किलोमीटर हैं कम नि छि। और भुखलै हाल-बेहाल हुन भैगिछि। रात्ते यजमानाक यां एक गिलास चहा खाई छि बस। अब उहै उबड़ खडंच बाटूँणी हिटन-हिटन द्वि-तीन घंट है गिछि। भुखलै, घामलै और पाणी तीसलै मरनैकि जैसि हालत है गिछि। उहै अपुण आपलै रीस उन भ्येगे। उ सोचन लागि कि ‘मि बेकार मै रीसाबैर आ ग्युं’। अपुण यजमान छि, कधली अघिल-पछिल और लैल्युछू। आज बरयात भ्ये., भ्वोल्धैं नामकरण ह्वल। य क्वे आखरी मौकजै कि छि। बामण कब नै चाईंन…..केका मरन मै, ज्वीण मै, हर बखत। क्याऽऽऽऽ…यार। मि लै खाली एक ध्वेतिक् चक्कर मै मरयू। जतुक दी राखि छि उलै ग्यो। यजमान छुटी, उ अलग और के पटी नै उईकी परेशानी अलग।

उ जैहकै-तैहकै हिटनमै छि। चाल अब बिना भींग चाईयां हुनै छि। कधली खुट यां, कधली खुट वाँ ठोकर खानमै छि। मुख बिनलै आसपास क्वे शेल वाल रुखलै नि ध्यकिनैछी। जैक शेल मै बसिबैर मणि दमै भरीन। थोडा उकालूंलै उ घुणन मै हाथ टेकी-टेकि उकलन लागी रिछी। उ बार-बार सोच पडनैछि कि अब तो मि समणीक सालूक शेल वाल जंगल मै पूजी ग्युं। उ बण आजिलै एक किलोमीटर हैं कम निछि। वाँ पूजिबैर लैफाली बैर दम भारिनैकी सोचलै उहै आगिल कै बडनैकी हिम्मत उनैछि, नतिएलनतक उ कधलि फरकि जनि। शेलाण त एक किलोमीटरमै ध्यकिनलागि-गछि पर पाणी? … उ त घर गौं पूजहैं पैनी मिलन मुश्किल छि। उ बाटूँनैला द्वि गौ तो पड़छि पर वाँक पाणी बामणी कैहैहै पीछि.. हरिजनौक गौ छन ! छि…..!

उठन-पड़न आँखर उ उकाल चड़ी ग्ये, जांबै बण शुरू और उकाल खत्म छि। आगिलकैक बाट हिटन मै अब क्वे उकाल नहाति, पुररे उलारै-उलार छ। सालूक रुखनैकी शेल बामणीलै पड़न भैग्ये। शेललै पूजन सैअत जस्सीक् भिंग बैठ्नैकी बटी रिछी उधली उहै वें तलिकै भटि कै मनखनैकी बोलनैकी आवाज सुणाई दे। दीठ हाली जबत उईल ध्यक कि उत्तीलै तलिमै एक मौ बैठ बैर खान खनानमैंछी। घरवाली और उईकी आदमीक दिगाड़, उनर चार-पाँच सालक च्येलि अचारक लै आलूक परौठ खानैछी।

यो ध्येकिबैर बामणी खापुनलै पत्तो नै काँ भटि पाणि आ। बड़ी मुश्किललै उईली अपुण खापक पाणी रोकि और पुछि- “तमार पास पाणी छ पिनै दें?”

“होई-होई छनैह!” आदमिले हाथक परौठ आपुनी घरवालिहै थमैबैर, एक अन्कस्से पाणिक टोंटी वाल डाब और एक गिलास बामणीक समडीलै राखि दे। एक, द्वि, तीन ….पुररा पाँच गिलास पाणी उ पी ग्ये।

“कल्यो लै खाओ दीदी!” घरवालिल कौ।

“हाँ-हाँ महाराज खाओईऽऽ,” आदमिले कौ और परौठनले भरीं डाब, अचारैकि शीशी बामणी तर्फ आगिलकै कर दे। बामणिलै झट्ट द्वि परौठ उठान और उयिमै आचार राखिबैर खान भ्येगे। यो उईक ज्योंनछना पैलीबार छिकि उयिलि कै बिन पछ्याणाक आदमिनीक हाथक अन्न-जल ग्रहण करि। नति जब तलक उहै कैका सात पुश्तन् तककि जानकारी न हुनि, तब तक कैक मजाल भ्येकि, उ कै मनखान दगाड़ भलिकै बात-बातको कर दे। खान-पीण त भौत्ते दुरैकी बात भ्ये। योत पापी पेटकि भूखैकि वैली हुई करिश्मा छि, कि बामणिलै बिन के जाण-पछ्याणाक, काँक आदिमिनिक हाथक अन्न-जल खा हालि। पेटूनलै भुखलै अन्याड़है अलावा के दुहरी और चीज छैनै, फिर काँभटि उँछि इतुक लम्बी पूछताछिक तागत? ना क्वे धरम, ना क्वे जात- भुखैले उईक

भतर बसी बामणहै मार हालि, जो इस टैअपाक पूछ जात-पात, धरम-काज, खान-पिनीक पचड़न मै रूछी और दुःख पानी भ्यो।

देखन-देखनें बामणिलै परौठनाक पूर्रो डाब चट करदे। अब जाबैर उईकी प्राण थमी ग्या।

“काँक भिया तुमि लोग? को गौ तरफ जनहा?” बामणिलै पुछि।

“हामि दिल्लीभै उ निया अपुण गौ। वाँ भोत्ते गरमी हैरे अछ्यालन। तभै सोचि छुट्टी लिबैर थ्वाड दिन गौ तर्फ आऽ जनु। फिर नानतिन लैह हुनि वाल छ। यो काम अपुण घरैमे ठिकले हुनि भ्यो। दूर-परदेश मै खर्चे-खर्च…”

“दीदी मैण त पुर है ग्यान…. बेल्लि भै कधली-कधलि पीढ़ लागिग्ये जसलै हुनौ। अल्ले थ्वाड देर पैंल्लि… अ ओ..ऊईज्या..”…घरवालिहै अचानक पिढ लागिग्ये और बामणी चाई-चाई रैगे। उहै विश्वासै नि भ्यो कि पीढ लागी ग्ये ह्वेलि।

घरवालाक लै हिय घबरै ग्यो। तब उ घरवालिक ख्वर कुखियालिमै राखि बैर मस्यारन लाग्यो। विकी च्येली लै अलन जौ भैग्ये।

घरवालाले बामणी तर्फ अन्कस्सी नजर हाली। ‘अब? अब कि होल महाराज? य संकटक घड़ी मै तुमि हाथ लगाओ धैं,’ उ यस कुन चानैछि। फिर बोलि पड़ी, “महाराज अब कि होल? गौ लै आजि डेढ़-द्वि किलोमीटर छ। यो बेचारी यो हाल मै हिटलै नि सगलि।

घाम लैह इदुग लागि रौ…. अब जी लैह होल इत्ती हुन छ। तमरो साथ छ आब।” घरवालले हाथ होड़ी हालि।

बामणिलै उ घरवालिक खुट सरऽकै बैर भलिकै सजलै राखन और घरवालाहै समझा कि “फिकर जन करो सबब ठाक कै ह्वल।” घरवालि पूर्र जोरलगाबैर अपुण पिढ़-चडकहै थामनमै छि।

‘तुमार गौ कवाल छ?” बामणिलै पुछि।

“महाराज! रतखान क छन।” थ्वाड दूरलै बसि-बसि सिगरेट पीन-पीनै एक आदिमिले कौ।

“रतखान!” बामणिलै जणी भूत देखिहै उस्सिकै अज्गी ग्ये।

“हाँ महाराज! मेरु बाज्यू नौ केशव राम भ्यो ….” उईली कदुक बात बतै, लेकिन बामणिहै काँ भै सुणाई दिन लागी भ्यो। उईक बरमांडा भीतर शांख-घंटी झा बाजन लागिग्या। उहै लागनैछी कि क्वे उईक ख्वार मै घूण बरसोंनौ। उईक भतर भटि क्वे फटी बॉस झ चिल्लान मै छि, “त्वेल एक अछूूत हाथक खान खै है। पाणी पी है। तू बामण छियी। कर हालि जनमभरक धरम- करमक चौपट।” अब खान-पिन मिलना बाद फिर जागी ग्यो उईक भतारक बामण। बामणी भतरै-भतर मन मै सोचन भैग्ये, अब कि होल? …. मिले अब जाड़ि है यो कु गौक छन. …? केशव ल्वारक च्योल, पर यी एलनतक न जड़नकि मि को छियुं? को गौक छियुं? को जातिक छियुं…? मि कैहैक जै हाथ लगुँ यो नानतिनहै जन्मोंन मै? छि! छि! मनखनन पत्तो चलल जबत..अछूत..बामण….हाय! बात फ़ैल जालि। आदिमीलै कि कौल?…सासु? उ त देहली मै खुटलै नि राखन देलि। पूर्र मौक खान-पिनि बंद है जाल। पूर्र मौ पाणी तीसले मरि जाल। लेकिन खान त मिल इनोर खैहै? आँगाक भतर बसि बामणलै एक हल निकालि., “भाज यां भटे, इहें पैंल्ली कि इलोगन त्यार बारिमै पत्तो चलो। फिर काँ भै बात सिल्कलि!

बामणिलै घरवाली मुखक तर्फ चा। उईकी पिढ़ लगातार बुढ़नमें छि। तभै उईली कसबैर बामणिक हाथ थामी राख्छी। जड़ी उहै डर लागि रिछी कि बामणि भाजित नि जालि। उहै पीड़ान देखबैर बामणी एक बार सब भूल ग्ये। उईक बामणपन गायब जस हैग्यो। लेकिन उधली उ फिर बामण है ग्ये। भतराक बामण आजि जागि ग्यो। अपुण जुबानमै चिकनी-चुपड़ी मिठाई जस घोलि बैर उईक कौ- “थ्वाडा हाथ छाड़ो धैं, मिहै पिसाब लागि रै। उधली पाणी भौत पी हैछि नै तभै,” आदमिक घरवालिहैं हाथ छूडैबैर बामणी तलिकै झाड़क पछिलतरफ दस-बीस कदम बैठी-बैठ नैह ग्ये। उईली पलटी बैर चा जबत क्वे नि द्य्खीनिछी, न मलि भै ना तली भै। उनार बीच में लम्ब और झिक्के झाड़ छि, आगिलक बाटलै झाड़लै ढकी रैछी। बामणी एक बारआजि पछिलकै चा। ठिक्क चाना बाद बामनी भतर बसि बामणले जोरले धात ल्गै, “भाऽऽज!” उछलिबैर गुरकी नै ज्यू, यो डरले बामणिलै अपुनी ध्वेतिपहै घुणऽन तक टिपँ और डरिबैर घोड़कि जस भाजि ग्ये।

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मूल कहानी ब्राह्मणी – शंंभु राणा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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