अनुनाद

भैंस का कट्या – विद्यासागर नौटियाल /अनुवाद : हिमांशु विश्‍वकर्मा

courtesy : Bhaskar Bhauryal

पौ फूटिन लागि रै छि। लम्बी-काली रातक आन्यर गर्भ भटि एक हसीन-स्वाणी रात ब्यागे छि। सुरजाक घावाड् काल है पछिल छोड़ भैर अपुण पूरी रफ़्तार में दौड़ान लागि रिछि। घड़ी-घड़ी रंग बदलनी वाल आगासाक, एक कून में अचानक लाल सुरजाक बढ़िया, चकमक किरण, ओंस में नै भैर, अंगडाई लिनलागरीई धरती तरफ झाँकन भैगे। घराक छाज में बैठीभैर अपुण हुक्का गुडगुडूण में मस्त हौंस्यारू है तलि पटांगण भटि, अपुण स्याणी कि धात सुणाई दे – भैंस ब्यागी हो। माट-ढुंगनले बणी उ कच्च मकान में गोठ सब्बन है तल्ली छि और मलि क कम्मरनक इस्तमाल लोगों अपुण रहण-सहण करनदे करनि भ्या। गढ़वालाक किसान पैल्ली भटि अपुण रिवाज ले इस्सी के रौण आई रयान। एक्को घर में अलग-अलग हिस्सन में कति आदिम रौणान, कति उनार गोरु-भैंस । यस रहण-सहण वेलि कुदरती इनर पूर्र जीवन एक-दुहारा करीब लाड़ ले हुनि भ्यो। अपुण स्याणी धात कि आवाज कानन में पड़ण सैआत हौंस्यारू क मन ख़ुशी ले गद्गदी ग्यो। चिलम एक तर्फ राक्खी भें फट्ट थड़ी ग्यो और खुशिक यस मौक में अन्कस्सो झ करन-करनें खुटकड़ी भें तलि कै ग्यो। भैंस है थोड़ दूर उईक समणी लै थड़ी रई उईकि स्याणी है, धेकाई द्यो कि हौंस्यारू गोठाक द्वार ला थढ़ी भें उईलि भैंसेहै लाड करनौ। यस अनोख, मयाल भैंस ले जुआब में ‘भ्आं-भ्आं’ आवाज़ करि।

आठ सालक गबलू एलतक बिस्तर में पड़ी छि। उईकि निन खुलि त गिछि, तब ले पड़ी रिछी। उठन सैआत उहै गोरु दे दिनी भ्या। जैहै उ चारुणदे ले जानि भ्यो। कधली गोरु है दिनमें ब्याँल भें जबत, उईकि ईज- बाज्यू उहै और काम दी दिनी भ्या। जैह्के कै डोमहै बुला ल्यून, पण्डिज्यू घर जैअ भैर पूर्णमासी दिनक पत्तो लागून। केका घर वालनाक पैछ करि पिस्यु वापस पुज्यून या कैक पड़ोस वालनाक भंड-कुंड लौटा ल्यून। गबलू है पत्तो भ्यो उठन सैआत उहै रात तकक काम में व्यस्त रूण पढोल, तभै आरामलि देर लगा भें उठनी भ्यो।

ईजाकि धात उईकि कानन में लै पड़ी। भैंसक बाछ ह्यूनी वाल छ, गबलू हमेशा बाज्यू धें पूछनी भ्यो – कब तलक होल येक बाछ? जवाब में हौंस्यारू बतौनी भ्यो- है जाल च्याला, तभै तू लेह देखि लिया। है ही ज्याल च्याला! कदुक मैंणों भटि बाप और च्याल इंतज़ार में छि और आजक दिन भैंसेहै बाछ ह्वेगी।

बिस्तर में भै उठभैर गबलू नंगण है भ्यार कै दौड़ी।

कपाड़ पह्नली मेरा च्याला! मतारि कि आवाज सुङैई दे – ठंड लागि जाल।

गबलू दौड़िभेर एक कुरत कानि मै राखि और गोठाक द्वार ला आ भैर थड़ी ग्यो।

हौंस्यारू भतर जान्भैग्यो। गबलू लैह उईक पछिल-पछिल ग्यो – जाग च्याला जाग ! भैंस मारल हा ऐल! बाज्यूलै खुशिल उछलि भैर कौ। हौंस्यारू अन्यार गोठक भतर पूज्अ। एक तरफ गोरु बाधि छिदुसार तरफ भैंस. जाभैर उईलि भैंसहै म्ह्स्यार।

द्वार लै थड़ी रई हौंस्यारू स्याणील पुछि – कि भ्यो?

हौंस्यारू ले निराश ह्वेभेर गोठ भतर भटि जवाब दे- ‘काट्ट’।

-“तला थोरेटू ही ह्वेई”(छि, काट्ट ह्वेगी) – हौंस्यारू कि स्याणीले अफ़सोस जता भैर कौ।

भैंस क काट्ट को जन्म इन किसानन भल ना लागुन। एक तो व बेकार हूँ और फिर उहै बचून ले कठिन। पुराण जमानाक लोग कुछि – भैंस क काट्ट कुनि भ्यो – “कित खौं घटकै, कित मरौं पटकैं।” (गढ़वाली कहावत) या तै जी भैरभे दूध पियूल या तुरंत मरी ज्यूल। हुनि ले इस्सो भ्यो भैसक बाछि (थोरि) जदुक दूध पीनी भ्येउविक दुगुण भैंस क काट्ट (थोर) पी जनि भ्यो। और सच में कम दूध दिला जबत उ हगिले मरि जां। और लोग उहै बचौण ले नि चानी भ्या। अपुन पालि नना नन्तिनिन को जवाण हुनसैआत काटन् ध्यकन चां? लगभग सब्बे भैंस क काट्ट जैहै गढ़वाली भाषा मै ‘बेल्ला’ कुनि भ्या, ठुल हुनसैआत देवी-देव्ताना थान में बलि दी भैर मार दिनी भ्या. देव्ताना कि पुज हुनि भ्ये और इनरिकी हत्या। हौंस्यारू निराश मनले भ्यार कै आ। तभै गबलू बहुत ख़ुशी हैबेर कौ- “आहा! भुला ह्वैगे” (आहा! नान भै ह्वेगी)। – आहा भुला ह्वैगे. निराश, रिसाई हौंस्यारू है गबलू कि तुतलि अवाजकि माया लै घेरि ले। उईलि उईक ख्वार में हाथ राखि भेर कौ – हाँ च्याला, तेरो नान भुली (भै) हैरि।

गबलू हौंस्यारू क इकलौत च्यल छि। आठ बरस पैली गबलू भ्यो। तब भटि उईक द्वी संतान आजि भ्यान– एक च्योलो, एक च्यलि। द्वीन में भें क्वे ले नि बच सकीं। च्येला है भौत ज़र आई छि, च्यलि क पेट-पीड़ हुई छि। ननु-नान च्यल गबलू हमेशा कैधें भुला या भुली कुनधें तड़पिनी भ्यो। उ सोचनी भ्यो भैंसक बाछ होल जबत उहै ‘भुला’ कौल, बाछी होलि जबत उधें ‘भुली’ कौल। गबलू एक बार फिर खुशी है गीछि और जोरेले चिल्लान भैर – आहा भै है ग्यो. आहा भै है ग्यो।

उधलि उईलि बाज्यूधें पूछो – यीक नाम कि राखि-राखो, बाज्यू?

के ना चेला – हौंस्यारू ले निराश है भैर कौ

पैली साल गबलू क जो भै मर रिछि, उईक नाम ‘गज्जू’ छि. गबलू ले सोचि – ‘उ म्यर नान भै छि। उईक नाम ‘गज्जू’ छि, यौ लै म्यरो नान भै छु। ये नाम लै ‘गज्जू’ राखि दिनों।

– बाज्यू, उईल कौ।

–  होई च्यला !

– येक नाम ‘गज्जू’ राखि द्यो नैं !

हौंस्यारू कें अपुण नान गज्जू कि याद आग्ये। उकें ज़र आई रछि। भौतै तेज ज़र। साल भर हेग्यो उकें मरि।

– राखि द्यो ना बाज्यू ! गबलू ले आजि कौ।

– कैह ले च्यला, गज्जू ही कैह ले, गज्जू तो काँप ग्यो कम्बकत! यो कैह भैर हौंस्यारू छाज मै जन भैग्यो।

गबलू गोठाक द्वार लै है थड़ी रिछी। भ्यारै भटि उ एक हाथ अघिल के बड़ै भैर अरामलि भतर कै कुन- कुनै ग्यो – आ, भुला गज्जू आ, आ गज्जू आ ! उधलि उईकि ईजाले आभैर भैंस है हाथ लगुन शुरू करौ। उईक बाज्यू भैंसहै म्स्यारन् लाग ग्यो। गबलू भैंसक डरिले द्वार लैया थाड़ हैभैर भैंस क बाछ है लाड करन लाग रौ छि। तभै हौंस्यारू ले गोरु कें खोल भै भ्यार भज्या। गोरु है लेजा भैर गबलू रोजकि भांति बाअण नैह ग्यो। उ दिन मै खान-खानेकि आ, पजै आजि बाअण है नैग्यो। फिर ब्याल के गबलू घर आ ग्यो। गोरु है बाँधी भैर छाज मै बैठी ही रिछी कि ईजाल वहै धाल लगै – गबलू याँ औधै मी भैंसहै हाथ लगुन्यु तू यौ बाछ है थामलै। फट्ट गबलू गोठाक तरफ दौड़ी, जा भैर बाछाक द्वाँल थामी भैर उईलि गज्जू है भैंसक थोण लैभैर अलग करौ। ईजालि हाथ लागुण शुरू करौ। जधलि ईजालि हाथ लागून शुरू करौ तभै गज्जू है फिर भैसक थोंण चुस्नक मौक मिली। 

तब गबलू जै भैर चुल पण बैठ ग्यो। खान खै भैर गबलू लाफलि ग्यो। और दिनों कि भैं वहै एकदम नीन नि ऐअ। उ सोचन लागि राछि कि उहै ‘भै’ हैरिछी। एक द्वि बार उईलि पड़न-पड़नै सोची कि गज्जू है च्या ल्यु। पर रात मै भूतक डरिल अन्यार मै उ यकलै न जै सकी। 

ईजाल धात लगा – गबलू सुसु करि लै, नति रात में बिस्तर मै मुतलै। चल भ्यार औ। गबलू है मौक मिली ग्यो, दौड़ भैर भ्यार आ। ईजा दगड़ी पटांगण मै उतरी। सुसु करि भे उ गोठा तरफ गज्जू है चान जन भै ग्यो। पर द्वार ढ़की छि। बागक डरील द्वार आघिल बंद करि दिनी भ्या, नति बाघ रात मै कभै लै आभेर गोर- बाछन लै अटैक करि दिनी भ्यो।

दौड़ी-दौड़ी ईजा ले उईक हाथ पकड़ी लै। हिट च्याला पड़न दें हिट, याँ-वाँ कआँ जनहै तू! – ईजा ले लाडल कौ।

– ईजा जरा गज्जू है च्या लीणु, गबलू ले जवाब दे।

– नै च्याला भोल धै चान, एल उ पड़ी री होलू।

 ईजाल गबलू है कुख्याली मै उठे भेर वहै लाड करी। गबलू ईजाक कुख्यालुण में चिपकी ग्यो। ईजाक़ गालोन लै हाथ डाली भेर उईलि कौ – ईजा भोल रात्ते जभ तू भैंस है हाथ लगाली तभै गज्जू है मि थामूल।

– त्वी पकड़िये म्यर च्यला। ईजा क प्यार उमड़ी आ।

गबलू फिर पड़ी ग्यो फिर उईक ईज-बाब लै पड़ी ग्या। लम्फू मै बुझूल ईजा कैबेर उईलि उठी भैर लम्फू मै फूंक मारी और आपुण जाग में जैबेर लफाली ग्यो।

– उहै आज नींन नि उनछी। गबलू ईजा ले हौंस्यारू है कौ।

– आज त उ भैंसक बाछक बार में ही सोचन लाग री। हौंस्यारू लै जवाब दे।

गबलू शरमाई ग्यो। उईलि आँख बंद करि भैर आपुण ईज-बाबू को देखुण चा कि उ पड़ी ग्योउस अन्यार में उई आँख खुलि छि या बंद उईक ईज-बाज्यू नि देखि सकछि।

गबलू गज्जू बारी में सोचन लागी रछि। तभै हौलि आवाज मै उईकि ईजा ले कौ – गबलू? गबलू गज्जू का सोच में ही छि। ईजाक आवाज क उत्तर दींन वहै बेकार लागो। यौ सोचकर कि उईक बाज्यू फिर वहै यौ न कैह दे कि उ गज्जू का बारे में सोच नौ।

थ्वाड़ देर तक क्वे आवाज नि आय। गबलू मस्त है भैर आरामल सोचन में छि। भ्यार भै उनी वाली तेज पहाड़ी हाऊ द्वारक छेदन बाट बिलकी भै ‘सी, सी, ई….स्यूंऊ’ उहै सुणै दिनछी। अचानक उहै लागो कि उईकि ईज काँपन रै।

थ्वाड़ देर बाद गबलू क ईज-बाज्यू बत्कौंन मै लागि ग्या। ईजा ले कौ – यौ काट्ट है छा:

पीलै दयूल, बेकार कि करनछ इहै पालि भैर।

गबलू ले यौ बात सूण नैछि। बज्यूल कौ – अरे रहूण दिनु, आफी-अफ़ी मरि जाल।

गज्जू है बचै भै राखन गबलू क ईज-बाबूक सामणी लै एक समस्सा छि। अभागी गज्जू नर जातिक छि जहै मारनेकि कोशिश, यअदै करन लागी रछि कि उ झीक्क दूध पियौल, हौंस्यारू और उईकि स्याणी आपुन हिसाब क बराबर घ्यू-दूध नि बणै सकाल।

ईजा ले फिर कौ – पत् नै हो, मरलो या नि मरल; पर जब तक जिन्द रौल तब तक सब दूध पी जाल।

– अरे ठुल हूँन दे, फिर कुछ डबलन में उठै ल्यूंन।

– हाय, हाय, वाँ बेचला यअहै ? मार नधैं ? हे राम ! यअहै निक त अल्ले मार द्यो। कि फैद आपुण हाथ- खुटि लै पालि-पोसी भैर मार नधैं दी द्यो ?

– ठीक ठाक डबल ल्ये त मिलाल।

– नि चाई तस डबल, जो आपुण हाथ-खुटि लै पालि बाछक् मौत कि गलेदारिक हो। और फिर दूध जै बचल जबत, उत्कक घ्यू लै बिक जाल।

गबलू क ईज-बाज्यू द्वी-दी गज्जू है मारण चाँछि। उईकि ईज गज्जू है अल्ले मारि भैर मुक्त हुन चाँछि और बाज्यू गज्जू है ठुल हुण सैआत दुहरा हाथ मर न है दी दिन चाँछि। दया तो द्वि नैका भीतर छि। ईज आपुण पालि बाछकि हत्या नि देख सक्छी और उईक बाज्यू आपुण बाछहै आपुण हाथल नि मार सकछि।

गबलू ई बात सुणी भैर सह नि सकि। उ इस्स माहौल में पलि छि। भले ही उ एल नान छि, पर उहै समाजक सब रीति रिवाजक बार मै पत्त चल नछी। उईलि आपुण आँखनैले भैंसक बाछ नैकि मौत देखि राखि छि और जवाण भैंस नैकि हत्या देखि राखि छि। उ समझ गैछि कि उईक ईज-बाज्यूनक बिच बतको उईक भैय्या गज्जू बारी में हुने छि।

– ईजा, गज्जू है ना मारि हाँ ! गबलू रुण भैग्यो।

– अरे तू पड़े नै एलन तक ? उईक बज्यू ले सवाल करि।

– कतुक बेवकूफ छ तू, तब भटी चुप चाप पड़ी रौ, इतुक नान छू फिर ले एब देख धै येक। ईजा ले शरमिलि आवाज मै आपुण बैग है कौ – कस कलजुग लागि रौ, देखु तौ तभ भटी कस चुप-चाप छि एलन तक।

गबलूक समज्झ में न आय कि उईक कि एब छी।

– पड़ ज अब ! उईक बाज्यू ले डाठी भैर कौ।

एक दिन जब ईज भैंसहै हाथ लगून दें आ और गबलू ले गज्जू है खोलौ, तो उ उईक थौण लै न लागि। गबलू ले उहै पकड़ भै कौ- आ भुला। आ ! दूध पी ले। पर गज्जू ले थोण भटी मुख हटे दे।

गबलू चिल्लोन भैग्यो – ईजा, त्वेल इहै मार नधैं छा: पिला है।

ना च्याला, मि क्या धैं पिलून तहै छा: ? मि तहै मारण ज कि चाँ। नि मारून च्याला तहै।

गबलू ले सोची कि उ दिन वालि बात बतै द्यु, जब ईज उईक बाज्यू हैं छा: पिलौनी वालि बात कर नैछि। पर पत्त न क्यादैं उ झैंपी ग्यो और कैह नि सकी। ईजा ले क्या धैं कैह होल – कस एबी छ यौ ईजाक आवाज मै अन्कस्सै बदलि क्या धैं आई हौल?

ईजैहै लै क्याप्प जस है ग्यो। गज्जू कि तबियत लै ख़राब है गिछि। गबलू लै गज्जूक कन्यून लै अंगाल हाली भैर रोंण भैग्यो। ईजैहै लै फिकर हैगे। कि यौ तो आज दूधै न पिन्यौ। ईजा ले हौंस्यारू है धात लगै – काँ छियायाँ आओ धै फटाफट!

हौंस्यारू ले आ भैर पुछौ – कि भ्यो ?

– पत्त ने कि भ्यो। बेल्ली तक तो दूध पिन रिछि।

– दूध देहै, कैहै आज ?

– गैणी मुई लै गैछि आज, उईकि नजर लागीं ह्वेलि।

येत् मुसीबत छ. दूध दिन त पाप छ। आपुण आप गोर-भैस पालि न सकन दुहरनक ग्वर-भैंसन लै टोना टोटका करनन। यस काम करि भैर अब अपुण धिनालि चटकारने ह्वेलि। हरामी सालि‍!

येत मुश्किल छू यो गौ मै। भगवान यस दुष्टन मारन ले नै। व्हैं भल पुर्र गौ उजड़ जान जबत निक्कौ हून।

थोड़ा जागी भैर ईजा ले फिर कौ – पण्डित ज्यू पास जै भैर मंत्र लगै आओ।

एक रूपै खल्दियुं लै राखि भैर हौंस्यारू पण्डितक पास ग्यो। पण्डितल कुछ मुख-मुखै बड़-बड़ करि। जो हौंस्यारू क समझ में न आई। नहै उईलि इतुक ठुल जीवन मै आजतलक समझनाकि कोशिश करि।

फिर घर आए भैर उईकि स्याणी ले गज्जू है भैंसक थोंण लै लगुनकि कतु प्रयास करौ। गज्जू ले पेंल्ली कि भैंति दूध नै पी। ईजा ले रीषलै कौ – भौत भयंकर नजर लगै राखि रांड ले। पण्डित ज्यू मंत्र लै हमर भैंस लै काम न करन्या। उ रात भैंसल दूध नदे. गज्जूल गोरु दूध ले नै पी। बिन के खाय-पिए रो भैर पड़ी ग्यो। दुहार दिन गज्जूल दूध पिन शुरू कर दे। तब जैभेर हौंस्यारू और उईक स्याणिक जान मै जान ऐ। गब्लू लै ख़ुश है ग्यो। गज्जू है उ आपुण भाई समझनि भ्यो। उई सुख में सुखी और दुःख में दुखी लै हुनी भ्यो। द्वीनक रिश्त भौतै मजबूत छी। एक्क भैंसक दूध पी भैर, द्वि या द्वि ठुल हूणै छि। द्वी या द्वी नानतिनै छि, गबलू आपुण जातिक पोथ छि और गज्जू आपुण जातिक पौथ।

इसिकै द्वी साल है ग्या। गज्जुल दूध पिन छोड़ हैछि। गज्जू अब जवान है गिछि। गबलू आपण बचपन में छि आजि लै। फिर ले द्वि न मै भौत प्यार छि। गज्जू आपुण लाड़ चुप रै भैर करछी ओर गबलू ‘भुला’ कैह भैर। द्वी साल तक लगातार दगाड़ रै भैर इनेरी मित्रता पुराणी और मजबूत ह्वेगे। उदिन जब धोपरी में गबलू खान-खानधै घर आ, तो घर में द्वी मेहमाण दिखाइ द्यान। उ द्विय हौंस्यारू है गज्जूक बार मै के बात कारनाछी। द्विनेली लाल टोपी पैरी राखिछी। गज्जू बारि मै बात हुनै करकै गबलू लै उनार बीच बैठ ग्यो।

पुलिस वालनेली कौ – अरे तू देदी। डबल त्व्है टिहरी पुजन सैआत पूज्याई जाल। महाराज त्वेधकी भौत खुश ह्वाल।

म्यार महराजौ तुमि छिया। उ जाल जबत यो खान-पिण छौड़ दय्ल। उईलि गबलू तरफ इशार करि भै कौ।

पुलिस वालाले फिर कौ – तो महाराज हैं बोल दिनू कि तू ‘बेल्ला’ (भैंस का कट्या) दिन दे मना कर नहै?

मालिक यस क्याधैं करनाहा?

तो मिकि करू भई, यूतो दरबारक हुकुम छ।

हौंस्यारूल फिर पुछौ – तो कतुक डबल मिलाल सरकार ?

पुलिस वालनेलि आपस में आख लड़ाई।

दुबले, पतल बदनक पुलिस वालेल, जैक भूर आँख छि, उईलि कौ – हां अब मोलतोल रैग्यो। मि कौ – हमि यहै लै जणू और कीमत दरबार है तय करल। महाराज जै खुश है जाल जबत तो क्या चीजक कमी छयसी कीमत मिलेलि कि तू ज़िन्दगी भर याद राखले। राजा लोगोनेकी बाते अलग हूँ।

हांमहराज।

दुहार पुलिस वालेल जैक मुख मौट छि और नाक तिक्खी न है बेर पिचकी रछि, उईलि आपुण बात राखि – तो हिटनु आब उहै लै लहै जनू।

गबलूल सवाल करि – बाज्यू का जनाहा, गज्जू है लै जनाहा कति?

हौंस्यारूल एक दीठ पछींल कै हालि। तभै पुलिस वालाले कौ – हिट भई।

गबलू दौड़ा-दौडी रुण-रूण अपनि मतारी पास ग्यो। हौंस्यारूल गज्जू है खोली दे।

पटांगण में पूजी भैर उईलि गज्जू पेट मस्यरौ। गज्जू ठुल है गिछि गबलू धैं । अब गबलू क हाथ उईक पीठ तक न पूजन। फिर लै गबलूले गज्जूक कनि तरुफ़ हाथ बढ़ा। गज्जूल आपुण कनि झुकै दये। गबलूल उईकि कानि मस्यारी।

इह तुहै मार न दै लैजनान भुला ! यस कै भैर गबलू अलान भै ग्यो। पुलिस वाललै उदास है ग्या। एकल कौ – अरे नै, हमि तै यहै पालनैधै लैजानिया।

नैतुमि झूठी बोल्नाहा।

सच्ची कुनिया।

थ्वाडी देर तलक वीक मन में आश जागी जबत उईल ख़ुशी हैबेर पुछौ – सच्ची ?

होईसच्ची हमि यहै पालनैधै लैजानिया।

तो कब तक वापस ल्याला बाज्यू, इहै ? च्यालाले बड विश्वासले आपुण बाज्यू धैं सवाल करौ।

हौंस्यारू चुप रौ, गबलूले गज्जू है भेंट-घाट करि भैर विदा कर दे। ब्याल के गौंक लौडोनले गबलू है बता कि टिहरी शहर में दशैरा छ। महाराज ले वें आल। देवीक मंदिरक सामनी लै पुराण दरबार में गज्जुकी बलि दी जालि। अब गज्जू लौट भैर नि आ।

ब्याल कै घर आ भैर होस्यारू ले आपुण स्याणी है बता कि गज्जूकी कीमत सिर्फ तिस्से रूपै दे।

इहै ज्याद तो घ्यूक मिल जान, स्याणील कौ – अगर उ बखतै मार दिना। सोचो धैं।

अब गलती ह्वेगे। कि करि सकी अब? हौंस्यारू ले निराश है भैर जवाब दे।

उ रात गबलू सोचनै में रौ – ‘अब गज्जू है स्यूंण होंन्यौ होल। क्वे देव्ता स्यूंण में उहै बताल कि भोल्खिंन उ मारि जाल’। गौक लौडनैले लै इसौ बता राखि छि। मंदिर में उईकि पुज होलि, फिर खिचड़ीक थाली उईक सामणी लै राखि जालि। जेस्सी के उ वहै खानदें मुण्डी तल्कें करलो, महाराज सैप अपुण तलवारले उईकि कैनि में हाडाल। फिर अपुण-अपुण औदा हिसाबले सब लोग अपुण-अपुण तलवार चलाल और इहकै गज्जू मारि जाल।

 यो सुणी भैर गबलू स्यारी ग्यो – वी कैनि, जहै उ अंगाल हाल्छी, वि गज्जू जो उईक नान भाई छि! उरात घर मै कैले खाण न बनाइ।

पड़न है पैलि गबलू ले कै हि दे – ईजा, उ रात तू उहै छा; पिला भैर मारनेकि बात करनछी, त्वेली मार केनै ईजा?

म्यार च्याला, त्वेमे जानवरों दै भौत दया छ। यौ कै भैर उईकि मातारि खुद ले अलन भैगे। आपुण भतर लुकी दया क बारि में वहै पत्त न चल सकी।

गबलू क समझ में न आई कि गज्जू जानवर है छि या उईक नान भै।

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मूल कहानी : भैंस का कट्या- विद्यासागर नौटियाल 

 

 

 

 

 

 

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