
माँ
बेटियों ने
माँ को सिर्फ माँ समझा
कभी लड़की क्यों नहीं
क्यों नहीं समझा
उसके भी सपने रहे होंगे
उनकी ही तरह
वो भी चाहती होगी
कच्ची कैरियों के स्वाद में
आकंठ डूब जाना
रंगीन गोलियों में सिक्त हो जाना
उन्मुक्त आसमान को छू लेना
रंगीन तितलियों की तरह
उसके भी होंगे रंगीन सपने
पर…
वो तो हमेशा भरती रही
उम्मीद के रंगों से
हमारे सपनों को
सीढ़ी बनती रही
हमारे अंतहीन आकाश के लिए
और हम समझते रहे
कि माँ सिर्फ माँ ही होती है
भूल जाते हैं
कभी वो लड़की भी रही होगी
उस माँ बनने तक के सफर में
लड़की तो कब की मर चुकी थी
और सपनें कहीं दूर कराह रहे थे।
सच कहूँ तो
भूल जाते हैं हम भी
कि माँ भी कभी लड़की थी…
***
और इस तरह से…
बेटे चले जाते हैं विदेश
और बेटियाँ ससुराल
रह जाते हैं वो
दादी की बातों में
रसोई के स्वाद में
माँ के व्रतों में
पिता की दुआओं में
बहन की राखियों में
साझे की जिम्मेदारियों में
और…
घर की तस्वीरों में
और…
इस तरह से वह घर में बने रहते हैं।
***
छत
कुछ घरों में
छतों पर जाने के लिए
सीढ़ियाँ नहीं होती
सोचती हूँ
उस घर में रहने वाले लोग कैसे होंगे?
क्या महसूस करते होंगे?
रह जाते होंगे महरूम
जाड़े की सर्द सुबह में
धूप में बाल सुखाने से
अलसुबह चिड़ियों की चहचहाहट से
शाम को सूरज के डूबने के साथ
एक दिन के अवसान या
नए आने वाले दिन के इंतज़ार से
रह जाते होंगे वंचित
सधे हुए हाथों से बने हुए
चिप्स,पापड़, अचार और बड़ियों के स्वाद से
गीले कपड़ों को सुखाने से लेकर
अपनी भीगी पलकों को छिपाने से भी
पतंगों और नजरों के पेंच लड़ाने से लेकर
सलाइयों से बूटे उतारने से भी
रह जाते होंगे महरूम
उम्मीद का सूरज देखने से
स्याह रातों में
तारों के बीच अपनों को ढूंढने से
और शायद…
सुख-दुख बांचने और बांटने से भी…
***
चेहरे के पीछे छिपे चेहरे
वो छोड़ जाते हैं
अपने घर, सम्पत्ति और रिश्तों को
सिर्फ़ विश्वास के भरोसे
विश्वास सिंदूर का
विश्वास सात फेरों का
विश्वास हर हाल में साथ निभाने का
उन्हें विश्वास है
उन काले-सुनहरे मोतियों पर
संवार लेंगी वो उनके घर को
उन्हें विश्वास है
उन मेहंदी लगे हाथों पर
संभाल लेगी वो उनकी सम्पत्ति को
उन्हें विश्वास है
उन महावर लगे पैरों पे
सहेज लेंगी वो उनके हर रिश्तों को
पर कभी-कभी ये विश्वास
झूल जाते हैं फन्दों पर
कट जाते हैं रेल की पटरियों पर
दफ़न कर दिए जाते हैं
दो गज ज़मीन के नीचे…
क्योंकि वे नहीं पढ़ पाते
चेहरे पर पसरी लुनाई के पीछे
असली चेहरे को
क्योंकि कुछ चेहरों के पीछे
एक नहीं आठ-दस चेहरे छिपे होते हैं।
***
डॉ. रंजना जायसवाल
लालबाग कॉलोनी
छोटी बसही
मिर्जापुर
पिन कोड 231 001