अनुनाद

बच्चे की ओर से उसके पैर के प्रति – पाब्लो नेरूदा : मूल स्‍पैनिश से अनुवाद – श्रीकान्‍त दुबे

श्रीकान्‍त दुबे सुपरिचित कवि-कथाकार और अनुवादक हैं। अभी मंतव्‍य के प्रवेशांक में उनका मैक्सिको यात्रावृत्‍तान्‍त ख़़ूब पढ़ा और सराहा गया है। श्रीकान्‍त ने अपने मिज़ाज़ की कविताएं और कहानियां लिखी हैं। उनकी कुछ कविताएं अनुनाद पर यहां पढ़ी जा सकती हैं। कहानियों का संग्रह ज्ञानपीठ से आया है। श्रीकान्‍त ने नेरूदा की इस कविता का अनुवाद विशेष रूप से हमें उपलब्‍ध कराया, इसके लिए उनका अनेकश: आभार। 

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बच्चे के कोमल पैर को अभी नहीं पता कि वह पैर है,
और वह एक तितली अथवा एक सेब बन जाना चाहता है।
लेकिन बाद में पत्थर और टुकड़े काॅंच के,
गलियाॅं,
सीढि़याॅं
धरती के निष्ठुर रास्ते
सभी एक साथ मिलकर उसे बताए जाते हैं
कि वह उड़ नहीं सकता,
नहीं हो सकता वह
किसी शाख से लटकता कोई गोलाकार फल।
इस प्रकार पैर की इच्छाओं को जीत लिया गया
और वह परास्त सा गिर पड़ा रणभूमि में,
बना लिया गया उसे कैदी
जूते में जीवन गुजारने की
मिल गई सजा़।
उजाले से महरूम,
धीरे-धीरे,
उसने अपने तरीकेे से खोलने शुरू किए जहाॅं के रहस्य
अपने दायरे में बंद,
दूसरे पैर तक से अनजान
किसी अंधे सा टटोलता दुनिया।
वो स्फटिक के नाखूनों का
मुलायम गुच्छा,
कठोर होता गया,
उसने ले लिया सख्त सींग जैसा अपारदर्शी रूप,
और बचपन की नन्हीं पंखुडि़याॅं
रौंद दी गईं,
बेतरतीब,
मानो बिना आॅंख का सरीसृप,
या कीड़े का तिकोना सिर।
वे होते गए और भी कठोर,
अंततः ढक गए
सख्त हो सकने के सीमांत पर
मृत्यु के छोटे ज्वालामुखी की तरह।
लेकिन वह अंधा चलता रहा
साॅंसें रोके,
अबाध
घंटे दर घंटे,
कदम दर कदम
कभी किसी पुरुष का होकर
तो कभी बनकर किसी स्त्री का,
उपर,
नीचे,
मैदानों से गुजरते,
खानों से गुजरते
रिहाइशों,
मंत्रालयों,
दूकानों से गुजरते ,
पीछे,
बाहर,
भीतर
आगे,
अपने जूते संग मिल
वह करता रहा श्रम,
प्रेम में या नींद तक में
कभी नग्न होने का समय भी
उसने शायद ही लिया,
चलता रहा वह,
चलते रहे लोग
जब तक कि रुक न गया
पूरा का पूरा मनुष्य।
फिर वह गया
कब्र की गहराइयों में,
वैसे ही अनभिज्ञ,
जहाॅं की हर चीज सिर्फ अंधेरा थी,
और नहीं पता था उसे
कि स्थगित हो चुका है अब
उसका पैर होना
और यह भी कि उसे दफन किए जाने का मकसद क्या है
क्या यह कि अब वो उड़ सके
अथवा यह कि वो बन सके एक सेब।
(मूल स्पैनिश से अनुवादः श्रीकांत
दुबे)

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