फेसबुक से इन दिनों साहित्य की दुनिया में आवाजाही बढ़ी है। अनुनाद ने फेसबुक से कुछ प्रस्तुतियां की हैं..अब उसी दुनिया में मिले और मित्र बने अनिल पुष्कर ने अनुनाद के लिए ये कविताएं भेजीं हैं …इसके लिए हम उन्हें शुक्रिया कहते हैं। अनिल की ये कविताएं अपने शिल्प और कथ्य, दोनों स्तरों पर राजनीतिक कविताएं हैं। प्रतिकार और आक्रोश इनकी थीमलाइन है। इन्हें पढ़ने का अनुभव एक लम्बी बहस में पड़ने-उलझने का अनुभव है, जो एक सार्थक और जनपक्षधर कविकर्म की निशानी भी है। अनिल पुष्कर की भाषा कविता की इधर की भाषा से अलग बहुत अटपटी भाषा है…इस भाषा में अतिकथन साफ़ लक्षित होता है पर इसमें लगातार बहुत कुछ घटता भी है….इसमें जो अतिरिक्त सपाटबयानी है वह एक हद तक आकर रिपोर्ट की भाषा में बदलती जाती हैं। पत्रकारिता और कविता के सम्बन्धों पर रघुवीर सहाय के ज़माने में बहुत बात होती थी…अब नहीं होती… इन कविताओं को पढ़ते और अनुनाद पर लगाते हुए मैंने उस दौर की स्मृतियों को भी जागते पाया है।
संक्षेप में कहूं तो ये हमलावर कविताएं हैं ….और अनुनाद के पाठकों से मुझे इन पर बहस की पूरी उम्मीद है।
आग का वर्गीय चरित्र
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संवाददाता
ने बताया- पहाड़ियों में आग है
जंगल
चपेट में हैं
चपेट में हैं
सरकार
ने कहा –
ने कहा –
ये
प्राकृतिक आपदा का सवाल है
प्राकृतिक आपदा का सवाल है
जंगलवासी
जानते हैं –
जानते हैं –
ये
आग उन खदानों तक नहीं पहुँचती
आग उन खदानों तक नहीं पहुँचती
जहाँ
अवैध खनन जोरों पर है
अवैध खनन जोरों पर है
ये
आग उन मालिकों तक नहीं पहुँचती
आग उन मालिकों तक नहीं पहुँचती
जहाँ
लूट का कारोबार मीलों फैला है
लूट का कारोबार मीलों फैला है
लपटें
बताती हैं कि
बताती हैं कि
आग
का वर्गीय चरित्र कैसा है
का वर्गीय चरित्र कैसा है
चूल्हे
जलाने से झोपड़े ख़ाक नहीं होते
जलाने से झोपड़े ख़ाक नहीं होते
ढिबरी
से चौबारे पर शोले भड़क नहीं उठते
से चौबारे पर शोले भड़क नहीं उठते
अलाव
में वो माद्दा कहाँ कि दुखों का दमन करे
में वो माद्दा कहाँ कि दुखों का दमन करे
ये
सरकार का चलन है
सरकार का चलन है
आग
में महफ़िल रौशन करे.
में महफ़िल रौशन करे.
***
इसी समय में
______________________________________________________________________
इसी
समय में
समय में
विपक्षी
दलों की नीयत भाँपनी चाहिए
दलों की नीयत भाँपनी चाहिए
इसी
समय में
समय में
आरोप
के प्रथम पक्ष पर नकेल कसनी चाहिए
के प्रथम पक्ष पर नकेल कसनी चाहिए
इसी
समय में
समय में
ढूँढ़
लेना चाहिए एक अदद रास्ता
लेना चाहिए एक अदद रास्ता
जो
किले की सुरंग से होकर
किले की सुरंग से होकर
संसद
के मुहाने तक जाता हो
के मुहाने तक जाता हो
जहाँ
सेंधमारी
करने वाला सूबे का मुखिया
करने वाला सूबे का मुखिया
मुख्यमंत्री
होने का करतब दिखलाता हो
होने का करतब दिखलाता हो
जहाँ
जुर्म
और जालिम जैसे विशेषणों के साथ
और जालिम जैसे विशेषणों के साथ
बिचौलियों
का गिरोह खूब-खूब भरमाता हो
का गिरोह खूब-खूब भरमाता हो
जहाँ
कोई रास्ता न मिलने की उम्मीद पे
कोई रास्ता न मिलने की उम्मीद पे
‘ये
आम रास्ता नहीं है’ का साइनबोर्ड इतराता हो
आम रास्ता नहीं है’ का साइनबोर्ड इतराता हो
जहाँ
मनसुखवा की हत्या में
मनसुखवा की हत्या में
बेरोजगारी,
सरकारी नाइंसाफी, गद्दारी नहीं
सरकारी नाइंसाफी, गद्दारी नहीं
हृदयाघात
से असमय मौत का दस्तावेज मिले
से असमय मौत का दस्तावेज मिले
यहीं,
बिल्कुल
इसी जगह पर
इसी जगह पर
हमें
सतर्क हो जाना चाहिए
सतर्क हो जाना चाहिए
कि
मौत के सौदागरों का ये कोई नया पैंतरा है
मौत के सौदागरों का ये कोई नया पैंतरा है
हुक्मरानों
का एकजुट होना सबसे गम्भीर खतरा है.
का एकजुट होना सबसे गम्भीर खतरा है.
***
एक आदमखोर नरसंहार
वो
रास्ता
रास्ता
जंगल
में जाकर विलुप्त हुआ
में जाकर विलुप्त हुआ
वो
रास्ता अकूत गहरी खाई में समा गया
रास्ता अकूत गहरी खाई में समा गया
वो
रास्ता असंख्य आसमानों के रंग छिपाए रहा
रास्ता असंख्य आसमानों के रंग छिपाए रहा
वो
रास्ता हरसिंगार के फूल बचे रह सकें
रास्ता हरसिंगार के फूल बचे रह सकें
इसलिए
लोहे के राक्षसों से लोहा लेता रहा
लोहे के राक्षसों से लोहा लेता रहा
वो
रास्ता हर ओर से आग, काँटे, जहर,
रास्ता हर ओर से आग, काँटे, जहर,
और
अनजान हमलावरों से यकीनन भरा रहा
अनजान हमलावरों से यकीनन भरा रहा
मगर
उस रास्ते पर कभी ऐसा नही हुआ
उस रास्ते पर कभी ऐसा नही हुआ
कि
आदमखोर नरसंहार हुआ हो
आदमखोर नरसंहार हुआ हो
कभी
दुश्मन को पहचानने वाला रंग छिडका गया हो
दुश्मन को पहचानने वाला रंग छिडका गया हो
कोई
उड़नतश्तरी नहीं आई जबरन धमकाने
उड़नतश्तरी नहीं आई जबरन धमकाने
जंगल
पर एकछत्र राज करने वाला बादशाह
पर एकछत्र राज करने वाला बादशाह
एकाएक
फिर कैसे गुमशुदा हो गया
फिर कैसे गुमशुदा हो गया
आतंकी हवा के रुख से तमाम घोसलों का वजूद खो गया
उस
रात आसमान से बारिस नहीं बारूद के गोले बरसे थे
रात आसमान से बारिस नहीं बारूद के गोले बरसे थे
उस
रात खून का स्वाद वाले खाकी हथगोले और बूट का कहर बरपा था
रात खून का स्वाद वाले खाकी हथगोले और बूट का कहर बरपा था
उस
रात जंगली पहरेदार और हमलावर सहमे सहमे थे
रात जंगली पहरेदार और हमलावर सहमे सहमे थे
इस
जंगल में वो कौन थे
जंगल में वो कौन थे
जिनके
रातोरात डेरे बसाए गए
रातोरात डेरे बसाए गए
वो
थे तो सुरक्षा प्रहरी के भेष में किन्तु उनके काफिले बताते हैं
थे तो सुरक्षा प्रहरी के भेष में किन्तु उनके काफिले बताते हैं
वो
सबकुछ ऎसी सूरत में ढालने आये हैं जिसका नक्शा उनके पास है
सबकुछ ऎसी सूरत में ढालने आये हैं जिसका नक्शा उनके पास है
इस
नक़्शे में पानी, बिजली, सड़कें, और आवास हैं
नक़्शे में पानी, बिजली, सड़कें, और आवास हैं
काठगोदाम,
बूचडखाने और चारागाह की योजनाएं साथ हैं
बूचडखाने और चारागाह की योजनाएं साथ हैं
अन्न
की पैदावार और बाजार इसी नक़्शे में मौजूद है
की पैदावार और बाजार इसी नक़्शे में मौजूद है
नस्ल
पहचानने का हुनर, पालतू बनाने की बाजीगरी में वो दक्ष हैं
पहचानने का हुनर, पालतू बनाने की बाजीगरी में वो दक्ष हैं
उनकी
आस्था और समर्पण के बीच जो आराध्य हैं
आस्था और समर्पण के बीच जो आराध्य हैं
उनकी
ताकत का निवेश जंगल में लाये गए देवता, दरवेश हैं
ताकत का निवेश जंगल में लाये गए देवता, दरवेश हैं
उनकी
जनगणना में शामिल नहीं जानवर, जनजातियां, जंगल के कुबेर
जनगणना में शामिल नहीं जानवर, जनजातियां, जंगल के कुबेर
लोहे
के लकड़हारे, दरख़्त की छातियों पर आरी-कुल्हाड़ी चला रहे हैं
के लकड़हारे, दरख़्त की छातियों पर आरी-कुल्हाड़ी चला रहे हैं
लोहे
के कारीगर कारखाने की भित्तियों में नगण्य पसलियां गला रहे हैं
के कारीगर कारखाने की भित्तियों में नगण्य पसलियां गला रहे हैं
लोहे
के बुतों ने आततायियों की वेशभूषा में आतंक मचा रखा है
के बुतों ने आततायियों की वेशभूषा में आतंक मचा रखा है
लोहे
की मशीन बनी सरकार ने उपद्रव, कोहराम मचा रखा है
की मशीन बनी सरकार ने उपद्रव, कोहराम मचा रखा है
ये
वो लोहा नहीं जिसे गलाया जा सके
वो लोहा नहीं जिसे गलाया जा सके
ये
वो लोहा नीं जिसे पिघलाया जा सके
वो लोहा नीं जिसे पिघलाया जा सके
ये
वो लोहा नहीं जो हजारों तहों में दबा हुआ है
वो लोहा नहीं जो हजारों तहों में दबा हुआ है
ये
वो लोहा नहीं जो पंचतत्वों से बना हुआ है
वो लोहा नहीं जो पंचतत्वों से बना हुआ है
ये
वो लोहा नहीं जो असुरों का अभिमान बना
वो लोहा नहीं जो असुरों का अभिमान बना
ये
वो लोहा नहीं जो जंगलदेवता का मचान बना
वो लोहा नहीं जो जंगलदेवता का मचान बना
ये
लोहा शिकारगाह बना है
लोहा शिकारगाह बना है
जिससे
कोई कहाँ बचा है.
कोई कहाँ बचा है.
***
कुछ पुराने काग़ज़
कुछ
पुराने काग़ज़ों को देखकर यह जाना कि
पुराने काग़ज़ों को देखकर यह जाना कि
कई
बरस पहले इनमें कुछ रोका गया था
शायद
कोई सूचना थी जो अधूरी
कोई सूचना थी जो अधूरी
कविता
बनते-बनते फल्लांग भर चली
बनते-बनते फल्लांग भर चली
या
कोई चरित्र, जो गढ़ते-गढ़ते रह गया
कोई चरित्र, जो गढ़ते-गढ़ते रह गया
याकि
कहानी की सबसे ख़ूबसूरत लड़की जो
कहानी की सबसे ख़ूबसूरत लड़की जो
परी
के लिबास में ढलते-ढलते कहीं खो गयी
के लिबास में ढलते-ढलते कहीं खो गयी
काग़ज़
में पीलापन ऐसे लिपटा कि लगे
में पीलापन ऐसे लिपटा कि लगे
कोई
दुल्हन हाथ पीले किये ही सो गयी
दुल्हन हाथ पीले किये ही सो गयी
उसमें
फैली रेखाएं और उलझी मात्राएं गुंथे हुए गहने हों मानो
फैली रेखाएं और उलझी मात्राएं गुंथे हुए गहने हों मानो
वो
एक रेखा जिस पर महान नायक होने के संकेत मिले
एक रेखा जिस पर महान नायक होने के संकेत मिले
क्या
किसी तांत्रिक, हत्यारे, सत्ता के सौदागर ने दफन किया था
किसी तांत्रिक, हत्यारे, सत्ता के सौदागर ने दफन किया था
गर
वो नायक होता तो मौत भला ऐसे क्यूँ आती?
वो नायक होता तो मौत भला ऐसे क्यूँ आती?
गर
वो तानाशाह बनने का स्वांग रचे आया तो क्या
वो तानाशाह बनने का स्वांग रचे आया तो क्या
लोकतंत्र
उसे बेपनाह चाहता, फिर वो आखिर
उसे बेपनाह चाहता, फिर वो आखिर
किस
जात, धरम, कबीले, कुनबे, का भेदिया था
जात, धरम, कबीले, कुनबे, का भेदिया था
अक्सर
गुनहगार भी ऎसी ही किसी जगह पर रुकते हैं
गुनहगार भी ऎसी ही किसी जगह पर रुकते हैं
अक्सर
कोरी, दस्कार, बुनकर, मोची, ऐसे ही और तमाम
कोरी, दस्कार, बुनकर, मोची, ऐसे ही और तमाम
आते-जाते
अपना झेला दुःख धरते हैं
अपना झेला दुःख धरते हैं
कई
दफे बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखकगण बुनियादी ढाँचे टटोलते
दफे बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखकगण बुनियादी ढाँचे टटोलते
कुछ
समय बीता –
समय बीता –
कोई
गुलाम, बेबस, पंचपरमेश्वर, निहत्था, निस्सहाय, निरुपाय वहाँ नहीं आया
गुलाम, बेबस, पंचपरमेश्वर, निहत्था, निस्सहाय, निरुपाय वहाँ नहीं आया
आये
– आला-अफसर, जनसेवक, सेनानी, भविष्य योजनाओं के मुखिया, माफिया,
– आला-अफसर, जनसेवक, सेनानी, भविष्य योजनाओं के मुखिया, माफिया,
प्रजापालक,
पालनहार
पालनहार
ढोल-मंजीरे,
दुम्दुमी, नगाड़े, तुरही, से सत्कार
दुम्दुमी, नगाड़े, तुरही, से सत्कार
लोकतंत्र
के मंच पे वो काबिज नाचे आधी रात
के मंच पे वो काबिज नाचे आधी रात
सत्ता,
सुरा, सुन्दरी का खूब तमाशा साथ
सुरा, सुन्दरी का खूब तमाशा साथ
जिस
रोज आम आदमी.ने खटकाया द्वार
रोज आम आदमी.ने खटकाया द्वार
हुए
जुर्म के बावन सीने, छाती भई हजार
जुर्म के बावन सीने, छाती भई हजार
जन-सुविधाओं
के बाँट धरे हुकूमत तौल रही थी मांस
के बाँट धरे हुकूमत तौल रही थी मांस
हड्डी-पसली
एक किए सब अधनंगी थात
एक किए सब अधनंगी थात
लकीर
खींच कानून की भये फाँक-तिफांक
खींच कानून की भये फाँक-तिफांक
अफसर
बोला- ‘गिनती में जन ज्यादा हैं लुगदी पड़ गयी कम’
बोला- ‘गिनती में जन ज्यादा हैं लुगदी पड़ गयी कम’
खाए-अघाए
मुखिया बोले- ‘लाओ सारी जात-बिरादर छँटनी कर दें हम’
मुखिया बोले- ‘लाओ सारी जात-बिरादर छँटनी कर दें हम’
रिरियाये-घिघियाये
जन, पाहुन भोग लगाए
जन, पाहुन भोग लगाए
धीर-गम्भीर
धनी-गुणी लदे-फंदे बनिया-व्यापारी संसद के चौपाए पर
धनी-गुणी लदे-फंदे बनिया-व्यापारी संसद के चौपाए पर
लाये
नए-नए फंदे- मोटी-पतली, लंबी-छोटी, गर्दन कसने की खातिर
नए-नए फंदे- मोटी-पतली, लंबी-छोटी, गर्दन कसने की खातिर
निजता,
नाते, सम्बन्धों पर लादे नए-नए कर
नाते, सम्बन्धों पर लादे नए-नए कर
आजादी
में भेंट मिले नए पुराने विषधर, अज़गर
में भेंट मिले नए पुराने विषधर, अज़गर
कागज
पर अब सिकुड़न, झुर्री औ’ मकड़जाल थे ढेर
पर अब सिकुड़न, झुर्री औ’ मकड़जाल थे ढेर
जनजागृति
नीलाम हुई हुकूमतें बेंच देश किए आध-पसेर.
नीलाम हुई हुकूमतें बेंच देश किए आध-पसेर.
***
इतिहास में दफ़न बुरी गाथाओं के स्वप्न
जब
कभी
कभी
इतिहास
में दफ़न बुरी गाथाओं के स्वप्न टकराते हैं
में दफ़न बुरी गाथाओं के स्वप्न टकराते हैं
अकस्मात
नींद को झिन्झोड़कर कर चले जाते हैं
नींद को झिन्झोड़कर कर चले जाते हैं
घटनाएं
गवाह होती हैं
गवाह होती हैं
ख़बरें
बेतहासा चीखती हुई इन्साफ की फ़रियाद करती हैं
बेतहासा चीखती हुई इन्साफ की फ़रियाद करती हैं
हम
सोचने लगते हैं कि क्या वजह रही होगी
सोचने लगते हैं कि क्या वजह रही होगी
ये
कतई हादसा भर नहीं हो सकता
कतई हादसा भर नहीं हो सकता
कोई
साजिश, कोई दुराग्रह, कोई अपशगुन …
साजिश, कोई दुराग्रह, कोई अपशगुन …
नहीं-नहीं
ऐसा कुछ भी नहीं
ऐसा कुछ भी नहीं
तुम
जानती हो ये वो असाध्य पीड़ा नहीं
जानती हो ये वो असाध्य पीड़ा नहीं
जिसे
भुलाया न जा सके
भुलाया न जा सके
मन
पर पड़ी खरोंचे समय रहते मिटा दी जायेंगी
पर पड़ी खरोंचे समय रहते मिटा दी जायेंगी
घाव
नासूर बनते-बनते सूख जाएगा एक दिन
नासूर बनते-बनते सूख जाएगा एक दिन
बच
गयी स्मृतियाँ किसी गहरी खाई में ढकेली जा चुकी होंगी
गयी स्मृतियाँ किसी गहरी खाई में ढकेली जा चुकी होंगी
मृत
इच्छाओं के बाग में फिर से खिल आये होंगे फूल
इच्छाओं के बाग में फिर से खिल आये होंगे फूल
आसमानी
सपने सोंधेपन की बारिश में अब ज़्यादा देर नहीं है
सपने सोंधेपन की बारिश में अब ज़्यादा देर नहीं है
मगर
बात यहीं ख़त्म नहीं होती
बात यहीं ख़त्म नहीं होती
आखिर
इतिहास में दबे भूचाल कब किसे अपनी आगोश में लेंगे
इतिहास में दबे भूचाल कब किसे अपनी आगोश में लेंगे
कौन
जानता है
जानता है
क्या
हर बार हमें दबोचने को इतिहास यूँ ही बेख़ौफ़ आएगा
हर बार हमें दबोचने को इतिहास यूँ ही बेख़ौफ़ आएगा
क्या
हर बार कहर का तांडव इस देह में घुसकर शोर मचायेगा
हर बार कहर का तांडव इस देह में घुसकर शोर मचायेगा
मैं
प्रतिकार और आक्रोश में हूँ
प्रतिकार और आक्रोश में हूँ
मुझे
पश्चाताप नहीं कि इतिहास के बुरे सपने
पश्चाताप नहीं कि इतिहास के बुरे सपने
अगर
पाँव तले आकर रौंद दिए जाएँ
पाँव तले आकर रौंद दिए जाएँ
मैं
शोक मनाना नहीं चाहती
शोक मनाना नहीं चाहती
मैं
अग्नि-परीक्षा में जाना नहीं चाहती
अग्नि-परीक्षा में जाना नहीं चाहती
मुझे
शक्तिरूपा बनाकर पाखंड का शंखनाद बंद करो
शक्तिरूपा बनाकर पाखंड का शंखनाद बंद करो
आस्था
के उजियारे में चौंधियाना बंद करो
के उजियारे में चौंधियाना बंद करो
इतिहास
इतिहास और सिर्फ इतिहास ……
इतिहास और सिर्फ इतिहास ……
ये
अब कभी जीवन का सच नहीं हो सकता.
अब कभी जीवन का सच नहीं हो सकता.
***
जब कोई लड़की
____________________________________________________________________
1
जब
कोई लड़की
कोई लड़की
आंगन
में लकीरें खींच
में लकीरें खींच
खेल
की बुनियादें, और हदें पार करती
की बुनियादें, और हदें पार करती
दहलीज
की बरसों चली आ रही व्यवस्थाएं लांघ जाती है
की बरसों चली आ रही व्यवस्थाएं लांघ जाती है
जब
कोई लड़की
कोई लड़की
व्यवस्था,
कानून पर सवाल उठाती नज़र आती है
कानून पर सवाल उठाती नज़र आती है
और
विरोध में
विरोध में
सबसे
तेज धार वाला खंज़र उठाती है
तेज धार वाला खंज़र उठाती है
दो
बूंद स्याही और नुलीके असलहे की नोक भर से
बूंद स्याही और नुलीके असलहे की नोक भर से
सरकार
के मुँह पर कालिख पोत ऐतराज़ जताती है
के मुँह पर कालिख पोत ऐतराज़ जताती है
हुकूमत
की नकचढी औलादें अफरातफरी में
की नकचढी औलादें अफरातफरी में
फैसला
लिए उसकी छाती तक चढ़ आती हैं
लिए उसकी छाती तक चढ़ आती हैं
लोकतंत्र
की पोशाक में उस वक्त एक काला सूराख
की पोशाक में उस वक्त एक काला सूराख
साफ़
नज़र आता है
नज़र आता है
और
आखिरकार देश के जनसेवकों को
आखिरकार देश के जनसेवकों को
अपना-अपना
चरित्र दिखाने का मौका मिल जाता है
चरित्र दिखाने का मौका मिल जाता है
न्यायालय
और व्यवस्था के पीछे छुपा होता है
और व्यवस्था के पीछे छुपा होता है
जिन
लाल पिछवाड़े वाले वानरों और
लाल पिछवाड़े वाले वानरों और
गेरुए
लकडबग्घों का दिग्दर्शन
लकडबग्घों का दिग्दर्शन
प्रजापालकों
का समूह उसे नाहक ही आमादा
का समूह उसे नाहक ही आमादा
उघाड़ने
पर उतारू नजर आता है
पर उतारू नजर आता है
लड़की
ने जिरह और पूछताछ के बीच
ने जिरह और पूछताछ के बीच
देश
को अपनी धरोहर और व्यवस्था को सबसे बड़ी सुरक्षा नहीं कहा
को अपनी धरोहर और व्यवस्था को सबसे बड़ी सुरक्षा नहीं कहा
उसने
हर पूछताछ में ये भी नहीं कहा
हर पूछताछ में ये भी नहीं कहा
जिसे
वो सुनना चाहते थे
वो सुनना चाहते थे
उसने
घंटों पूछताछ में वो भी नहीं कहा
घंटों पूछताछ में वो भी नहीं कहा
जो
उससे सभी घड़ियाल कहलवाना चाहते थे
उससे सभी घड़ियाल कहलवाना चाहते थे
उसने
महीने, बरस की पूछताछ में क़ुबूल नहीं किया
महीने, बरस की पूछताछ में क़ुबूल नहीं किया
कि
वो कुछ भी ऐसा कर रही थी
वो कुछ भी ऐसा कर रही थी
जो
आदमीयत की नजर में गुनाह हो
आदमीयत की नजर में गुनाह हो
उसने
किताब में लिखी एक-एक इबारत को ईश्वर का पैगाम भी नहीं कहा
किताब में लिखी एक-एक इबारत को ईश्वर का पैगाम भी नहीं कहा
उसका
हर फलसफा यही कहता रहा
हर फलसफा यही कहता रहा
कि
आखिरी साँस तक शोषण और दमन के खिलाफ़
आखिरी साँस तक शोषण और दमन के खिलाफ़
वो
अपनी आवाज़ उठाती रहेगी
अपनी आवाज़ उठाती रहेगी
वो
चीख़-चीख़कर कह रही है
चीख़-चीख़कर कह रही है
यहाँ
इस ज़मीन के भीतर उसके पुरखे ज़िंदा दफन हैं,
इस ज़मीन के भीतर उसके पुरखे ज़िंदा दफन हैं,
जिन्हें
भूख और ग़रीबी निगल गयी
भूख और ग़रीबी निगल गयी
उसकी
बिरादरी के हर आदमी को अधिनियमों की अनुसूची कुचल गयी.
बिरादरी के हर आदमी को अधिनियमों की अनुसूची कुचल गयी.
2
वो
जब कभी भी ‘लूट’ सुनती है, उसे पूँजी का दानव आकर धमकाता है
जब कभी भी ‘लूट’ सुनती है, उसे पूँजी का दानव आकर धमकाता है
उत्पीड़न
में उठा इक-इक हथियार बचाने, अदालत का पहरा लग जाता है
में उठा इक-इक हथियार बचाने, अदालत का पहरा लग जाता है
वो
पूछताछ करने वालों को हत्यारा और ‘ज़ालिम’ कहने से नहीं चूकती
पूछताछ करने वालों को हत्यारा और ‘ज़ालिम’ कहने से नहीं चूकती
वो
हर बिसात और हर बाजी को ‘बदला’ कहने कहने से नही चूकती
हर बिसात और हर बाजी को ‘बदला’ कहने कहने से नही चूकती
उसकी
जिरह को ज़रूरत नहीं किसी की हिस्सेदारी हो
जिरह को ज़रूरत नहीं किसी की हिस्सेदारी हो
वो
जानती है खेल में किसकी कितनी साझेदारी हो
जानती है खेल में किसकी कितनी साझेदारी हो
उसने
जुर्म के खिलाफ़ जुर्रत से ही जेल पाई है
जुर्म के खिलाफ़ जुर्रत से ही जेल पाई है
जानती
है वो किसके साथ है कौन कसाई है
है वो किसके साथ है कौन कसाई है
बहुत
ख़तरनाक है उसका रिहा होना नुमाइंदे यही कहते रहे
ख़तरनाक है उसका रिहा होना नुमाइंदे यही कहते रहे
हर
सियाह रात में अनगिनत कुसुरों के फंदे उसे कसते रहे
सियाह रात में अनगिनत कुसुरों के फंदे उसे कसते रहे
वो
अब तक सतर्कता और हिदायतों में जीती आई है
अब तक सतर्कता और हिदायतों में जीती आई है
जमानत
नहीं मिली पर दस्तूर खारिज़ किए आज़ादी पाई है
नहीं मिली पर दस्तूर खारिज़ किए आज़ादी पाई है
3
उसने
कहा –
कहा –
वो
विस्फोट करना चाहती है
विस्फोट करना चाहती है
उसे
बिना पूरा सुने रोका गया
बिना पूरा सुने रोका गया
उसने
कहा –
कहा –
वो
बदलाव के लिए लड़ रही है
बदलाव के लिए लड़ रही है
उसे
बिना कुछ पूछे रोका गया
बिना कुछ पूछे रोका गया
वो
कह रही है-
कह रही है-
भीतर
उठ रहा है बवंडर
उठ रहा है बवंडर
जिसे
वो नहीं रखना चाहती शांत
वो नहीं रखना चाहती शांत
उसे
शान्ति-पाठ के लिए भेजा गया
शान्ति-पाठ के लिए भेजा गया
वो
नई इबारतें रचना चाहती है
नई इबारतें रचना चाहती है
उसे
पुराने बंदियों के साथ भेजा गया
पुराने बंदियों के साथ भेजा गया
वो
ऎसी किसी भी चीज़ के खिलाफ़ है
ऎसी किसी भी चीज़ के खिलाफ़ है
जिसे
स्वाभाविक कहा जा रहा है
स्वाभाविक कहा जा रहा है
वो
उन् सारी व्यवस्थाओं में नहीं जीती
उन् सारी व्यवस्थाओं में नहीं जीती
जिसे
सृजन कहकर कहीं और ले जाया जा रहा है
सृजन कहकर कहीं और ले जाया जा रहा है
वो
हर्फ़-हर्फ़ बदलती देख रही है कायनात बनते
हर्फ़-हर्फ़ बदलती देख रही है कायनात बनते
उसे
पुरानी परिभाषाओं में धकेला जा रहा है.
पुरानी परिभाषाओं में धकेला जा रहा है.
वो
अतीत को खारिज किये कुछ रच रही है
अतीत को खारिज किये कुछ रच रही है
वो
भविष्य के भूचाल को मथ रही है
भविष्य के भूचाल को मथ रही है
उसका
सच बोलना अपराध बताया जा रहा है
सच बोलना अपराध बताया जा रहा है
एक
बार फिर पुरानी सभ्यता का पाठ दुहराया जा रहा है.
बार फिर पुरानी सभ्यता का पाठ दुहराया जा रहा है.
***
तब क्या करोगे तुम ….
1
दुनिया
में जिस रोज सबसे पीछे ढकेले जा चुके होगे तुम
में जिस रोज सबसे पीछे ढकेले जा चुके होगे तुम
सभ्यताएं
भी नहीं होंगी,
भी नहीं होंगी,
शब्द
अपनी-अपनी माटी से दूर
अपनी-अपनी माटी से दूर
गुमशुदा
हो चुके होंगे,
हो चुके होंगे,
अपना
सुख जीने को नहीं होगी जमीन
सुख जीने को नहीं होगी जमीन
और
दुःख की अनंत शिराओं में कसी तुम्हारी करुण वेदना
दुःख की अनंत शिराओं में कसी तुम्हारी करुण वेदना
किसी
को सुनायी नहीं देगी
को सुनायी नहीं देगी
तब
क्या करोगे तुम?
क्या करोगे तुम?
2
एक
जंगल,
जंगल,
एक
पर्वत,
पर्वत,
एक
जलस्रोत के लिए
जलस्रोत के लिए
अपनी
ही संतानें युद्ध के लिए आमंत्रित करेंगी तुम्हें
ही संतानें युद्ध के लिए आमंत्रित करेंगी तुम्हें
तब
क्या करोगे तुम?
क्या करोगे तुम?
उस
विभीषक क्षण को टालने के लिए
विभीषक क्षण को टालने के लिए
कहाँ
से लाओगे संजीवनी वाली विशाल पहाडी
से लाओगे संजीवनी वाली विशाल पहाडी
वो
खोह कहाँ पाओगे जिसमें दंतकथाएं रची जाएँ
खोह कहाँ पाओगे जिसमें दंतकथाएं रची जाएँ
वो
मेरु किसे कहोगे जहाँ नए अर्थ बोती हों टीकाएँ
मेरु किसे कहोगे जहाँ नए अर्थ बोती हों टीकाएँ
वो
गुरू, सखा, परमेश्वर, सन्त-शिरोमणि किधर मिलेंगे
गुरू, सखा, परमेश्वर, सन्त-शिरोमणि किधर मिलेंगे
यद्यपि
अब भी एक राह जाती है उस तक
अब भी एक राह जाती है उस तक
तो
क्या जीवन की खातिर स्वत्व डिगा पाओगे
क्या जीवन की खातिर स्वत्व डिगा पाओगे
तब
क्या करोगे तुम?
क्या करोगे तुम?
***
मुमकिन है
मुमकिन
है
है
आप
सब जो यहाँ इस समय मौजूद हैं
सब जो यहाँ इस समय मौजूद हैं
गम्भीर
हो जाएँ जब मैं कहूँ “आदमी”
हो जाएँ जब मैं कहूँ “आदमी”
वो
त्रासदी के बीच खड़ा होकर भी हँस रहा है
त्रासदी के बीच खड़ा होकर भी हँस रहा है
उलटी
दिशाओं में रेंगता हुआ डस रहा है
दिशाओं में रेंगता हुआ डस रहा है
बादलों
के बीच कौंधती बिजलियों से खेलता है
के बीच कौंधती बिजलियों से खेलता है
रात
खाली तवे पर सपनों में रोटियाँ बेलता है
खाली तवे पर सपनों में रोटियाँ बेलता है
वो
एक हसीन किरदार हो सकता है
एक हसीन किरदार हो सकता है
समय
का व्यापार हो सकता है
का व्यापार हो सकता है
तुमने
मुगातले में जिए हों युग भले ही
मुगातले में जिए हों युग भले ही
वो
हत्यारों का सिपहसालार हो सकता है
हत्यारों का सिपहसालार हो सकता है
वो
खुद को कहता है आदमी
खुद को कहता है आदमी
और
आदम की नब्ज़ पहचानता है
आदम की नब्ज़ पहचानता है
ताकि
हम सब कहीं भाग न पायें
हम सब कहीं भाग न पायें
वो
जीने का षड्यंत्र पिरोना जानता है
जीने का षड्यंत्र पिरोना जानता है
वो
सचमुच आदमी था
सचमुच आदमी था
उसे
बेंचा गया, नोचा गया, वो रोया नहीं, कहीं खोया नहीं
बेंचा गया, नोचा गया, वो रोया नहीं, कहीं खोया नहीं
वो
पाया गया, उस हाल में जो जुर्म उसने ढोया नहीं
पाया गया, उस हाल में जो जुर्म उसने ढोया नहीं
वो
कहता रहा आदमी
कहता रहा आदमी
वो
कहता रह गया खुद को आदमी
कहता रह गया खुद को आदमी
वो
कब तक कहेगा आदमी
कब तक कहेगा आदमी
वो
आदमी था अधजगा, जो नींद भर कभी सोया नहीं.
आदमी था अधजगा, जो नींद भर कभी सोया नहीं.
मुमकिन
है
है
हम
सब जो यहाँ इस समय मौजूद हैं
सब जो यहाँ इस समय मौजूद हैं
गम्भीर
हो जाएँ जब मैं कहूँ “आदमी”
हो जाएँ जब मैं कहूँ “आदमी”
वो
आदमी था जो इतिहास में दर्ज है
आदमी था जो इतिहास में दर्ज है
वो
आदमी है जिसकी पीढ़ियों तक कर्ज है
आदमी है जिसकी पीढ़ियों तक कर्ज है
वो
आदमी जिसका सिंहासन है तख़्त है
आदमी जिसका सिंहासन है तख़्त है
वो
आदमी अंधड हालात में भी सख्त है
आदमी अंधड हालात में भी सख्त है
वो
आदमी जो बोया गया उगाही के वास्ते
आदमी जो बोया गया उगाही के वास्ते
वो
आदमी जो ढोया गया गवाही के वास्ते
आदमी जो ढोया गया गवाही के वास्ते
रास्ते
ही रास्ते थे उस आदमी के वास्ते
ही रास्ते थे उस आदमी के वास्ते
वो
भी क्या आदमी है जिसका ज़मीर जब्त हैं
भी क्या आदमी है जिसका ज़मीर जब्त हैं
इस
ओर है आदमी उस ओर है आदमी
ओर है आदमी उस ओर है आदमी
मैं
पूछता हूँ तुमसे
पूछता हूँ तुमसे
किस
ओर है आदमी
ओर है आदमी
तुम
किसको कहोगे आदमी ?
किसको कहोगे आदमी ?
2
वो
आदमी जो गुजर गया
आदमी जो गुजर गया
वो
आदमी जो ठहरा रहा
आदमी जो ठहरा रहा
दोनों
के बीच एक सुलझी हुई लकीर है
के बीच एक सुलझी हुई लकीर है
एक
शहंशाह का वारिस, एक फकीर है
शहंशाह का वारिस, एक फकीर है
एक
जमीन को रोपता फसलें उगा रहा
जमीन को रोपता फसलें उगा रहा
एक
उस जमीन पर मालिकाना जता रहा
उस जमीन पर मालिकाना जता रहा
एक
आदमी के पास तन्त्र है दुधारी हथियार
है
आदमी के पास तन्त्र है दुधारी हथियार
है
एक
आदमी के व्यवहार में ढाई आखर प्यार है
आदमी के व्यवहार में ढाई आखर प्यार है
एक
आदमी को सौगात में विरासत मिली
आदमी को सौगात में विरासत मिली
एक
आदमी को हक माँगने पर हिरासत मिली
आदमी को हक माँगने पर हिरासत मिली
एक
आदमी वो भी था जो कहर बरपाता रहा
आदमी वो भी था जो कहर बरपाता रहा
एक
आदमी भाग्य की मार सौ-सौ बार खाता रहा
आदमी भाग्य की मार सौ-सौ बार खाता रहा
एक
आदमी खुशनुमा ख़्वाबों का आशियाना बनवाता रहा
आदमी खुशनुमा ख़्वाबों का आशियाना बनवाता रहा
एक
आदमी रंगरोगन लगे अरमान पे खुद को चुनवाता रहा
आदमी रंगरोगन लगे अरमान पे खुद को चुनवाता रहा
एक
आदमी होने का फायदा ताजिंदगी पाता रहा
आदमी होने का फायदा ताजिंदगी पाता रहा
एक
आदमी के हाथों जिन्दा दफनाया जाता रहा
आदमी के हाथों जिन्दा दफनाया जाता रहा
वो
भी आदमी है
भी आदमी है
जो
क़त्ल किए बरी होने का गुर दिखला रहा
क़त्ल किए बरी होने का गुर दिखला रहा
वो
भी आदमी है
भी आदमी है
जो
बेगुनाह होने का दण्ड बतौर मुजरिम पा रहा
बेगुनाह होने का दण्ड बतौर मुजरिम पा रहा
इस
ओर है आदमी, उस ओर है आदमी
ओर है आदमी, उस ओर है आदमी
मैं
पूछता हूँ तुमसे
पूछता हूँ तुमसे
किस
ओर है आदमी
ओर है आदमी
तुम
किसको कहोगे आदमी ?
किसको कहोगे आदमी ?
मुमकिन
है
है
आप
सब जो यहाँ इस समय मौजूद हैं
सब जो यहाँ इस समय मौजूद हैं
गम्भीर
हो जाएँ जब मैं कहूँ “आदमी”.
हो जाएँ जब मैं कहूँ “आदमी”.
3
ये
सही है कि वो सोहबत का असर देख रहा
सही है कि वो सोहबत का असर देख रहा
ये
सही है कि वो तोहमत का असर देख रहा
सही है कि वो तोहमत का असर देख रहा
वो
खेल ही खेल में राजनीति का पाठ दोहराता रहा
खेल ही खेल में राजनीति का पाठ दोहराता रहा
वो
संजीदा होकर भी दर-दर की ठोकरें खाता रहा
संजीदा होकर भी दर-दर की ठोकरें खाता रहा
वो
जब भी सुनता है मोहब्बत तल्ख़ हंसी देता है
जब भी सुनता है मोहब्बत तल्ख़ हंसी देता है
वो
है कि इस इम्तेहान में हर दाँव आजमाता रहा
है कि इस इम्तेहान में हर दाँव आजमाता रहा
वो
बेफिक्री से जीता है और अनाज के गोदाम पे बैठा है
बेफिक्री से जीता है और अनाज के गोदाम पे बैठा है
वो
हर वक्त सोचता है और डूबते निजाम पे बैठा है
हर वक्त सोचता है और डूबते निजाम पे बैठा है
वो
खुद को बेनजीर कहता वायदों का बाज़ार लिए आया है
खुद को बेनजीर कहता वायदों का बाज़ार लिए आया है
वो
ग़ुरबत की नसीहत सौगात में बुझी साँसों का कारोबार लिए आया है
ग़ुरबत की नसीहत सौगात में बुझी साँसों का कारोबार लिए आया है
वो
यूँ भी तो ला सकता है जलजला कि सब उसकी इबादत में रहें
यूँ भी तो ला सकता है जलजला कि सब उसकी इबादत में रहें
वो
यूँ भी कर सकता है करिश्मा गर सब उसकी अदावत में रहें
यूँ भी कर सकता है करिश्मा गर सब उसकी अदावत में रहें
ये
भी ठीक है कि
भी ठीक है कि
वो
आदमी है और आदमी का हुलिया हुनर जानता है
आदमी है और आदमी का हुलिया हुनर जानता है
मगर
वो भी तो आदमी है
वो भी तो आदमी है
गुमशुदा
नगीनों की शामो-सहर जानता है
नगीनों की शामो-सहर जानता है
मत
पूछिए आदमी की हैसियत उससे जनाब
पूछिए आदमी की हैसियत उससे जनाब
वो
आदमी को औकात में रखना जानता है
आदमी को औकात में रखना जानता है
दर्द
नजर भले ही नहीं आता मगर वो आदमी
नजर भले ही नहीं आता मगर वो आदमी
दर्द
का हर एक हर्फ़ उकेर आजमाना जानता है
का हर एक हर्फ़ उकेर आजमाना जानता है
मुमकिन
है
है
आप
सब जो यहाँ इस समय मौजूद हैं
सब जो यहाँ इस समय मौजूद हैं
गम्भीर
हो जाएँ जब मैं कहूँ “आदमी”.
हो जाएँ जब मैं कहूँ “आदमी”.
इस
ओर है आदमी, उस ओर है आदमी
ओर है आदमी, उस ओर है आदमी
मैं
पूछता हूँ तुमसे
पूछता हूँ तुमसे
किस
ओर है आदमी
ओर है आदमी
तुम
किसको कहोगे आदमी ?
किसको कहोगे आदमी ?
****
अनिल पुष्कर हिन्दी अनुवाद में जेएनयू से पीएच.डी हैं…. वामपंथी राजनीति और संगठनों से जुड़ाव है। सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक मुद्दों पर लेखन में सक्रिय रहते हैं और ऑनलाइन वेब-पत्रिका अर्गला का सम्पादन-संचालन कर रहे हैं। जैसा कि पहले ही लिख चुका हूं कि अब तक फेसबुक पर हुआ संवाद ही हमारे बीच की अकेली कड़ी है। अनिल की सूचना के अनुसार एक ही समय में नाम से उनका कविता संग्रह प्रकाशनाधीन है….और ये कविताएं इसी संग्रह का हिस्सा हैं।
अपनी कविताओं के बारे में अनिल का कहना है –
ये आग की कवितायें है
भोगा हुआ पतीला रखा है
मन की किरचें बुदबुदा रही हैं
आक्रोश का लावा खौल रहा है
एक समंदर है खारा सा
मृदंग शोक का डोल रहा है
कोहरे में आकाश ढका है
विहंग अधमरा बोल रहा है
***
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