उम्मीद
मैं कवितायेँ लिखता हूँ
पर उनको कोई नहीं छापता
एक दिन ऐसा जरुर आएगा जब छपेंगी मेरी कवितायेँ.
मुझे इंतजार है एक चिट्ठी का
जिसमें आयेगी कोई अच्छी खबर
हो सकता है उसके आने का दिन वही हो
जिस दिन मैं लेने लगूँ आखिरी साँसें…
पर ये हो नहीं सकता
कि न आये वो चिट्ठी.
दुनिया सरकारें या दौलत नहीं चलाती
दुनिया को चलाने वाली है अवाम
हो सकता है मेरा कहा सच होने में लग जाएँ
सैकड़ों साल
पर ऐसा होना है जरुर.
***
मुझे अब बुढ़ापे की आदत हो गयी है
मुझे अब बुढ़ापे की आदत हो गयी है
यह दुनिया की सबसे कठिन कला है…
दरवाजे पर ऐसे दस्तक देना जैसे ये आखिरी बार हो
और अब बिछुड़ना आसन्न हो.
घंटों…तुम…बहो…बहते रहो…बहते रहो…
भरोसे को दाँव पर रख कर
मैं कोशिश कर रहा हूँ कि समझ सकूँ सारा माजरा .
तुमसे बहुत कुछ कहने को मन में था
पर कहना संभव हुआ नहीं.
जैसे कि मेरी दुनिया के अंदर बसा हुआ
सुबह सबेरे की सिगरेट का स्वाद…
मृत्यु खुद आने से पहले ही भेज चुकी है
मेरे पास अपना हरकारा अकेलापन.
मुझे उन तमाम लोगों से जलन होने लगी है
जिनको इल्म ही नहीं है कि वे बूढ़े हो रहे हैं
और गहरे जुड़ाव के साथ लगनपूर्वक
जुटे हुए हैं अपने काम में आदतन.
***
Bahut achhi lagi dono kavitayen.Ek bade kavi ki badi kavitayen.Ummeed mein Kafka yaad aate rahe aur doosri kavita ki aakhiri panktiyon mein apna vartmaan dekhta raha….
अच्छी कविताओं का उतना ही अच्छा अनुवाद…यादवेन्द्र जी को सलाम