यादवेंद्र जी अनुनाद के सबसे सक्रिय सदस्य हैं। इधर मेरे कुछ निष्क्रिय होने पर उनके अनुवादों ने ही अनुनाद को सहारा दिया है। वे कविता के क्षेत्र में हर तरह से हस्तक्षेप करते रहे हैं। उनकी ख़ुद की कविताएं बहुत समर्थ कविताएं हैं, जिन्हें पता नहीं किस संकोच में वे छिपाए रखते हैं। कभी-कभी ही ऐसा होता है कि वे अपनी कविता पढ़ने को भेजें। उनकी एक कविता पहले अनुनाद पर छपी है और इस बार मुझे फिर सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि उनकी एक कविता आपके सामने रख पाऊं।
कहीं कुछ तो होगा
इस भरेपूरे जहान में कहीं कुछ तो ऐसा होगा
जो काल की धुरी से छिटक कर लट्टू सा दूर जा गिरा होगा
और अपनी धुन में न्यूटन का सेब बनने से बचने पर इतरा रहा होगा
यह परिव्राजकों और कोलंबस की खोजी निगाहों में आने से रह गया होगा
जिन्हें धुरंधर खगोलवेत्ताओं की ऑंखें और उपकरण नहीं देख पाए होंगे
दुनिया में धर्मों का परचम लहराने वाले तमाम पैगम्बरों की बानियों में
कोई तो पृष्ठ ऐसा होगा जो अबतक शामिल होने से रह गया होगा
जो इस अवधारणा को धता बता कर चमत्कृत हो रहा होगा
कि एक एक रजकण का हिसाब है ऊपर वाले की पोथी में दर्ज…
ऐसी कहीं कुछ अनगढ़ दरारें मुँह बाए साँस ले रही होंगी
मानव जाति की कालजनित ढलानों और गह्वरों में
जो सब कुछ हजम करके भी संतुष्ट और अनुकूल नहीं हो पाई होंगी
और उनके अंदर फलफूल रही होंगी कुछ अबूझ जीवात्माएं और संस्कृतियाँ
कुछ जरुर ऐसा बावला भाव अंदर ही अंदर करवटें ले रहा होगा
जो छूटा रह गया होगा शिकारी के जाल में हिफाजत से दबोच लिए जाने से
वेदों और ओल्ड टेस्टामेंट में दर्ज किये जाते समय
जरुर कुछ बातें बांधे जाने से पहले हवा में छितर गयी होंगी
नोस्त्रादेमस की तमाम भविष्यवाणियों से छिप छिप कर भी
जरुर कुछ सार्थक घटित हो रहा होगा यहाँ वहाँ….
इस धरती पर डोलती होंगी जरुर कुछ ऐसी भ्रांतियां और नादानियाँ
जिनका अतापता लाख सावधानियों के बावजूद
न तो संयुक्त राष्ट्र के डिजिटल डेटाबेस में शामिल हो पाया होगा
और न ही ये अपने अनगढ़ रूप को सजाने संवारने के लिए पकड़ में आयी होंगी.
इन अरूप सत्यों का आभास आर्यभट को नहीं मिल पाया होगा
न ही गणेश के वाचन से संपन्न हुई किताबों में उनका जिक्र आया होगा
जो आइन्स्टीन की परिशुद्ध गणनाओं की परिधि से बाहर ही बाहर
असमय आवारा और उद्धत डोल रही होंगी अतृप्त आत्माओं की तरह…
कुछ ऐसा नहीं है दृढनिश्चय के साथ कौन लिखेगा
कहीं कुछ तो ऐसा होगा
थोड़ा कुरेदो तो ऐसा कहने वाले जाने कितने मिल जायेंगे…..
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अदभुत!अदभुत!
अदभुत!
आईंस्टीन की गणनाओं के बाहर , असमय , आवारा और उद्धत ….. उसे मैं प्यार करता हूँ . IT BELONGS to ME . आभार , यादवेन्द्र जी. बह गया मैं तो !!
शानदार कविता
गणनाओं से बाहर उस 'कुछ' की और इंगित करती अभिव्यक्ति चमत्कृत करती है!
बहुत अच्छी कविता।