मैं एक शब्द लिखता हूं ऐन उसके पहले
वे तय कर देते हैं उसका अर्थ
कई बात तो मेरे सोचने से भी पूर्व
वे खींच देते हैं दो पंक्तियां
और कहते हैं
उतार लो इनमें आज का पाठ
सुलेख लिखो सुंदर और कोमल लिखो अपने दुख
हमारे संताप रिसते हैं निब के चीरे से
कागज की छाती पर कलंकित
अचानक प्रतिपक्ष तय करती एक स्वाभाविक दुर्घटना घटती है
कि स्याही उंगलियों का पाते ही साथ
सर जाती है
मां का आंसू अटक जाता है
पिता की हिचकियां बढ़ जाती हैं
बहनें सहमकर घूंट लेती हैं विलाप
भाई एक धांय ये पहले ही होने लगते हैं मूच्र्छित
आशंकाओं के आपातकाल में
निरी भावुकता ठहराने की जुगत में जुट जाते हैं सभी
कि माफ करें बख्शें हुजूर क्षमा करें गलती हुई
पर वे ताने रहते हैं कमान सी त्यौरियां
फिलहाल मेरे हाल पर फैसला
एक सटोरिया मेरे हाल पर फैसला
एक सटोरिया संघसेवक पर मुल्तवी करता है
जबकि उस जाति में पैदाइश से अधिक नहीं मेरा अपराध
जिस बिरादरी का सर बना फिरता है वह
मसलन,
यह नागरिकता के सामान्यीकरण का दौर है
यह स्वतंत्रता के सामान्यीकरण का दौर है
यह अभिव्यक्ति के सामान्यीकरण का दौर है.
यह ऐसा दौर है जब
जीवन का अर्थ कारसेवा घोषित किया जा रहा है
मैं एक शब्द लिखता हूं
और जिंदा रहने की नागरिक कवायद में
जीता हूं मृत्यु का पश्चाताप संगसार होता हूं बार-बार
और मैं एक और शब्द लिखता हूं…
समुद्री मछुवारों का गीत
हमारी रोटी है समुद्र
हमारी पोथी है समुद्र
हमारे तन में जो मछलियां
समुद्र की हैं
हमारे जीवन में जो रंग विविध
समुद्र के हैं
धैर्य और नमक है
हमारे रक्त का रास्ता
हवा ओ हवा
कृतज्ञ हैं
विपरीत हो तब भी
आकाश ओ आकाश
कृतज्ञ हैं
छेड़े हो असहयोग तब भी
पानी ओ पानी
कृतज्ञ हैं
छलक रहे हो ज्यादा फिर भी
हवा का सब रंग देखा है
आकाश का देखा है रंग सब
पानी का सब रंग देखा है
मरी हुई मछली है हमारा सुख
सह लेंगे
मौसम का द्रोह
एक मोह का किनारा है हमारा
सजगता का सहारा है
रह लेंगे लहरों पर
हम अपनी सांसों के दम पर जियेंगे
जैसे जीते हैं सब
अपने भीतर के समुद्र का भरोसा है प्रबल.
अच्छी लगीं दोनों कवितायेँ. कवि को कविता समय युवा सम्मान के लिए बधाई…
bahut hi sundar kavitain hain, khas kar machhuwaron ka geet behad pasand aayi. padhwane ke liye aabhar evm kumar ko shubhkamnain.