जब खूब बोझिल हो रात
तारे धरती पर उतर आने को तैयार हों
तब यह मुश्किल वक्त है
उन लोगो के लिए
जिनके जीवन में रोशनी की कोई लौ नहीं है
घर दुआर छोड़ पैदल
हज़ारों मील की यात्रा के बावजूद
सिर्फ कोरा आश्वासन
यह सब क्या है?
इस इतने बड़े लोकतंत्र में
गांधी की राह पर चलकर
आंदोलन के अब क्या कोई मायने नहीं?
यह वक्त ही बिकाऊ है
धरती जड़ ज़मीन सपने सभी तो
यहां तक कि भूख पर पहरेदारी बिठा
हसरतों का बैनामा हो चुका है
हंसी के आपातक्षण भी आखिर अब कहां बचे हैं?
किसने खरीद लिया है यह सब
मज़बूर किसने किया है?
चलनी में पानी पीने के लिए
पेड़ों को दुख है कि वे चल नहीं सकते
नहीं है उनके पास कोई उपाय
आरों से अपना सीना चाक करवाने के अलावा
वह दिन दूर नहीं जब
तुम्हें पड़ेगा प्राणवायु का टोटा
और तुम किसी बोतल में खरीदोगे उसे आज के पानी की तरह
तब समझ में आएगा विस्थापन का दर्द !
सेंसेक्स का गणित धरा रह जाएगा तब
क्योंकि पैसा नहीं है पानी और हवा का विकल्प
पानी, हवा और अनाज जीवन है
और जीवन जाहिर है टाटा की लखटकिया कार से
ज्यादा महत्वपूर्ण है
इसलिए दोस्तो ….. ऐसे में
जब गति हो तेज़
तब असावधानी का एक क्षण भी
भारी है समूची धरती पर !
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आपको शुभकामनाएं
दीपक भारतदीप