कवितार्थ प्रकाश -एक
कुछ भी कहता हो नासा
कम्प्यूटर की स्क्रीन कितनी ही झलमलाए
पर इतना तय है
कि किसी सत्यकल्पित डिज़िटल दुनिया
या फिर सुदूर सितारों से नहीं आएगी कविता
अन्तरिक्ष में नहीं मंडराएगी
आएगी हम जैसे ही आम-जनों से भरी इसी दुनिया से
बार-बार हमसे ही टकराएगी
वह उस टिड्डे के बोझ तले होगी
जिसमें दबकर धीरे से हिलती है घास
वह उस आदमी के आसपास होगी
जो अभी लौटा है सफर से
धूल झाड़ता
और उस औरत की उदग्र साँसों में भी
जिसने
उसका इन्तज़ार किया
वह उस बच्चे में होगी
जिसके भीतर
रक्त से अधिक दूध भरा है
बावजूद इस सबके इतनी कोमल नहीं होगी
वहउसमें राजनीति भी होगी
ज़रूरी नहीं कि जीत ही जाए
लेकिन वह लड़ भी सकेगी
लोग बहुत विनम्र होंगे तो वह बेकार हो जायेगी
ऐसे लोगों की कविता सिर्फ संस्कृति करने के काम आयेगी !
कवितार्थ प्रकाश-दो
काम से घर लौटते
अकसर लगता है
मुझको
कि आज बुखार आने वाला है
और यह कुछ ऐसी ही बात है
जैसे कि लगे दिमाग़ को
कोई कविता आने वाली है
अभी वह आएगा
कनपटी से शुरू होकर घेरता पूरे सिर और फिर पूरे शरीर को
उसे हमेशा ही
एक गर्म आगोश की तलाश होगी
और वह उसे मिल जाएगा
सब कुछ ठीक रहा तो अपना काम कर
कंपाता हुआ मेरे वजूद को
एकाध दिन में गुज़र भी जाएगा
(ऊपर जो कुछ भी मैंने कहा वह तो बुखार के लिए था
कविता के बारे में कहने को हमेशा ही
सब कुछ बाक़ी ही रहा ! )
कवि की छटपटाहट स्भाविक है , अच्छी कविता…
गहरी बात कह रहे हैं, बहुत सही.
काम से घर लौटते
अकसर लगता है
मुझको
कि आज बुखार आने वाला है
और यह कुछ ऐसी ही बात है
जैसे कि लगे दिमाग़ को
कोई कविता आने वाली है
बहुत ख़ूब भाई. दोनों ही रचनाएं बहुत ही उम्दा.
काम से घर लौटते
अकसर लगता है
मुझको
कि आज बुखार आने वाला है
और यह कुछ ऐसी ही बात है
जैसे कि लगे दिमाग़ को
कोई कविता आने वाली है
बहुत ख़ूब भाई. दोनों ही रचनाएं बहुत ही उम्दा.
लोग बहुत विनम्र होंगे तो
वह बेकार हो जायेगी
ऐसे लोगों की कविता
सिर्फ संस्कृति करने के काम आयेगी
महत्वपूर्ण पंक्तिया है शिरीष भाई.
धन्यवाद समीर जी, विजय भाई, मीत भाई और आभा जी !
वाह… उस बच्चे की कविता कितनी गोल-गोल होगी जिसमें रक्त से अधिक दूध भरा होगा।
मुझे तो लगा था कि कविता बुखार की तरह नहीं बल्कि
जैसे बाघ घुस आता है गोट में
गाड़ जैसे अचानक बहा ले जाती है
सालभर के थके पानी का हरापन
कोई बच्चा जैसे उछल पड़ता है
सड़क के बीच केमू की बस देखकर
हाथ हिलाता हुआ
ऐसे आती होगी। मगर जो भी हो आपकी कविता आती मज़ेदार तरीके से है। बुखार से भी कविता निकाल ली?
शुभम।