अनुनाद

गंदे पोस्टकार्ड – अविनाश मिश्र





गंदे पोस्टकार्ड
अविनाश मिश्र



मेरी एकांतप्रियता का जन्म तब हुआ जब लोगों ने मेरी वाचाल त्रुटियों की प्रशंसा प्रारंभ की और मूक गुणों की निंदा…
खलील जिब्रान
***

हिंसा
व्यवहार में
अन्याय के प्रतिकार में चली आई

यह मनुष्यता थी
नैतिकता थी
या
कायरता
कि प्रायश्चित भी चला आया
* 

वे ठीक कहते हैं तुम्हारी कविताएं सचमुच अद्भुत हैं और कहानियां भी और एक अनियतकालीन साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित वह समीक्षा भी जो तुम्हारी नहीं एंतोनियो ग्राम्शी की बात से शुरू होती है। तुम जब एंगेल्स को उद्धृत करते हो, हास्यास्पद नहीं, कसम से बहुत क्रांतिकारी लगते हो। मेरी छोड़ो, मेरे तो मन में ही कोई दिक्कत है, पानी तक अच्छा नहीं लगता…।

…एक कप चाय के लिए भी जब इतने झूठ बोलने पड़ते थे, तब जिंदा रहने के लिए सोचो मैंने क्या-क्या न किया होगा। जो जहां था वहीं से धोखा देने में लगा हुआ था और मैं इतनी मुश्किल में था कि इतना वक्त भी नहीं था मेरे पास कि किसी मुश्किल में फंस सकूं।
*

मन की कीमत बहुत कम थी
*

मैं बातें भले ही गांव की करता था लेकिन दिल्ली में रहते एक उम्र गुजर गई थी और सारी जिंदगी का कमीनापन निचुड़कर चेहरे पर आ गया था मैं लाख उलझाता था चुप लगाता था। कुछ भी सुनाता था। कहीं भी चला जाता था। पहचाना जाता था।

मैं शीर्षस्थानीय था  
*  


सच्ची कविताओं के पंख होते हैं।
एमिली डिकिंसन
***


एक अच्छा कवि चाहता है कि उसकी खराब कविताओं की चर्चा हो
एक खराब कवि चाहता है…
*

वे कहते हैं, ‘‘कला में नक्काशी की उम्र ज्यादा नहीं होती।’’
मैं कहता हूं, ‘‘केवल दूर से देखने पर ही वह सपाट नजर आती है।’’
*

मेरी भविष्यवाणियों के दुर्दिन आ गए हैं
मैं कह रहा हूं, ‘‘यह भविष्य के लिए सुखद है।’’
*

मैं
कल के लिए हूं
मेरा आज तो सिर्फ तैयारी है
कल ही मिलना मुझे
                                                       इब्बार रब्बी
***
राजनीतिज्ञ चाहें कितने भी ईमानदार क्यों न हों, उन्हें नमस्कार करने वाले लेखक हिंदी में अच्छे नहीं माने जाते थे

‘‘मेरे घर में आग लग गई।’’ यह अपने संपादकीय में बताने वाले संपादक हिंदी में अच्छे नहीं माने जाते थे

घर बुलाकर अपनी कविताएं सुनाने वाले कवि हिंदी में अच्छे नहीं माने जाते थे

अपने पाठकों को अपने समीक्षक में तब्दील कर देने वाले कथाकार हिंदी में अच्छे नहीं माने जाते थे

एक समय हिंदी में सब के सब बुरे नहीं माने जाते थे।
*

अनुभूत सत्य कायमनोवाक्य से प्रस्फुटित होता ही था…
* 

पाखंडियों के घर में इतनी किताबें देखीं कि मैंने कबाड़ियों से संपर्क किया।
*


मैं
कल
पर
बहुत
कम
काम
छोड़ता
था।
*

तुम मात्र एक अहंकार हो अवसाद से झुठलाए हुए…
स्टीवन मलार्मे
***

बहुत सारे महानुभावों से 
मुलाकातें हैं केवल एक बार की 

इन पर भी चढ़ती जाती है परत वर्षों की 

इस महानुभावता से इस कदर हुई भेंट 
कि पुन: मिलने की गुंजाइश न रही 

थोड़ा बेफिक्र हुआ तो बहुत कृतघ्न हुआ 
बहुत फिक्रमंद था तो थोड़ा कृतज्ञ था 
*

क्रांतिकारियों के पते नहीं पूछा करते। यह अलग तथ्य है कि लड़कियां उन्हें सदा से खत लिखना चाहती रही हैं, लेकिन यह लड़कियों की समस्या है, क्रांतिकारियों की नहीं।
*

सहमति में वक्त है अभी
दुःख सख्त है अभी

आना तो लेते आना
थोड़ी-सी सहमति भी

कि आदमी तो मैं ठीक लगता हूं
लेकिन हूं नहीं
*

अगर मैं कोई ऐसा सुंदर वाक्य लिखूं जिसमें संयोगवश दो लयबद्ध पंक्तियां हों तो वह एक भारी भूल होगी।
— Ludwig Wittgenstein
***


आईटीओ से उसने मोड़ ली गाड़ी जाम बहुत था  
हालांकि दरियागंज में उसको काम बहुत था

दौ सौ पच्चीस रुपए की रॉयल्टी का था चेक उठाना
एक पांडुलिपि थी जमा करानी जिस पर ईनाम बहुत था

अंसारी साहिब से मिलना था उनकी चौखट तक जाकर
उनकी नजरों में अब तक वह नाकाम बहुत था

खानी थी लाला की बिरयानी और बंटा पीना था
बात अलग कि दो दिन से जुकाम बहुत था

जाग्रुति तो लोहे वाले पुल के नीचे रुकी हुई थी
सृम्रुद्धि को प्रधानसेवक का नाम बहुत था

उड़नखटोले उड़ते थे आईजीआई एयरपोर्ट से
गोशे में गोलचा के उसे आराम बहुत था
*

गर्मी के दिन मेरे लिए तपने के दिन होते हैं। मैं धरती की तरह तपता हूं।
संचय करता हूं ताप!
                                मलयज
***

पिथौरागढ़ या शिमला…
कहीं नहीं जाऊंगा
जहां-जहां बुलाया जाऊंगा
वहां-वहां नहीं जाऊंगा

आऊंगा
जब नहीं बुलाया जाऊंगा
बिन बुलाए परिचित की तरह
या अयाचित अपरिचित की तरह आऊंगा
आ धमकूंगा सुख की तरह
भूख की तरह लग जाऊंगा
बीमारियों और पुरस्कारों की तरह नहीं आऊंगा
अपनी ही गलती अपनी ही साजिश से नहीं आऊंगा

आऊंगा
शिविरबद्धता और उत्सवधर्मिता के आमंत्रण-पत्रों को फाड़कर
असमंजस की तरह नहीं
दृढ़ता की तरह आऊंगा
बगैर तस्वीर की खबर की तरह आऊंगा
नहीं आऊंगा पत्रकार की तरह
प्यार की तरह आऊंगा
पराजितों की तरह नहीं…
****
अविनाश मिश्र का लिखा बहस में रहता है
कम लेखक हैं, जिनका लिखा बहस में रहता है
विसंगति है
कि कमतर लेखकों का लिखा चर्चा में रहता है
और इसे विडम्बना की तरह देखने वाले भी चर्चा में रहते हैं
 लोग भूल जाते हैं चर्चा और बहस का अन्तर

गंदे पोस्टकार्ड को पढ़ने और छापने का अनुभव मैं चाहता हूं बहस में रहे
चर्चा का चरखा अब सूत नहीं कातता, उसके लिए बड़े-बड़े कारख़ाने लगे हैं

अनुनाद एक छोटी जगह है 
लेकिन यहां बैठकर बहस कर सकते हैं
चिट्ठियां पढ़ सकते हैं
बात कर सकते हैं न सिर्फ़ लिखने वाले पर
पाने वालों पर भी
साहित्य की भव्य इमारतों और जलसों से दूर
आमराहों पर चलने वालों के लिए यह जगह ख़ानकाहों की तरह हमेशा खुली रहती है।
इन पोस्टकार्ड्स का 
यहां स्वागत है अविनाश।

0 thoughts on “गंदे पोस्टकार्ड – अविनाश मिश्र”

  1. अविनाश जितना बेहतरीन कवि है, उससे भी बेहतरीन इंसान है। उसके जैसे दोस्‍त कम ही मिलते हैं। गंदे पोस्‍ट दरअसल, इस समय में घट रही गंदगी को धोने देने का एक प्रयास है। इस बाजारवादी दौर में अविनाश साहित्‍य को जिस तरह से बचाने की कोशिश करे हैं और उस पडते जा रहे झूठ को सामने लाने के लिए बेचैन दिखाई देते हैं, ऐसे कम ही लोग हैं।

    अविनाश खूब खूब गंदा लिखो…! 🙂

  2. इन कविताओं में एक विस्थापित किन्तु दुर्धर्ष जिजीविषा की उपस्थिति है।महान रचनाकारों की पंक्तियों को प्रसंग और प्रेरणा की तरह इस्तेमाल करने का शौक समकालीन कई कवियों में है लेकिन अविनाश की कविताओं में उन पंक्तियों के साथ न्याय हुआ है। कविताओं में सुनी हुई ध्वनियाँ घुली हैं फिर भी एक अलग तरह की मासूमियत कवि का वैशिष्ट्य है। वे लगातार लिखते रहे तो निश्चित ही भविष्य के बड़े कवि होंगे।

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