यक्ष -युधिष्ठिर संवाद हमने पहले भी अनुनाद पर साझा किए थे, जिन्हें आप यहां पढ़ सकते हैं। उसी क्रम में यह एक और संवाद। अनुनाद पंकज मिश्र का आभारी है।
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यक्ष –
सबसे कोमल भावनाएं किसकी होती है और क्यों ?
युधिष्ठिर –
साहित्यकारों की , वरना रचना सम्भव नही | साहित्यकार भावुक न होगा तो सम्वेदनशील कैसे होगा | संवेदनशील न होगा तो विचलित कैसे होगा | विचलित न होगा तो दिमाग में खलबली कैसे मचेगी और खलबली न मचेगी तो वह रचेगा कैसे | अब हर छोटी बड़ी बात पे झंडा तो उठाया नही जा सकता |
सबसे कोमल भावनाएं किसकी होती है और क्यों ?
युधिष्ठिर –
साहित्यकारों की , वरना रचना सम्भव नही | साहित्यकार भावुक न होगा तो सम्वेदनशील कैसे होगा | संवेदनशील न होगा तो विचलित कैसे होगा | विचलित न होगा तो दिमाग में खलबली कैसे मचेगी और खलबली न मचेगी तो वह रचेगा कैसे | अब हर छोटी बड़ी बात पे झंडा तो उठाया नही जा सकता |
यक्ष –
क्या इसीलिये उसकी भावनाएं बात बात पर आहत होती है ?
युधिष्ठिर –
उफ़ …. भावुक होने से आशय यह है कि उसे चीज़ों से फ़र्क़ पड़ता है | वह जड़ नही चेतन है अतः घटनाओं से प्रभावित होता है | चेतन है इसलिए सिर्फ प्रभावित हो कर रह नही जाता अपने तइं चीज़ों को प्रभावित करने की कोशिश भी करता है | रचना इसी द्वंदात्मकता का फलन है | प्रभावित होने और आहत होने में अंतर करना सीखिये यक्ष |
क्या इसीलिये उसकी भावनाएं बात बात पर आहत होती है ?
युधिष्ठिर –
उफ़ …. भावुक होने से आशय यह है कि उसे चीज़ों से फ़र्क़ पड़ता है | वह जड़ नही चेतन है अतः घटनाओं से प्रभावित होता है | चेतन है इसलिए सिर्फ प्रभावित हो कर रह नही जाता अपने तइं चीज़ों को प्रभावित करने की कोशिश भी करता है | रचना इसी द्वंदात्मकता का फलन है | प्रभावित होने और आहत होने में अंतर करना सीखिये यक्ष |
लेकिन हाँ , हाल फिलहाल में उसकी भावनाये जो इतनी भंगुर हुई है , इसमें साहित्यकारों का कोई दोष नही है | यह तो समय
की मांग है | क्या कीजियेगा समय जो बदल गया है |
यक्ष –
समय को क्या हुआ है जो इसकी भावनाए इतनी भंगुर हुई हैं ?
युधिष्ठिर –
समय में यह बदलाव आया है कि आजकल सब कुछ व्यापार हो गया है | सब बाज़ार तय कर रहा है| अगर आप बाजार के मुआफिक नही तो आप जी नही सकते | अब साहित्यकार को लीजिये | इसे भी बाजार के कायदों से ही चलना होगा वरना बीड़ी पी पी , फेफड़े में बलगम भरे , खांसते खांसते मर जाइए कोई पूछने वाला नही | साहित्यकार की वैकेंसी सिस्टम अपने तरीके से फिल अप कर ही लेगा | रजत शर्मा को किया कि नही किया | तो यक्ष जी , साहित्यकारों को अब अपना भला बुरा खुद सोचना है | उन्हें भी अपनी दूकान चमकानी है ,अपना माल बेचना है |
समय को क्या हुआ है जो इसकी भावनाए इतनी भंगुर हुई हैं ?
युधिष्ठिर –
समय में यह बदलाव आया है कि आजकल सब कुछ व्यापार हो गया है | सब बाज़ार तय कर रहा है| अगर आप बाजार के मुआफिक नही तो आप जी नही सकते | अब साहित्यकार को लीजिये | इसे भी बाजार के कायदों से ही चलना होगा वरना बीड़ी पी पी , फेफड़े में बलगम भरे , खांसते खांसते मर जाइए कोई पूछने वाला नही | साहित्यकार की वैकेंसी सिस्टम अपने तरीके से फिल अप कर ही लेगा | रजत शर्मा को किया कि नही किया | तो यक्ष जी , साहित्यकारों को अब अपना भला बुरा खुद सोचना है | उन्हें भी अपनी दूकान चमकानी है ,अपना माल बेचना है |
आखिर
साहित्यकार के पास बेचने के लिए क्या प्रोडक्ट है ? उसकी रचना |
जो बिना सम्वेदनशील और भावुक हृदय के सम्भव नही | दरअसल रचनाओं की शक्ल में अपनी भावनाओं को ही ती शोकेस कर रहा होता है |
आप जानते ही है कि , किसी दुकान के शोकेस या
उस के चमचमाते डिस्प्ले बोर्ड पर जरा सी खरोंच आ जाए या जरा सा दाग लग जाये तो
कितना उभर कर दीखता है | इसलिए यदि उसे यह आशंका भी हो कि
दूर मैदान में क्रिकेट खेल रहे बच्चों की बाल शायद कभी डिस्प्ले बोर्ड को नुक्सान
पहुंचा सकती है तो वह उस अज्ञात भय की आशंका में भी उन्हें भगाने लगता है |
यही आशंका उसे इतना वल्नरेबल बना देती है कि बात बात पर वास्तव में
आहत न होते हुए आहत महसूस करने लगता है | भंगुर भावनाओं का
राज़ यही है |
फिर
….प्रोडक्ट की झाड़पोंछ् तो वह डिलवरी के वक़्त भी कर सकता है लेकिन डिस्प्ले
बोर्ड / शोकेस को वह बिलनागा सबसे पहले चमकाता है | दिन में भी
कई कई बार और दुकान बढ़ाते वक़्त भी सबसे ज्यादा उसे ही सुरक्षित कर के जाता है |
ये बेचारा ……अपने समय का मारा …इसकी भावनाओं का सम्मान कीजिये
….कुछ न कहिये , कुछ न बोलिए …….वैसे कुछ न कहेंगे या
बोलेंगे तो भी यह आहत हो जाएगा …….कि , उसकी कहीं कोई
चर्चा नही , कि , उस पे कहीं कोई चर्चा
नही | यह आहत होने को अभिशप्त है और अब तो अभ्यस्त भी |
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