अनुनाद

अपर्णा कडसकर की कविताएं : अनुवाद – स्वरांगी साने



स्वरांगी साने के अनुवाद में मराठी कविताओं की यह दूसरी प्रस्तुति है। कवि और अनुवादक का आभार।
***
अपर्णा कडसकर, इस नाम की एक अलग छटा है। उसे जितनी बार पढ़ा है, हर बार चौंकाया है…उसकी कविताएँ बहुत कुछ कहती हैं। कई चीज़ों के बारे में बहुत सशक्त तरीके से कहतीहैं। उसका विमर्श उस तरह का स्त्री विमर्श नहीं है और केवल स्त्री विमर्श नहीं है…उसका विमर्श उसके वलय से जुड़ा है, जिसमें कई चीज़ें समाहित हैं।


ज़ुबान


शारीरिक संबंध बनाने से
मना कर दिया था उस महिला ने
सुना है                           
इस वजह से
उन लोगों ने
उसकी ज़ुबान काट डाली थी
फ़िर दर्ज हुआ अपराध
पुलिस ने बाकायदा की जाँच
कचहरी में मुकदमा भी चला
पर कोई सबूत न होने से
न्यायाधीश ने
सबको बाइज़्ज़त बरी कर दिया
तब बहुत बरपा हंगामा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में।
किसी ने कहा                                  
पुलिस ने उसकी कटी ज़ुबान को सबूत ही नहीं माना
उन्हें लगा होगा, ज़ुबान और वह भी स्त्री की उसकी क्या कीमत!
कोई बोल पड़ा
गवाह था ही नहीं कोई जो देखता उसकी ज़ुबान कटते हुए
(वैसे भी कौनखुली आँखें रखता है
वे तो बाद में खुलती हैं।)
किसी ने कहा
सवाल-जवाब हुए
तब वह कुछ बोली ही नहीं
और किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया उसने
ख़ुद को जाने क्या समझती थी

किसी ने कहा,
वह अपराधियों के नाम नहीं बता सकती थी
तो कम से कम लिख ही देती
पर लगता है अंगुली कट जाएगी
इस डर से वह मुट्ठी बाँधे बैठी रही थी पूरे समय
बेअक़्ल, डरपोक कहीं की!
फिर पता चला
मेडिकल रिपोर्ट पढ़कर
न्यायाधीश ने दिया था निर्णय
उनका कहना था यह मुकदमा ही झूठा था
ज़ुबान काटना संभव ही नहीं था
क्योंकि
चिकित्सा जाँच में पाया गया था
कि उस महिला को ज़ुबान थी ही नहीं ।
***

ज़ुबान


शारीरिक संबंध बनाने से
मना किया
कहते हैं इसलिए उन लोगों ने
उसकी ज़ुबान काट डाली।

औरतो सावधान रहो, समझीं !
हाथ हिलाकर निषेध किया तो हाथ नहीं रहेंगे
गर्दन मनाही में हिलाई तो गला तक काट डालेंगे वे।
बुरी से बुरी स्थिति के लिए हमें तैयार रहना होगा
बहनो
किसी के बारे में कुछ कह नहीं सकते
तुम्हें ही तय करना होगा कि
कैसे दें नकार
पर पहले तो यह तय करना होगा
कि नकार देना भी है या नहीं?
और उसके एवज में क्या खोना है
क्योंकि
महिला जब इंकार करती है
तो उसका पूरा शरीर इंकार करता है
उसका रोम-रोम
उसकी जागृति,
उसका हृदय,
मन, बुद्धि और आत्मा भी कर देती है इंकार।     
***

ज़ुबान


ज़ुबान काट डाली उसकी
क्योंकि उसने
शारीरिक संबंध रखने से मना कर दिया था
क्या उसे पता नहीं था
महिलाओं के लिए ज़ुबान
केवल खाना निगलने के लिए है
और पुरुषों के सारे अपराध निगलकर
हमेशा के लिए अपने पेट में दबाए रखने के लिए होती है ज़ुबान
***

ज़ुबान

मुझे बहुत चिंता होने लगी है
उसने शारीरिक संबंध बनाने से मना कर दिया
इसलिए उन्होंने उसकी ज़ुबान काट डाली न, तबसे।
छि: ! छि: ! अब उसकी चिंता करने से क्या होगा?
चिंता तो पहले ही की जानी चाहिए थी उसकी
कम से कम उसे तो अपनी ज़ुबान की चिंता करनी थी
मुझे तो किसी और बात को लेकर चिंता है
उस कटी ज़ुबान का क्या हुआ?
कहाँ है वह ज़ुबान?
अरे नहीं,
मुझे ज़ुबान की भी चिंता नहीं
मेरी बात ठीक से सुन तो लीजिए
मुझे डर है
कि
मान लो वह ज़ुबान
किसी मासूम बच्ची के हाथ लग गई हो ग़लती से
और उसने उसे
ख़ुद की ज़ुबान पर चस्पा करलिया तो…
उस ज़ुबान का ख़ात्मा करना ही होगा, सबसे पहले।
***
 
ज़ुबान


काट डाली नराधमों ने उसकी ज़ुबान
नहीं, नहीं उन्हें उसकी ज़ुबान नहीं चाहिए थी
उन्हें चाहिए था उसका पूरा शरीर
पर उसने दिया नकार
अरे, उसमें इतना हो-हल्ला मचाने की क्या बात
उसमें सदमे में आने जैसा क्या है भला
महिलाओं की ज़ुबान वैसे भी
किसी भी उम्र में
कहीं भी, कभी भी काट दी जाती है
कभी जन्म लेने से पहले
तो कभी जन्मते ही उसके साथ मार डाली जाती है उसकी ज़ुबान
बचपन में
लड़कपन में
युवावस्था में
बड़ी उम्र की हो जाने पर
कभी लालच देकर
कभी मुँह बंद कर
कभी डर दिखा कर
बंद कर दी जाती है उसकी ज़ुबान।
शादी के बाद कई बार बेहोश कर दी जाती है ज़ुबान
कभी ज़ुबान जला दी जाती है
कभी खुद ही फाँसी पर झूल जाती है
तो कभी पी लेती है ज़हर।
ऐसा कुछ नहीं हुआ तो
तड़प-तड़प कर मरती है घर-संसार में
मरना ही बदा होता है आख़िरकार ज़ुबान के लिए
ज़ुबान अभी कटी क्या, और बाद में कटी क्या?
उसकी ज़ुबान की आगे भी क्या गारंटी कि वह बचती ही?
***
 
ज़ुबान


माना कि उसने
शारीरिक संबंध बनाने से मना कर दिया
और उन्होंने उसकी ज़ुबान काट डाली
आदि इत्यादि
लेकिन
मेरे सामने कुछ मूलभूत वैज्ञानिक सवाल खड़े हैं
मतलब
युगों युगों से महिलाओं की ज़ुबानें काटी जा रही हैं
उनकी ज़ुबान का कोई उपयोग नहीं
तो डार्विन के सिद्धांत के अनुसार
महिलाओं की ज़ुबान नष्ट कैसे नहीं हुई?

या
छिपकली की पूँछ जैसे कटने पर
छटपटाती रहती है
उसी तरह महिला की ज़ुबान भी कटने पर तड़पती है क्या?
और
इतनी तमाम महिलाओं की ज़ुबानें काट डाली जाती हैं
घर में,ऑफ़िस में
रास्ते पर, स्कूल में
मैदान में, काम पर
लिफ्ट में, टूटी इमारत में
निर्माणाधीन इमारत में, कभी खंडहर में
बगीचे में, पहाड़ पर, जंगल में, गाड़ी में, अस्पताल में
फिल्मों में
फिर वे सारी ज़ुबानें दिखती क्यों नहीं
यहाँ-वहाँ गिरी हुई?
निश्चित ही वे तुरंत नष्ट हो जाती होंगी
वायुमंडल में विलीन हो जाती होंगी
तंदूर में जलकर
पानी में घुलकर
भूमि में समाकर
मतलब महिलाओं की ज़ुबान
बायो-डिग्रेडेबल होनी चाहिए
और
होना चाहिए इस पर भी शोध
कि एक बार कट गई तो दुबारा दूसरी ज़ुबान उगाई जा सकती है क्या?
और
इस पर भी होनी चाहिए खोज
कि किसी एक की ज़ुबान काटने पर
बाकी कई महिलाओं की ज़ुबानें अपने आप
निढाल कैसे हो जाती हैं!
***
अपर्णा कडसकर
जन्म               २ अप्रैल १९६८
 
शिक्षा            यांत्रिक अभियंता (पदविका)
हिंदी/ मराठी/ उर्दू में लेखन
कवि बलदेव निर्मोही की हिंदी कविताओं का मराठी में ‘समांतर रेखा’ नाम से अनुवाद
कवयित्री माधवी वैद्य की मराठी कविताओं का सय्यद आसिफ के साथ मिलकर उर्दू में भाषांतर ‘पलाश गुल’ नाम से
संस्था हिंदी आंदोलन, माझी गजल, उर्दू साहित्य परिषद पुणे की सदस्य
वाइल्ड सोसाइटी फॉर कॉन्सर्वेशन ऑफ वाइल्ड लाइफ एंड फॉरेस्ट की कार्यकर्ता

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