बहुत दिनों बाद अनुनाद पर एक साथ इतनी कविताएं लग रही हैं। यह उपहार हमें मिला है हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि अरुण शीतांश की ओर से। अरुण ऐसी कविताअों के कवि हैं, जिनकी आधारभूमि पर खड़े होकर एक कवि गर्व से कह सकता है कि ‘उस जनपद का कवि हूं’। अनुनाद पर अरुण शीतांश पहली बार छप रहे हैं, दस वर्ष से इस यात्रा में रहते हुए भी वाक्य में ‘पहली बार’ आना हमारी इतने वर्षों की कोताही भी है। अरुण जी का अनुनाद पर स्वागत और कविताओं के लिए शुक्रिया।
बाबूजी
किसी
विज्ञापन के लिए नहीं आया था यहां
विज्ञापन के लिए नहीं आया था यहां
धकेल
दिया गया था गले में हड्डी लटकाकर
दिया गया था गले में हड्डी लटकाकर
विष्णुपुरा
से आरा
से आरा
महज
संयोज नहीं था
संयोज नहीं था
भगा
दिया गया था मैं
दिया गया था मैं
बाबूजी
आपकी
याद बहुत आती है
याद बहुत आती है
जब
एक कंधे पर मैं बैठता था
एक कंधे पर मैं बैठता था
और
दूसरे कंधे पर कुदाल
दूसरे कंधे पर कुदाल
रखे
हुए केश को सहलाते हुए चला जाता था
हुए केश को सहलाते हुए चला जाता था
खेंतों
की मेड़ पर गेहूं की बालियां लेती थीं हिलोरें
की मेड़ पर गेहूं की बालियां लेती थीं हिलोरें
थके
हारे चेहरे पर तनिक भी नहीं था तनाव
हारे चेहरे पर तनिक भी नहीं था तनाव
नईकी
चाची चट पट खाना निकाल जमीन को पोतते हुए
चाची चट पट खाना निकाल जमीन को पोतते हुए
आंचल
से सहला देती थी गाल
से सहला देती थी गाल
आज
आप पांच लड़कों पांच पोतों और दो पोतियों के बीच
आप पांच लड़कों पांच पोतों और दो पोतियों के बीच
अकेले
हैं
हैं
पता
नहीं आब आप क्यों नहीं जाते खेत
नहीं आब आप क्यों नहीं जाते खेत
क्यों
नहीं जाते बाबा की फुलवारी
नहीं जाते बाबा की फुलवारी
फिर
ढहे हुए मकान में रहना चाहते हैं
ढहे हुए मकान में रहना चाहते हैं
और
गांव जाने पर काजू-किशमिश खिलाना चाहते हैं
गांव जाने पर काजू-किशमिश खिलाना चाहते हैं
आप
अब नहीं खिलाते बिस्कुट
अब नहीं खिलाते बिस्कुट
जुल्म
बाबा की दुकानवाली
बाबा की दुकानवाली
जो
दस बार गोदाम में गोदाम में या बीस बार बोयाम में हाथ डालकर
दस बार गोदाम में गोदाम में या बीस बार बोयाम में हाथ डालकर
एक
दाना दालमोट निकालते जैसे जादू
दाना दालमोट निकालते जैसे जादू
सुना
है उस जादूगर की जमीन बिक गई
है उस जादूगर की जमीन बिक गई
अनके
लड़के धनबाद में बस गए
लड़के धनबाद में बस गए
वहां
आटा चक्की चलाते हैं
आटा चक्की चलाते हैं
बाबूजी
आपकी याद बहुत आती है
आपकी याद बहुत आती है
मधुश्रंवा
मलमास मेला की मिठाई
मलमास मेला की मिठाई
और
परासी बाजार का शोभा साव का कपड़ा
परासी बाजार का शोभा साव का कपड़ा
आपके
झूलन भारती दोस्त
झूलन भारती दोस्त
सब
याद आते हैं
याद आते हैं
सिर्फ
याद नहीं आती है
याद नहीं आती है
अपने
बचपन की मुस्कान….
बचपन की मुस्कान….
***
साइकिल
घर
में
साइकिल है
में
साइकिल है
पहले
दुकानदार रखा था
दुकानदार रखा था
आज
मेरे पास है
मेरे पास है
पैसे
वैसे की बात छोङ दीजिए
वैसे की बात छोङ दीजिए
साइकिल
है मेरे पास
है मेरे पास
रोज़
साफ करता हूँ
साफ करता हूँ
उसपर
हाथ बराबर रखता हूँ
हाथ बराबर रखता हूँ
सुबहोशाम
निहारता हूँ
निहारता हूँ
साइकिल
को धोता हूँ
को धोता हूँ
चलाता
नहीं हूँ
नहीं हूँ
रोज़
उसपर बैग टंगे रहते थे
उसपर बैग टंगे रहते थे
बाजार
से लौटती थी
से लौटती थी
तो
घर लौट आता था
घर लौट आता था
अब
नहीं जाती
नहीं जाती
एक
सब्जी भी लाने
सब्जी भी लाने
टिफ़िन
के रस नहीं लगते चक्के में
के रस नहीं लगते चक्के में
वह
चुपचाप खङी है
चुपचाप खङी है
उसे
गाँव नहीं जाना
गाँव नहीं जाना
हवा
से चलती
से चलती
और
उङती साइकिल
हवा से ही बातें करती रही
उङती साइकिल
हवा से ही बातें करती रही
साइकिल की पिछले सीट पर एक कागज की खङखङाहट सुनाई दी
उसमें
लिखा था- पापा !इस साइकिल को बचाकर रखना
लिखा था- पापा !इस साइकिल को बचाकर रखना
किसी
को देना नहीं।
को देना नहीं।
साइकिल को बारह बजे रात को भी देखता हूँ
कल
डब सैम्पू से नहलाऊँगा
डब सैम्पू से नहलाऊँगा
तो
साइकिल कम बेटी ज्यादा याद आयेगी
साइकिल कम बेटी ज्यादा याद आयेगी
इसलिए
आज फिर देखकर आता हूँ- आपके पास।
आज फिर देखकर आता हूँ- आपके पास।
थोङी
देर हो चुकी है
देर हो चुकी है
एक
खिलौना को रखने में
खिलौना को रखने में
वह
खिलौना नही जीवन है
खिलौना नही जीवन है
जीवन
की साइकिल है ..l
की साइकिल है ..l
***
रास्ता
रास्ते
में सब जातें हैं
में सब जातें हैं
पांव
मेरे लड़खड़ाते हैं
मेरे लड़खड़ाते हैं
किसान
रास्ता नहीं नापता
रास्ता नहीं नापता
नेता
रास्ते पर दाँव लगाते हैं
रास्ते पर दाँव लगाते हैं
पत्नी
रास्ता देखती है
रास्ता देखती है
प्रेमिका
रास्ते पर आँख बिछा देती है
रास्ते पर आँख बिछा देती है
माँ
रोज़
रास्ता देखती है
रास्ता देखती है
पिता
पैसे का राह देखतें हैं
पैसे का राह देखतें हैं
बेटा
रास्ता में खेलता है
रास्ता में खेलता है
बेटी
रास्ते भर रोती रहती है
रास्ते भर रोती रहती है
मित्र
रास्ते में काट फेंकतें हैं
रास्ते में काट फेंकतें हैं
मुझे
और रास्ते को ..
और रास्ते को ..
दुनिया
बिन
रास्ते की हो गई है
रास्ते की हो गई है
कोई
बताए नया रास्ता सही सही
बताए नया रास्ता सही सही
जहाँ
भूलकर मिल जाए सभी.
भूलकर मिल जाए सभी.
***
पकड़ौवा बिआह
पहले
भी पेड़ों की शादियाँ होती थी
भी पेड़ों की शादियाँ होती थी
पहले
भी लोग रोते थे
भी लोग रोते थे
जैसे
आज रोते हैं
आज रोते हैं
अब
लड़कियाँ ससुराल जाते कम रोती हैं
लड़कियाँ ससुराल जाते कम रोती हैं
बाप
ज्यादा रोतें हैं
ज्यादा रोतें हैं
माँ
मित्र संगी साथी सब रोते हैं
मित्र संगी साथी सब रोते हैं
बिआह
में गीत गाए जाते थे
में गीत गाए जाते थे
गाली
के गीत थे
के गीत थे
सब
गीत भूल गई बहने
गीत भूल गई बहने
एक
बिआह से दूसरे बिआह में जाते थे
बिआह से दूसरे बिआह में जाते थे
क्या
लू क्या बारिश क्या ठंढक सब ताक पर रख बारात कर आते थे
लू क्या बारिश क्या ठंढक सब ताक पर रख बारात कर आते थे
न
होटल
न बोतल
होटल
न बोतल
प्रश्न
परिक्षाओं की तरह पूछे जाते थे
परिक्षाओं की तरह पूछे जाते थे
ढेले
में सो जाना
में सो जाना
और
लौंडे नचनिया को देख रात कट जाती थी
लौंडे नचनिया को देख रात कट जाती थी
तब
उस समय एक महान कवि भिखारी ठाकुर की पार्टी थी
उस समय एक महान कवि भिखारी ठाकुर की पार्टी थी
गाँव
जवार टूट पड़ता था देखने
जवार टूट पड़ता था देखने
इस
बीच अपनी लड़की के लायक लड़के को जबरन उठाकर घर ले जाते लोग और अपनी लड़की के साथ
एक रुम में बंद कर देते
बीच अपनी लड़की के लायक लड़के को जबरन उठाकर घर ले जाते लोग और अपनी लड़की के साथ
एक रुम में बंद कर देते
दूसरे
दिन उसी बारात के साथ दो दुल्हे और दो दुल्हन को भेज देते
दिन उसी बारात के साथ दो दुल्हे और दो दुल्हन को भेज देते
वह
भी समय था गाँवों का
भी समय था गाँवों का
आज
पुरा समय गाँव शहर की तरह हो रहा है
पुरा समय गाँव शहर की तरह हो रहा है
बदल
रहा है
रहा है
जो
मुंम्बई में
साबून मिलता है वह गाँव में उपलब्ध है
मुंम्बई में
साबून मिलता है वह गाँव में उपलब्ध है
केवल
विकास नहीं है
विकास नहीं है
न
जाने कितनी पकड़ौवा शादी हुई
जाने कितनी पकड़ौवा शादी हुई
एक
मेरे गाँव में भी हुई जब मैं छ: साल का था
मेरे गाँव में भी हुई जब मैं छ: साल का था
उनका
नाम राधेश्याम दूबे था
नाम राधेश्याम दूबे था
अब
वे पटना में हैं गाँव छोड़कर
वे पटना में हैं गाँव छोड़कर
अब
चिटिंयो या चूटों की तरह झूण्ड में नहीं जाते बारात
चिटिंयो या चूटों की तरह झूण्ड में नहीं जाते बारात
लेकिन
अब भी भोजपुर में चलती हैं
अब भी भोजपुर में चलती हैं
आँगन
से शामियाने तक गोलियाँ तड़ तड़ तड़ …
से शामियाने तक गोलियाँ तड़ तड़ तड़ …
जैसे
कोई विधायक या सांसद की जीत पर चलती हैं
कोई विधायक या सांसद की जीत पर चलती हैं
हम
देशजवासी मनुष्यवासी कम हो रहें हैं
देशजवासी मनुष्यवासी कम हो रहें हैं
बावजूद
आज भी सूरज लाल उगा है
आज भी सूरज लाल उगा है
कल
भी उगेगा…
भी उगेगा…
***
जिनके
लिए
लिए
समय
को बांधो
को बांधो
और
फेंक दो सूर्य पर
फेंक दो सूर्य पर
समय
का क्या करेंगे हम
का क्या करेंगे हम
समय
में इतने प्रधानमंत्री
में इतने प्रधानमंत्री
राष्ट्रपति
न्यायधीश बन रहे हैं
न्यायधीश बन रहे हैं
हत्याएँ
समय में हो रहीं हैं
समय में हो रहीं हैं
समन्दर
में समय को फेंको
में समय को फेंको
वृद्ध
समय
में बहुत कम बचे हैं
में बहुत कम बचे हैं
प्रेमिका
समय से भाग रही है
समय से भाग रही है
पर्वत
उठाओ और समय को ढक दो
उठाओ और समय को ढक दो
तीन
तह नीचे
तह नीचे
समय
में आग लगी हुई है
में आग लगी हुई है
कवि
सरकार से खुश नहीं हैं
सरकार से खुश नहीं हैं
इस
समय दिल से कह रहा हूँ
समय दिल से कह रहा हूँ
हर
समय को मुस्कान में बदल दो
समय को मुस्कान में बदल दो
हर
जगह
जगह
और
हर नागरिक के आँखों में झाँकों
हर नागरिक के आँखों में झाँकों
देश
खाली मिल रहा है हर समय….
खाली मिल रहा है हर समय….
***
बहन
बहनों
के बहाने छला गया हूँ
के बहाने छला गया हूँ
कोई
बात नहीं
बात नहीं
बहन
का प्रेम पत्र कैसा होता
का प्रेम पत्र कैसा होता
होती
तो!
तो!
कितने
लड़के मरते उस पर!!
लड़के मरते उस पर!!
प्यारी
थी बहुत
थी बहुत
दुऩिया
से ज्यादा
से ज्यादा
पृथ्वी
पर तीन माह रुकी
पर तीन माह रुकी
मुझे
छोड़ गई
छोड़ गई
निपट
अकेला
अकेला
बनावटी
बहनें धोखा दे रही हैं
बहनें धोखा दे रही हैं
इतिहास
सूखे का बना रहा है
सूखे का बना रहा है
खोखा
लेकर कहाँ फेंकूँ
लेकर कहाँ फेंकूँ
चाँद
देख रहा है
देख रहा है
हवा
में
प्यार है
में
प्यार है
जीवन
में धार है
में धार है
पेंड
के पौधे की तरह जन्मी
के पौधे की तरह जन्मी
और
दुख से टूट गई
दुख से टूट गई
वह
आँखों से खपरैल
घर देखती रही
आँखों से खपरैल
घर देखती रही
ढेंकी
जाँता सिलवट -लोढा रेहट कूड़ी
जाँता सिलवट -लोढा रेहट कूड़ी
लाठी
खूरपी कूदाल बैल हेंगा हल
खूरपी कूदाल बैल हेंगा हल
गाय
का दूध भैस का पाड़ा -पाडी़
का दूध भैस का पाड़ा -पाडी़
दादी
की किवाड़ी
की किवाड़ी
वह
धीरे धीरे ओझल होती गई-
धीरे धीरे ओझल होती गई-
आजतक!
और
जिंदा बने रहने की ताकत
जिंदा बने रहने की ताकत
मेरे
अन्दर बनाती गई.
अन्दर बनाती गई.
वह
दुलारी थी बाबा की
दुलारी थी बाबा की
और
न्यारी थी
न्यारी थी
होती
तो
सबकुछ होता
सबकुछ होता
बची
नहीं
नहीं
जिससे
कुछ होता
कुछ होता
बहन!
वह
दुनिया नहीं रही
दुनिया नहीं रही
जिस
दुनिया में तू आई गई ..
दुनिया में तू आई गई ..
***
१८
हजार साल की बात
हजार साल की बात
वह
पृथ्वी की कोख से निकली
पृथ्वी की कोख से निकली
और
फैल गई
फैल गई
खेतों
में बगानों में चाँदनी रातों में
में बगानों में चाँदनी रातों में
वह
फैलती गई और इतनी फैली की सारे लोगों के आँसू से
फैलती गई और इतनी फैली की सारे लोगों के आँसू से
पौधे
पटते गए खिलते गए फूल
पटते गए खिलते गए फूल
वह
सुगंध लौंग इलाइची तेजपत्तों और थोड़ी कस्तूरी की तरह
सुगंध लौंग इलाइची तेजपत्तों और थोड़ी कस्तूरी की तरह
यह
खेल नहीं था
खेल नहीं था
बेल
की गंध सा सराबोर था
की गंध सा सराबोर था
और
इतना तीव्र गंध की
इतना तीव्र गंध की
भूख
मर गई
मर गई
जैसे
बंजारे खेत में उसकी हँसी
बंजारे खेत में उसकी हँसी
कई
बेहोश हुए
बेहोश हुए
कई
बीमार
बीमार
कई
गिरी सरकार
गिरी सरकार
कई
ने भिड़ाई तलवार
ने भिड़ाई तलवार
वह
जंग जितती गई
जंग जितती गई
पर
क्या कहूँ पास जाने पर हल्का हो जा रहा हूँ
क्या कहूँ पास जाने पर हल्का हो जा रहा हूँ
दूर
रहने पर आँखें भारी
रहने पर आँखें भारी
यह
समय
समय
यह
काल
काल
यह
पल
पल
यह
क्षण
क्षण
सब
मिलकर रो क्यों रहें हैं
मिलकर रो क्यों रहें हैं
यह
गलत बात है
गलत बात है
उसे
खुश रहने दो शहजादी की तरह
खुश रहने दो शहजादी की तरह
जिसकी
पल्लू में अतिरिक्त सलवटें किसी ने देखी नहीं
पल्लू में अतिरिक्त सलवटें किसी ने देखी नहीं
मैंने
गुस्सा नहीं किया
गुस्सा नहीं किया
नहीं
दिखाया प्रेम
दिखाया प्रेम
वह
न जाने कब आ गई
न जाने कब आ गई
मेरे
अन्दर वह भी एक
अन्दर वह भी एक
पुरुष
के माध्यम से
के माध्यम से
जिसने
प्यार से बिछा दी थी
प्यार से बिछा दी थी
चटाई
अब
उसे सोने दो चैन से
उसे सोने दो चैन से
उधार
की नींद नहीं चाहिए उसे
की नींद नहीं चाहिए उसे
वह
आथाह गहरे सागर में जा समाई है
आथाह गहरे सागर में जा समाई है
कोई
तिनका का दबाब न दे
तिनका का दबाब न दे
उसे
हमें
इंतजार है लौट आने की
इंतजार है लौट आने की
जहाँ
गौरैया गीत गायेगी
गौरैया गीत गायेगी
कबूतर
फर्र फर्र उड़ेगें
फर्र फर्र उड़ेगें
बंदर
कूदेगे धड़ाम
कूदेगे धड़ाम
लो
! वो बोलीं
! वो बोलीं
शीतांश
शीतांश..
***
मेका
चढ़ो
और चढो़
और चढो़
उड़
जाओ आसमान में
जाओ आसमान में
यह
शोभनीय है चाँद सितारों-सा
शोभनीय है चाँद सितारों-सा
वैज्ञानिक
एक दिन खोज करेंगे इस अदा पर
एक दिन खोज करेंगे इस अदा पर
कैसे
चढ़े पेड़ के शाखा पर
चढ़े पेड़ के शाखा पर
एक
दिन उत्तर भारत की बकरियाँ सोचेंगी कि
दिन उत्तर भारत की बकरियाँ सोचेंगी कि
हम
भी पैदा हुए थे भारत में
भी पैदा हुए थे भारत में
भारत
में आग लगी हुई है
में आग लगी हुई है
यह
पेड़ यह मेका यह आसमान यह दृश्य कैसे बच गया तिरुपति के रास्ते
पेड़ यह मेका यह आसमान यह दृश्य कैसे बच गया तिरुपति के रास्ते
खगोलवेत्ता
निहारेगे
निहारेगे
एक
साथ भारत में कई तस्वीरें बदल रहीं हैं
साथ भारत में कई तस्वीरें बदल रहीं हैं
एक
साथ कई नारे लग रहें हैं
साथ कई नारे लग रहें हैं
एक
साथ कई हत्याएँ हो रही हैं
साथ कई हत्याएँ हो रही हैं
एक
साथ बच जा रहें हैं हम
साथ बच जा रहें हैं हम
समय
का संगत करते हुए
का संगत करते हुए
हमने
कई कई क्षेत्रों में कई कई बार सोचा कि
कई कई क्षेत्रों में कई कई बार सोचा कि
दुनिया
बदल रही है
बदल रही है
राजनीति
बदल रही है
बदल रही है
सोच
बदल रही है
बदल रही है
यह
मेका क्यों नहीं बदल रहें हैं
मेका क्यों नहीं बदल रहें हैं
क्या
एक दिन इनकी भी हत्या होगी
एक दिन इनकी भी हत्या होगी
क्या
यह भी घास के शौकीन हो जाऐगे
यह भी घास के शौकीन हो जाऐगे
हमने
सोचना छोड़ दिया है .
सोचना छोड़ दिया है .
हम
देश प्रेमी है
देश प्रेमी है
देश
पर सोचेगे
पर सोचेगे
मेका
पर माथा कौन खपायेगा ?
पर माथा कौन खपायेगा ?
पेड़
पर चढ़े
पर चढ़े
या
घास खायें !
घास खायें !
दुनिया
बदल रही है जरुर
बदल रही है जरुर
दुनिया
बच रही है
बच रही है
मेका
से….
से….
***
लोटा
धुँए
से कुचला हुआ
से कुचला हुआ
आदमी
उठ नहीं पाता
उठ नहीं पाता
हवा
की मार से
की मार से
कराह
उठता है आदमी
उठता है आदमी
आग
का जलना ही काफी है
का जलना ही काफी है
प्रेम
की लगन
की लगन
दरद
देती बेहोश हो उठता है आदमी
देती बेहोश हो उठता है आदमी
देश
का मारा कहाँ जाएगा
का मारा कहाँ जाएगा
मिट्टी
की कोख बहुत प्यारी होती है
की कोख बहुत प्यारी होती है
हर
तरह के रंग मिलते हैं वहाँ
तरह के रंग मिलते हैं वहाँ
सवाल
है कोई भूखा कैसे रह सकता है
है कोई भूखा कैसे रह सकता है
शरीर
और पेट से
और पेट से
मेरे
जैसा व्यक्ति कब्र से उठ आएगा
जैसा व्यक्ति कब्र से उठ आएगा
और
माँ से लोटा का लोटा माँगकर
माँ से लोटा का लोटा माँगकर
भर
पेट
पेट
जल
ढकेल
जाएगा
जाएगा
मेरा
समय मुझमें अट रहा है
समय मुझमें अट रहा है
मन
डंट रहा है….
डंट रहा है….
***
शुद्धता
की खोज में
की खोज में
आना
जाना लगा रहता है
जाना लगा रहता है
जाना
आना भी
आना भी
मनुष्यता
का खोल उतार दी है
का खोल उतार दी है
सबने
मानवता
का चोल फेक दिया है
का चोल फेक दिया है
सबने
हमने
इक इंच पवित्र मिट्टी खोजा पटना में
इक इंच पवित्र मिट्टी खोजा पटना में
नहीं
मिला
मिला
कहा
सबने
सबने
सबने
सामूहिक गान की
सामूहिक गान की
खाई
कसम
कसम
सबने
कुछ
कवि के जो पैर पड़े थे जहाँ जहाँ
कवि के जो पैर पड़े थे जहाँ जहाँ
वहाँ
शुद्धता बची थी
शुद्धता बची थी
यह
बात गिलहरी के पँजों को देखकर पता चला
बात गिलहरी के पँजों को देखकर पता चला
आना
जाना लगा रहता
जाना लगा रहता
आरा-पटना
पटना-
आरा
आरा
दोस्तो
!
!
हाथ
बढ़ाओ …
बढ़ाओ …
***
अग्नि
पुराण
पुराण
जंगल
की आग
की आग
अग्नि
पुराण से ज्यादा पुराण है
पुराण से ज्यादा पुराण है
आग
ही नहीं होती तो अग्नि पुराण कहाँ होता
ही नहीं होती तो अग्नि पुराण कहाँ होता
न
कोई बिल्डिंग या मकान होता
कोई बिल्डिंग या मकान होता
मार्कण्डेय
पुराण बाचते है तो हवन में अग्नि होती है
पुराण बाचते है तो हवन में अग्नि होती है
श्रीमद्
भागवत पुराण नहीं होता
भागवत पुराण नहीं होता
समस्त
देवताओं के काल से निकलकर बाराह पुराण कविता मे नहीं रची जा सकती
देवताओं के काल से निकलकर बाराह पुराण कविता मे नहीं रची जा सकती
पत्थरों
पर पुराण लिख दिया जाए
पर पुराण लिख दिया जाए
पत्थर
की टकराहट ही पुराण की अग्नि है
की टकराहट ही पुराण की अग्नि है
नेट
लहक दहक जाए
लहक दहक जाए
नेट
के गुगल सर्च पर पुराण
मिल सकतें हैं
के गुगल सर्च पर पुराण
मिल सकतें हैं
अंतत:
पुराण को नेट मे आग लगने से कौन रोक सकता है
पुराण को नेट मे आग लगने से कौन रोक सकता है
भले
वो सईबर क्राईम मे तब्दिल हो केस
वो सईबर क्राईम मे तब्दिल हो केस
पुराण
पुराना जरुर है
पुराना जरुर है
अग्नि
से पुरान नहीं है
से पुरान नहीं है
पुराण
….
….
***
चोंप
पारिस्थितिकी
संतुलन के लिए हर घर मे
संतुलन के लिए हर घर मे
एक
बागीचा चाहिए
बागीचा चाहिए
पेडो़ं
में फल हो
में फल हो
छोटे
पौधों मे फूल
पौधों मे फूल
रोज़
नई घटना की तरह
नई घटना की तरह
बना
रहे सुंदर पर्यावरण
रहे सुंदर पर्यावरण
जंगल
की तरह घेरे में पक्षियों के कलरव
की तरह घेरे में पक्षियों के कलरव
घोड़ों
का टॉप सुनाई दे
का टॉप सुनाई दे
ठक
ठक ठक ठक
ठक ठक ठक
शुद्ध
हवा में
हवा में
कोई
माउस लैपटॉप न हो और मोबाईल
माउस लैपटॉप न हो और मोबाईल
बस
संवाद
हो निश्चल हँसी के साथ भरपूर
हो निश्चल हँसी के साथ भरपूर
आम
का पेड़
खूब हो
का पेड़
खूब हो
जिस
पर बैठकर ठोर से मारे मनभोग आम पर
पर बैठकर ठोर से मारे मनभोग आम पर
एक
दिन गिरे तो चोंप कम हो
दिन गिरे तो चोंप कम हो
धोकर
खा जाँए सही सही
खा जाँए सही सही
मुँह
में चोंप का दाग हो कोई बात नहीं
में चोंप का दाग हो कोई बात नहीं
हर
भारतीय को नसीब कहाँ
भारतीय को नसीब कहाँ
बाल्टी
में भरकर खा लें भरपेट आम
में भरकर खा लें भरपेट आम
कुत्ता
बेचारा खा नहीं सकता देखता है कातर नज़र से
बेचारा खा नहीं सकता देखता है कातर नज़र से
बच्चे
हुं हां करते ओ ओ ओ
हुं हां करते ओ ओ ओ
आ
आ आ आ आ
आ आ आ आ
दौड़ते
भागतें भैंस गाय के साथ चिलचिलाती धूप में
भागतें भैंस गाय के साथ चिलचिलाती धूप में
माँए
गाली देती
गाली देती
अरे
अरे ! खा ले खा ले लू लग जइहें
अरे ! खा ले खा ले लू लग जइहें
महुआ
को पसारती
को पसारती
सुखाती
भांड़ी में रख आई
भांड़ी में रख आई
नयका
चाउर के भात का माड़ कुत्ता खाता
चाउर के भात का माड़ कुत्ता खाता
चपर
चपर चपर
चपर चपर
चमकती
बिजली की तरह टाल का खेत
बिजली की तरह टाल का खेत
कौंधती
धमकती आँच लहकती सी देह
धमकती आँच लहकती सी देह
तप्त
पसीने से सराबोर
पसीने से सराबोर
पेंड़
की छाँव हीं काम आया
की छाँव हीं काम आया
गमछी
बिछाकर ..
बिछाकर ..
दू
बात सबसे करके
बात सबसे करके
सानी
पानी गोबर डांगर सब निफिकीर
पानी गोबर डांगर सब निफिकीर
पीते
हुए पनामा सिगरेट
हुए पनामा सिगरेट
जो
पनामा नहर को याद दिलाती है किसानो को
पनामा नहर को याद दिलाती है किसानो को
कल
पेड़ और खेत के गीत गाए जाऐगें
पेड़ और खेत के गीत गाए जाऐगें
रोपे
जाऐगे फ़सल
जाऐगे फ़सल
रात
भर भरे जाऐगें
भर भरे जाऐगें
खेत
….
….
***
पांगना
गाछ
कल ही लगाया था
कल ही लगाया था
समुद्र
में नहीं
में नहीं
नदी
में नहीं
में नहीं
तालाब
में नहीं
में नहीं
पोखर
में नहीं
में नहीं
बस
यूँ ही लगा दिया था
यूँ ही लगा दिया था
मनुष्य
के लिए
के लिए
कब
गांछ ने पृथ्वी के सहारे कंठ गिला कर लिया
गांछ ने पृथ्वी के सहारे कंठ गिला कर लिया
पूरी
दुनिया को पता नहीं चला
दुनिया को पता नहीं चला
उस
जानवर को पता चला जब सुकोमल पौधे को खा गया
जानवर को पता चला जब सुकोमल पौधे को खा गया
समन्दर
से
से
नदी
से
से
पोखर
से
से
तालाब
से
से
आकर
खाकर
कब डकार गया
कब डकार गया
पता
नहीं चला
नहीं चला
मनुष्य
जानवर
से छोटा हो गया है
से छोटा हो गया है
मनुष्य
खून और उत्तेजना से लैस रहना चाहता है
खून और उत्तेजना से लैस रहना चाहता है
यह
सब देख सून
सब देख सून
एक
बच्चा हँस रहा है
बच्चा हँस रहा है
(समन्दर के यात्रियों के लिए )
***
खण्डहर
रात
में रंगरेज रंग रहा है कपड़ा
में रंगरेज रंग रहा है कपड़ा
रौशनी
है
है
रौशनी
का पीलापन कौन रंग रहा है रंगरेज
का पीलापन कौन रंग रहा है रंगरेज
कमरे
में अचानक अँधेरा
में अचानक अँधेरा
अँधेरा
कौन रंग रहा रंगरेज
कौन रंग रहा रंगरेज
आवाज
जोर से निकली
जोर से निकली
बचा
लो कबीर!
लो कबीर!
मुँह
से थूक निकल आया
से थूक निकल आया
थूक
का रंग किसने कब रंगा रंगरेज
का रंग किसने कब रंगा रंगरेज
मेज
पर फूल और फल देख रहा हूँ
पर फूल और फल देख रहा हूँ
फूल
और फल को किसने रंगा रंगरेज ….
और फल को किसने रंगा रंगरेज ….
***
कवि-
परिचय
परिचय
अरुण
शीतांश
शीतांश
जन्म ०२.११.१९७२अरवल जिला के विष्णुपुरा गाँव में
शिक्षा
-एम ए ( भूगोल व हिन्दी)एम. लिब. साईंस, एल एल बी पीएच-डी
-एम ए ( भूगोल व हिन्दी)एम. लिब. साईंस, एल एल बी पीएच-डी
कविता
संग्रह
संग्रह
1
) एक ऐसी दुनिया की तलाश में (वाणी प्रकाशन
दिल्ली)
) एक ऐसी दुनिया की तलाश में (वाणी प्रकाशन
दिल्ली)
2
) हर मिनट एक घटना है (बोधि प्रकाशन जयपुर)
) हर मिनट एक घटना है (बोधि प्रकाशन जयपुर)
3 )
पत्थरबाज़ शीघ्र प्रकाश्य
पत्थरबाज़ शीघ्र प्रकाश्य
आलोचना
1) शब्द साक्षी हैं (यश पब्लिकेशन दिल्ली)
संपादन
1)
पंचदीप (बोधि प्रकाशन )
पंचदीप (बोधि प्रकाशन )
2)
युवा कविता का जनतंत्र (साहित्य संस्थान
गाजियाबाद )
युवा कविता का जनतंत्र (साहित्य संस्थान
गाजियाबाद )
3)
बादल का वस्त्र (प्रगति प्रकाशन, सोनपत)
बादल का वस्त्र (प्रगति प्रकाशन, सोनपत)
4)
विकल्प है कविता (प्रगति प्रकाशन,
सोनपत)
विकल्प है कविता (प्रगति प्रकाशन,
सोनपत)
सम्मान
* शिवपूजन सहाय सम्मान
* युवा शिखर साहित्य सम्मान
पत्रिका
*देशज नामक पत्रिका का संपादन
संप्रति
शिक्षण
संस्थान में कार्यरत
संस्थान में कार्यरत
संपर्क
: मणि भवन,
संकट मोचन नगर, आरा भोजपुर, ८०२३०१
: मणि भवन,
संकट मोचन नगर, आरा भोजपुर, ८०२३०१
मो ०९४३१६८५५८९
बाबूजी और साइकिल शीर्षक कविताएँ संवेदना के स्तर पर काफी प्रभावित करती हैं। कवि अनुभूतियों के आकाश में निरंतर विचरते हुए भाषिक व भाव संरचना के विखराव के खतरे उठाता है। कवि को बधाई !
बहुत सुन्दर
http://bulletinofblog.blogspot.in/2017/11/blog-post_13.html
अच्छी कविताएँ।