1962 में बांडुंग में जन्मे एगुस सर्जोनो इंडोनेशिया के प्रमुख कवि, लेखक और नाटककार हैं, जिन्होंने इंडोनेशिया के साहित्य का अध्ययन और बाद में अध्यापन किया। उनकी रचनाओं के दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हैं। कविता, कथा, नाटक, आलोचना इत्यादि की उनकी लगभग एक दर्जन किताबें प्रकाशित हैं। अनेक प्रतिष्ठित लिटरेरी फेस्टिवल में उन्हें आमंत्रित किया गया।
बरसात के आँसू
“मुझसे किसी पर निशाना मत लगाओ” –
एक राइफल
गिड़गिड़ाता है
डर से काँपता है।
“चुप बे साले”,
हाथ चीखता हुआ धमकी देता है-
“मुझे उन बच्चों को गोली से उड़ाना ही है।”
“पर देखो तो, वे अभी कितनी कम उम्र के हैं
उनके चेहरों पर कैसी प्यारी किशोर मुस्कान है
और ऐसा भला वे माँग भी क्या रहे हैं?
उनकी माँग में तुम्हारी भलाई भी शामिल है…
तुम ही तो जब देखो तब अपनी मामूली सी पगार को लेकर
हुकूमत को गालियाँ दिया करते थे
तुम्हारे पास बेहतर जीवन का कोई और मौका भी नहीं
तुम्हीं तो झींक रहे थे कि मुट्ठी भर भात के लिए
कभी यहाँ कभी वहाँ कैसे कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं।”
“मुझसे किसी पर निशाना मत लगाओ”-
राइफल फिर रोता है
घिघियाता है।
“अबे अपना मुँह बंद रख”,
हाथ उसे घुड़क देता
है:
“तुझे सियासत क्या मालूम
यह एक सियासी मसला
है
इसके हल के लिए एक
दो लाशें गिरानी तो पड़ेंगी ही।”
“पर मेरे भाई
यह सवाल गिनती का नहीं है
या एक या दो जानों का भी नहीं
बल्कि किसी माँ के बेटा गँवा देने और उसके मातम का है
किसी की जान ले लेने का सवाल है
किसी के सपनों को बीच में ही चकनाचूर कर देने का है
उनके बुनियादी अधिकारों का…”
“बहुत हो गया, अब चोप्प
तेरी औकात ही क्या है साले हथियार?
तू तो एक औजार है, बस
तूने हिम्मत कैसे की बहस लड़ाने की?
बहस तो संसद में राजनेता लड़ाते हैं।”
“पर इन राजनेताओं को अपने सिवा किस की पड़ी है?”,
राइफल ने जवाब
दिया:
“वे भला कब तुम्हारे बारे में सोचने लगे?
या किसी और के बारे में भी?
गरीब गुरबा और दबे कुचले लोगों के बारे में
उन्हें सोचने की क्या पड़ी है?
उनके दिमाग में हर समय बस उनके स्वार्थ के जोड़ तोड़ होते
हैं
इसके सिवा कुछ नहीं”
बैंग.. बैंग.. बैंग.. बैंग..
“काम तमाम हो गया”, हाथ बड़बड़ाया।
“यह तो पाप है”, राइफल कलपती हुई आवाज में चीखा।
“मुझे मालूम नहीं क्या हुआ”, हाथ फुसफुसाया…
“मैं सच में नहीं जानता। बस यह जानता हूँ कि मैं बहुत थक
गया हूँ
और अपने घर लौटना चाहता हूँ …
वहाँ पहुँच कर आराम करना चाहता हूँ ।
उम्मीद लगाए बैठा हूँ कि मेरी बीवी और बच्चे घर पर होंगे
…
और सुरक्षित होंगे।”
अगले ही पल राइफल खुद को बारिश में बदल लेता है।
तब से लगातार उसके आँसू झर झर झर गिर रहे हैं
अंतहीन।
***
यादवेंद्र
घने अंधकार में खुलती खिड़की, अनुवाद : तंग गलियों से भी दिखता है आकाश (विश्व साहित्य से स्त्री कथाकारों की चुनी हुई कहानियाँ 2018), स्याही की गमक (विश्व साहित्य से स्त्री कथाकारों की चुनी हुई कहानियाँ – 2019) संपादन : कथादेश (विश्व साहित्य की प्रमुख लेखिकाओं की रचनाओं पर केंद्रित अंक – मार्च 2017)
पूर्व मुख्य वैज्ञानिक
सीएसआईआर – सीबीआरआई , रूड़की
पता : 72, आदित्य नगर कॉलोनी,
जगदेव पथ, बेली रोड,
पटना – 800014