रसूल हम्ज़ातोव का जन्म 1923 में रूस के दागिस्तान इलाके में हुआ था। उनकी शिक्षा दीक्षा मास्को में हुई। उन्होंने साहित्य लेखन की शुरुआत रुसी भाषा के ग्रंथों का अपनी स्थानीय भाषा अवार में अनुवाद से किया। उनकी तीस से अधिक कविता की पुस्तकों के रुसी और अन्य भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। उन्हें 1963 में लेनिन पुरस्कार दिया गया। उनकी कविता में एक स्वाभाविक प्रतिभा के दर्शन होते हैं जिसमें परंपरा और आधुनिकता का बेहतरीन मिश्रण है। उन्हें दागिस्तान की जनता का कवि कहा जाता है। उनकी मृत्यु 2003 में हुई।
सौ स्त्रियां जिन्हें मैं प्रेम करता हूँ
सौ स्त्रियां
जिन्हें मैं प्रेम करता हूँ,
मैं
देखा करता हूँ उन सभी को।
सोते
– जागते, बेहोशी में – ऊँची उड़ान में
किन्तु
नहीं कर सकता उन्हें बदनाम।
एक लड़की
जिसे भूल नहीं सकता मैं कभी भी
जिसने
जगाया था आनंद पहली बार मेरे ह्रदय में
जब जाते
हुए जलधारा की ओर, वह मिली थी
एक नंगे
पाँव देहाती लड़के से।
नन्हीं
लड़की लगती थी कहीं दूर की
जो न
थी बड़ी अपने पानी के बर्तन से।
शीतल
था जल जिसे लेने को
जलधारा
से वह झुकी थी।
शीतल
? नहीं ! वहाँ खड़े हुए महसूस किया था मैंने
उसने
दग्ध कर दी थी मेरी देह, और डंक सी मारी थी।
उसकी
दृष्टि कितनी जिज्ञासु और बनावट से मुक्त,
सम्मोहित
करती है मुझे आज दिन तक।
कालांतर
में, भटकते हुए यूँ ही
फाख्ता
से धूसर रंग वाले कैस्पियन सागर के तट पर
मैंने
प्यार किया एक लड़की से, पर था बहुत शर्मीला
दे पाने
को दस्तक उसके दरवाजे पर।
तो बस
भटकता रहता था उसके घर के इधर उधर,
एक प्रेमी
पागल सा,
चढ़ जाता
हुआ जैतून के वृक्ष पर देखने को
परदे
पर उसकी छाया :
वह रहती
थी दूसरी मंजिल पर…..
और अब
भी मैं प्रेम करता हूँ उस युवा लड़की को।
और थी
एक और युवा लड़की, जो
यात्रा
कर रही थी मास्को की, रेलगाड़ी से
इस युवा
लड़की को भी पुनः देखना
अच्छा
लगेगा मुझे
बुकिंग
क्लर्क, मैं हूँ तुम्हारा शुक्रगुजार
कि तुमने
उसे सीट दी थी मेरी बगल में
जिससे
हमने देखे दृश्य
डिब्बे
की खिड़की जितने विस्तृत।
और अपने
सारे जीवन, उस लड़की के संग
मैं
ख़ुशी से यात्रा करता रहूँगा इस दुनिया की।
एक नाराज
लड़की को मैं प्रेम करता हूँ अब भी
कोई
लाभ नहीं होगा कहने का उसके बारे में,
जिसने,
गुस्से से पागल हो, कर डाली थी
टुकड़े
टुकड़े मेरी पाण्डुलिपि।
मैं
प्रेम करता हूँ एक और लड़की को अब भी
ख़ुशी
से टिमटिमाती आँखों वाली
जिसने
सैकड़ों बार करके तारीफ मेरी कविताओं की
चढ़ा
दिया उन्हें आसमान पर।
एक द्वेष
से भरी लड़की को मैं प्रेम करता हूँ,
और एक
सीधी सादी लड़की को भी,
प्रेम
करता हूँ एक पाखंडी लड़की को भी,
और उसे
भी जो बुरा मान जाती है जरा सी बात का,
और उसे
भी जिसे लगता है यह सब बोरियत भरा,
एक लड़की
को जो है बहुत विनम्र,
एक मस्त
लड़की को भी मैं प्रेम करता हूँ
और उस
अग्नि शमन केंद्र को भी।
हर कस्बे
और गाँव में है एक लड़की
जिसे
मैं करता हूँ प्रेम,
और दर्जनों
महिला छात्राओं को
जो बना
देती हैं मेरी अनुभूतियों को रोमांचकारी।
मैं
पुकारता हूँ उन सब को ‘मेरी प्रिय’, ‘मेरी फाख्ता’
निडर
और उत्साही उन्माद में —
हैं
एक सौ लड़कियां जिन्हें मैं करता हूँ प्रेम
एक जैसे
जूनून से।
तुम
क्यों घूर रही हो मुझे ऐसे
जैसे
कोई घूरता है अपने दुश्मन को ?
“तो
फिर मैं हूँ उन एक सौ में से एक ?
मुझे
बताने का शुक्रिया।”
नहीं
नहीं, ठहरो ! सौ, क्या तुम नहीं देख रही
वे सब
हैं तुम में ही प्रतिबिंबित।
वे एक
सौ लड़कियां तुम्हीं हो मेरे लिए
और मैं
हूँ केवल तुम्हारा।
उस समय
जब मैं भटक रहा था
एक देहाती
लड़का नंगे पाँव,
यह तुम्हीं
थी जिसे मैं मिला था जलधारा के समीप
जिसने
जगाया था मेरे ह्रदय में आनंद।
और सागर
किनारे के उस शहर में
जहाँ
बहा करती थी नमक भरी हवाएँ,
तुम
निश्चय ही स्मरण करोगी मुझे,
वह युवा
जो पीछा करता था तुम्हारा।
तुम
निश्चय ही याद करोगी
भागती
हुई ट्रेन के पहियों की आवाज, जो जा रही थी मास्को ?
तुम
हो एक में ही सौ लड़कियां,
और वे
सभी हैं आलिंगनबद्ध।
तुम
में मैं पाता हूँ दुःख और आनंद दोनों ही,
ठिठुरता
मौसम और बसंत की गरिमा,
कभी
कभी तुम होती हो निस्पृह
और क्रूर
भी, मैं स्वीकार करता हूँ,
और अन्य
किसी समय – आज्ञाकारी
और ह्रदय
से सज्जन।
जहाँ
जहाँ तुमने की कामना उड़ने की
मैंने
अनुगमन किया तुम्हारा हर कदम।
जिस
किसी चीज की की तुमने कल्पना,
मैंने
अर्जित की तुम्हारे लिए।
हमने
देखीं मौन पहाड़ियाँ,
जहाँ
बादल आलिंगन करते हैं झाड़ियों का,
और तमाम
कौशल से आपूरित शहरों को
गए हम
साथ साथ।
हैं
सौ लड़कियां जिन्हें मैं प्रेम करता हूँ,
सभी
को समान आवेग के साथ……
यह तुम
हो जिसे मैं पुकारता हूँ ‘मेरी प्रिय’, ‘मेरी फाख्ता’
निडर
और उत्साहपूर्ण पागलपन में।
सच है,
मैं प्रेम करता हूँ सौ लड़कियों को,
किन्तु
उनमें से हर एक तुम ही हो !
(पीटर टेम्पेस्ट के अंग्रेजी अनुवाद से)
***
सुबह और शाम, अंधकार और प्रकाश
सुबह
और शाम, अंधकार और प्रकाश –
काले
मछुआरे और गोरे मछुआरे।
दुनिया
है एक समुद्र की मानिंद; मछलियों की भांति हैं हम,
उन मछलियों
की भांति जो तैरती हैं सागर की गहराइयों में।
दुनिया
है समुद्र की भांति जहाँ मछुआरे हैं प्रतीक्षारत,
तैयार
करते अपने जाल, अपने काँटे और अपना चारा।
ओ समय,
फिर कितने शीघ्र तुम ले कर आओगे मुझे फांसने
रात्रि
के जाल में अथवा दिन के चारा लगे काँटे में।
(लुइ ज़ेलिकॉफ के अंग्रेजी अनुवाद से )
***
दहलीज़ पर बारिश
होती
है दहलीज़ पर बरसात – चकित, मैं स्वप्न देखता
हूँ तुम्हारा,
चोटियों
पर गिरती है बर्फ – चकित, मैं स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा।
भोर
का निरभ्र आकाश – चकित, मैं स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा,
गर्मियों
के अनाज के खेत – चकित, मैं स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा।
अबाबीलें
गोता लगाती हैं, उड़ान भरतीं लम्बवत – चकित, मैं स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा,
इकट्ठे
होते और अलग होते – चकित, मैं स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा।
पत्तियां
जो हिलती हैं और झूमती हैं हवा से, पत्तियां जो चमकती हैं ओस की बूंदों से
नहीं
देती मुझे कोई राहत – चकित, मैं स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा।
निश्चय
ही तुम हो उन सब से बेहतर लड़की जिन्हें मैं जानता था कभी
तभी
तो दिन-रात – चकित, मैं स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा।
(पीटर टेम्पेस्ट के अंग्रेजी अनुवाद से)
***
ओ समय, तुम पीछा कर रहे मेरा आतंक के सिपाहियों संग
ओ समय,
तुम पीछा कर रहे मेरा आतंक के सिपाहियों संग
पीड़ादायक
खुलासों, अनादर, बेचैनी संग;
आज तुम
आरोपित कर रहे मुझे कल की गलतियों के लिए
और ध्वस्त
कर दे रहे मेरे भ्रम रेत के किलों की भांति।
कौन
जानता था कि इतनी आसानी से ध्वस्त हो जाएँगे पुराने सच ?
फिर
तुम क्यों हँसते हो मुझ पर, इतनी निर्दयता क्यों ?
मैंने
उन्हीं बातों में गलतियाँ की जहाँ गलत थे तुम
भी,
दोहराते
हुए तुम्हारे शब्द अपनी उन्मत्त अंधता में !
(लुइ ज़ेलिकॉफ के अंग्रेजी अनुवाद से )
***
उनमें से भी कुछ जिनके पास हैं अधिकतम ….
उनमें
से भी कुछ जिनके पास हैं अधिकतम
बस पाँच
मिनट का संक्षिप्त समय शेष जीने को – और अधिक नहीं ,
श्रमरत
हैं बिना एक क्षण के विश्राम के
मानों
उनके पास अभी शेष हों सैकड़ों वर्ष जीने के लिए,
जब बर्फीली
चोटियाँ, समवयस्क सृष्टि के सृजन की ,
मौन
कठोरता से निहारती छुद्र मानव को,
खड़ी
हैं जमी हुई स्थिर शोकपूर्ण अपेक्षा में
जैसे
बस पाँच और मिनट हो शेष उनके जीवन के।
(लुइ ज़ेलिकॉफ के अंग्रेजी अनुवाद से )
***
मेरा बड़ा भाई बारह साल पहले मर गया….
मेरा
बड़ा भाई बारह साल पहले मर गया
स्टालिनग्राद
के युद्ध के मैदान में।
किन्तु
मेरी वृद्ध माँ अब भी सहेजे है अपना शोक
और घर
में फिरती है विलाप के कपड़ों में।
मेरे
लिए है पीड़ा और कड़वाहट
यह जानने
में कि अब मैं हूँ अब उससे अधिक उम्र का।
(पीटर टेम्पेस्ट के अंग्रेजी अनुवाद से)
***
मित्रता
तुम
जी चुके हो लम्बा जीवन,
अब भी
संतुष्ट
बचाने
को तुम्हें जीवन के झंझावातों से
तुम
नाम नहीं ले सकते एक भी मित्र का
जिसके
लिए गर्माहट हो तुम्हारे एकाकी ह्रदय में।
जब गुजर
चुके होंगे वर्ष और तुम हो गए होगे वृद्ध
लोग
मुड़ेंगे और कहेंगे :
“यहाँ
रहता था एक व्यक्ति, एक शताब्दी पुराना, बेचारा
जो कभी
नहीं जिया एक दिन के लिए भी।”
(पीटर टेम्पेस्ट के अंग्रेजी अनुवाद से)
***
बंद करो डींगें मारना समय….
बंद
करो डींगें मारना, समय कि मनुष्य और कुछ नहीं बस हैं तुम्हारी परछाइयां,
कि उनका
समस्त वैभव प्रतिबिंबित करता है तुम्हारे वैभव को।
“ये
लोग जो उधार देते हैं अपना यश अपने युगों को,
ये मनुष्य
जगमग कर देते हैं समय को अपनी प्रसिद्धि से।
आभारी
रहो कवि के, विचारक़ों के, नायकों के
जो डालते
हैं हम पर आत्मा और मस्तिष्क का प्रकाश।
किसी
युग की सर्वकालिक प्रतिभा
प्रस्फुटित
होती है मानवता की मशालों से।
(लुइ ज़ेलिकॉफ के अंग्रेजी अनुवाद से )
***
हैं तीन गीत
हैं
तीन गीत जो भर देते हैं रोमांच से मनुष्य का वक्ष
तीन
गीत आप्लावित मनुष्य के शोक और आनंद से।
उनमें
से एक है औरों से अधिक ख़ुशियाँ लिए हुए-
गीत
जो गाती है माँ पालने के पास बैठी।
दूसरा
भी गाया जाता है माँ द्वारा ही –
दुलारते
शीतल गालों को विलाप करती उँगलियों से,
वह गाती
है इसे पुत्र की कब्र के पास।
तीसरा
गीत गाया जाता है अन्य तमाम गायकों द्वारा।
(लुइ ज़ेलिकॉफ के अंग्रेजी अनुवाद से )
***
मैं स्वीकार करता हूँ : मैं सोचता हूँ
कभी कभी
मैं
स्वीकार करता हूँ : मैं सोचता हूँ कभी कभी,
जैसे
कि पुनर्जीवित हो गए हम तुम्हारे साथ
प्राचीन
कहानियों से, जिनमें नायक
दंडित
किए जाते रहे हैं प्रेम में मर जाने को।
प्रेम
कसा हुआ अपने जाल में
जलता
है प्रेम करने वालों की अग्नि से
प्रिय
हंस रहता नहीं जीवित अधिक समय तक
मात्र
घृणित कौए ही जीते हैं तीन शताब्दियों तक।
वृद्ध
होना नहीं है नियति में हंस की,
किंतु
वह प्रेम में जीता है अपना संक्षिप्त जीवन
और विलाप
करता है हंस गीत में
वह है
कुछ और प्रसन्न कि कौए हैं अब भी दूर।
दी गयी
हैं कम से कम तीन शताब्दियाँ कौवों को
जीने
को इस दुनिया में लुत्फ़ लेते हुए शवों का।
(यूरी स्टोरोस्टिन के अनुवाद से)
***
श्रीविलास सिंह समकालीन हिन्दी कवि एवं कहानीकार हैं। आपने विश्वकविता से बहुत महत्वपूर्ण अनुवाद हिन्दी में सम्भव किए हैं। हमेें रूसी कवि रसूल हम्ज़ातोव की दस कविताएं मिली हैं। कवि की कविताएं हम तक पहुँचाने के लिए हम आपके आभारी हैं।
-अनुनाद