अनुनाद

अनुनाद

वीरेन डंगवाल – नागपुर के रस्‍ते

वीरेन डंगवाल मेरे पसंदीदा कवि हैं। उनकी “नागपुर के रस्ते ” यहां पेश है। मेरी पैदायिश भी इसी शहर की है, इसलिये भी ये मेरे दिल के करीब है और मुझे वापस उसी लैंडस्केप में ले जाती है…… 

नागपुर के रस्ते

1

गाडी खडी थी
चल रहा था प्लेटफार्म
गन गनाता बसंत कहीँ पास ही मे था शायद
उसकी दुहाई देती एक श्यामला हरी धोती में
कटि से झूम कर टिकाए बिक्री से बच रहे संतरों का टोकरा
पैसे गिनती सखियों से उल्लसित बतकही भी करती
वह शकुंतला
चलती चली जाती थी खड़े खड़े
चलते हुए प्लेटफार्म पर
तकती पल भर
खिड़की पर बैठे मुझको

2

सुबह कोई गाड़ी हो तो बहुत अच्छा
रात कोई गाड़ी हो तो बहुत अच्छा
चांद कोई गाड़ी हो तो सबसे अच्छा

सुबह कोई गाड़ी होती तो मैं शाम तक पहुंच जाता
रात कोई गाड़ी होती तो मैं सुबह तक पहुंच जाता

चांद कोई गाड़ी होती तो मैं उसकी खिड़की पर ठंडे ठंडे
बैठा देखता अपनी प्यारी पृथ्वी को
कहीँ न कहीँ तो पहुंच ही जाता।
***

0 thoughts on “वीरेन डंगवाल – नागपुर के रस्‍ते”

  1. विरेंद्र डंगवाल मेरे भी प्रिय कवि हैं। उनकी ये कविताएं मैंने नहीं पढ़ी थीं। क्या ही अच्छा हो, अगर आप इसके टेक्स्ट का फौंट साइज थोड़ा बढ़ा दें। पढ़ने में और आसानी होगी।

Leave a Reply to आशुतोष उपाध्याय Cancel Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top