प्रेम की स्मृतियाँ
१ – छवि
हम कल्पना नहीं कर सकते
कि कैसे हम जियेंगे एक दूसरे के बिना
ऐसा हमने कहा
और तब से हम रहते हैं इसी एक छवि के भीतर
दिन-ब-दिन
एक दूसरे से दूर , उस मकान से दूर
जहाँ हमने वो शब्द कहे
अब जैसे बेहोशी की दवा के असर में होता है
दरवाजों का बंद होना और खिड़कियों का खुलना
कोई दर्द नहीं
वह तो आता है बाद में ……
२- शर्तें और स्थितियाँ
हम उन बच्चों की तरह थे जो समुद्र से बाहर आना नहीं चाहते
इस तरह नीली रातें आयीं
और फिर काली
हम क्या वापस ला पाए अपने बाक़ी के जीवन के लिए
एक लपट भरा चेहरा?
जलती हुई झाडियों सा, जो ख़त्म नहीं कर सकेगा खुद को
अपने जीवन के अखीर तक
हमने अपने बीच एक अजीब सा बंदोबस्त किया
यदि तुम मेरे पास आती हो तो मैं आऊंगा तुम्हारे पास
अजीब सी शर्तें और स्थितियाँ –
यदि तुम भूल जाती हो मुझे तो मैं तुम्हें भूल जाऊंगा
अजीब से करार और प्यारी सी बातें
बुरी बातें तो हमे करनी थीं हमारे
बाक़ी के जीवन में !
३- वसीयत का खुलना
मैं अभी कमरे में हूँ
अब से दो दिन बाद मैं देखूँगा इसे
केवल बाहर से
तुम्हारे कमरे का वह बंद दरवाज़ा
जहाँ हमने सिर्फ एक दूसरे से प्यार किया
पूरी मनुष्यता से नहीं
और तब हम मुड़ जायेंगें नए जीवन की ओर
मृत्यु की सजग तैयारियों वाले विशिष्ट तौर तरीकों के बीच
जैसे कि बाइबल में मुड़ जाना दीवार की ओर
जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसके भी ऊपर जो इश्वर है
जिसने हमें दो आंख और पाँव दिए
उसी ने बनाया दो आत्माएं भी हमें
और वहाँ बहुत दूर
किसी दिन हम खोलेंगे इन दिनों को
जैसे कोई खोलता है वसीयत
मृत्यु के कई बरस बाद !
अनुवाद : शिरीष कुमार मौर्य
संवाद प्रकाशन से आयी पुस्तक ‘धरती जानती है’ से …….
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बड़े भाई ये मेरे बहुत काम आ रहा है। इसके लिए धन्यवाद।