शमशेर बहादुर सिंह की कविता Leave a Comment / By Anunad / June 2, 2008 शिला का ख़ून पीती थी शिला का ख़ून पीती थी वह जड़ जो कि पत्थर थी स्वयं सीढियां थी बादलों की झूलती टहनियों-सी और वह पक्का चबूतरा ढाल में चिकना : सुतल था आत्मा के कल्पतरु का ? ***
आभार आपका शमशेर बहादुर सिंह की रचना पेश करने का.