अनुनाद

मनमोहन की कविताएँ







शर्मनाक समय


कैसा शर्मनाक समय है
जीवित मित्र मिलता है
तो उससे ज़्यादा उसकी स्मृति
उपस्थित रहती है
और उस स्मृति के प्रति
बची खुची कृतज्ञता
या कभी कोई मिलता है
अपने साथ ख़ुद से लम्बी
अपनी आगामी छाया लिए !
***

उसकी थकान


यह उस स्त्री की थकान थी
कि वह हंस कर रह जाती थी
जबकि वे समझते थे
कि अंततः उसने उन्हें क्षमा कर दिया !
***

0 thoughts on “मनमोहन की कविताएँ”

  1. शिरिष भाई, मनमोहन जी की कविताओं को यदा-कदा पढ़ने का मौका मिला है और हर बार उन्होनें चौंकाया है।

  2. अच्छी कवितायें.अगर का थोड़ा-सा पर्चय भी होता तो ,खैर,
    शिरीष की नई तस्वीर अब उम्र का बयान कर -सी रही है.इसका भी अजब आनंद है.

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