
शरद आने को है आख़िरी फल पकता है
लोग चलते हैं उन सड़कों पर जिन पर वे पहले कभी नहीं चले
पुराना मक़ान शुरू कर देता है अपने किरायेदारों को माफ़ करना
उम्र के साथ गहरी रंगत वाले हो जाते हैं पेड़
और लोग सफ़ेद
लोग चलते हैं उन सड़कों पर जिन पर वे पहले कभी नहीं चले
पुराना मक़ान शुरू कर देता है अपने किरायेदारों को माफ़ करना
उम्र के साथ गहरी रंगत वाले हो जाते हैं पेड़
और लोग सफ़ेद
बारिश आयेगी तो ताज़ी हो जायेगी ज़ंग की गंध
और रुचिकर भी
जैसे वसंत में फूलों के खिलने पर होती है
उत्तरी देशों में वे कहते हैं अधिकांश पत्तियां अभी तक पेड़ों पर हैं
और यहां हम कहते हैं
अभी तक लोगों के पास हैं उनके अधिकांश शब्द
हालांकि हमारे ये झुरमुट खो देते हैं दूसरी तमाम चीज़ें
शरद आने को है
मेरे लिए अपने माता-पिता को याद करने का वक्त
मैं उन्हें अपने बचपन के साधारण खिलौनों की तरह याद करता हूं –
“छोटे-छोटे घेरों में चक्कर लगाते, ख़मोशी से होंठ हिलाते
एक पांव उठाते, एक बांह फैलाते
धीरे-धीरे मानो एक लय में अपने सिर को इधर से उधर घुमाते
एक स्प्रिंग उनके पेट में और पीठ पर एक चाबी
और अचानक ऐसे ही वे जड़ हो जाते हैं
थम जाते हैं अपनी आख़िरी मुद्रा में हमेशा के लिए”
ऐसे मैं अपने माता-पिता को याद करता हूं
और ऐसे ही वे थे !
और अचानक ऐसे ही वे जड़ हो जाते हैं
थम जाते हैं अपनी आख़िरी मुद्रा में हमेशा के लिए”
ऐसे मैं अपने माता-पिता को याद करता हूं
और ऐसे ही वे थे !
अच्छी कविता पोस्ट कराने के लिए धन्यवाद
अमीखाई हम सबके प्रिय और महान कवि हैं। उनकी इस सुंदर कविता का आत्मीय अनुवाद संभव हुआ है। बार-बार पढ्ना भी इसके प्रभाव को धूमिल नहीं करता। बधाई।- कुमार अंबुज