अनुनाद

सूचनाओं के संसार में

कुछ भी
पकड़ में नहीं आ रहा है

इधर घटनाओं को पकड़ नहीं पा रहा है
दिमाग़

हालांकि मिल रही हैं
उनके घटने की सूचनाएं भरपूर

दृश्यों को पकड़ नहीं पा रही है
आँख
कान आवाज़ को पकड़ नहीं पा रहे हैं
जीभ पकड़ नहीं पा रही है स्वाद

बहुत ऊंचे और सुन्दर हैं मकान
वन-उपवन पेड़ों से भरे
प्रकृति बहुत उदार

लेकिन धरती को पकड़ नहीं पा रहा है
बिना किसी सहारे
अधर में टंगा सूचनाओं का वितान

ढहने को हैं भव्यतम निर्माण

इधर कुछ भी पकड़ में नहीं आ रहा है

अपनी पूरी चमक-दमक के बावजूद
नमी और सीलन को
पकड़ नहीं पा रही है धूप

बहुत उथला और तात्कालिक है दुनिया का रूप

शब्द नहीं पकड़ पा रहे हैं
अर्थ को
तर्क को पकड़ नहीं पा रही है बात

समय तारीख़ों से बाहर है लोग समझ से

और हम बाहर हैं इस समूचे संसार से
जो लोगों से नहीं सूचनाओं से बना है

ग़ायब है हमारा चेहरा हर दृश्य से
हर तरफ़
हमारे न होने की सूचना है !

०००
2002

0 thoughts on “सूचनाओं के संसार में”

  1. ग़ायब है हमारा चेहरा हर दृश्य से
    हर तरफ़
    हमारे न होने की सूचना है !
    good compostion
    regards

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