अनुनाद

व्योमेश शुक्ल की तीन कविताएँ

व्योमेश शुक्ल की कविता से हिंदी जगत परिचित है। वे पहल, नया ज्ञानोदय, तद्भव, वागर्थ, कथाक्रम आदि में निरंतर दिखाई दिए हैं। 2008 के अंकुर मिश्र कविता पुरस्कार से पुरस्कृत इस कवि को आप पहले अनुनाद में भी पढ़ चुके हैं। प्रस्तुत हैं उनकी तीन और कविताएं, जिनमें से दो पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा तीसरी अप्रकाशित है। अनुनाद में यह मेरी ओर से समकालीन हिंदी कविता के नव्यतम स्वर को पहचानने की कोशिश है – बाक़ी आप बताएंगे ही !

चौदह भाई-बहन

झेंप से पहले परिचय की याद उसी दिन की
कुछ लोगों ने मुझसे पूछा तुम कितने भाई-बहन हो
मैंने कभी गिना नहीं था गिनने लगा
अन्नू दीदी मीनू दीदी भानू भैया नीतू दीदी
आशू भैया मानू भैया चीनू दीदी
बचानू गोल्डी सुग्गू मज्जन
पिंटू छोटू टोनी
तब इतने ही थे
मैं छोटा बोला चौदह
वे हंसे जाने गए ममेरों मौसेरों को सगा मानने की मेरी निर्दोष ग़लती

इस तरह मुझे बताई गई
मां के गर्भ पिता के वीर्य की अनिवार्यता
और सगेपन की रूढ़ि !

***


आर्क्रेस्टा


पतली गली है लोहे का सामान बनता है
बनाने वाले दृढ़ ताली निश्चित लय में ठोंकते हैं

हथौड़े की अंगुली
लोहे का ताल

धड़कनों की तरह आदत है समय को यह
समय का संगीत है
ठ क ठ क ठ क ठ क
या
ठकठक ठकठक ठकठक ठकठक

और भी लयें हैं सब लगातार हैं
लोगों को आदत है लयों का यह संश्लेष सुनने की
हम प्रत्येक को अलग-अलग पहचानते हैं
और साथ-साथ भी

एक दिन गली में लड़का पैदा हुआ है और
शहनाइयां बज रही हैं
पृष्ठभूमि में असंगत लोहे के कई ताल
एक बांसुरी बेचने वाला बजाता हुआ बांसुरी
गली में दाखिल है और
बांसुरी नहीं बिकी है शहनाई वाले से अब बात हो रही है
वह बातचीत संगीत के बारे में नहीं है पता नहीं किस बारे में है
एक प्राइवेट स्कूल का 500 प्रतिमाह पाने वाला तबला अध्यापक
इस दृश्य को दूर से देख रहा है !

***


रविवार

अप्रत्याशित जगह पर दिख जाए जब छोटी-सी धूप
दुकानें जिस दिन बंद रहें अपने आराम में
चिडियाएँ जमकर आवाज़ करती हैं
सब्जीवाले लगभग चुनौती देते हुए पुकारें ग्राहकों को
हमारी व्यर्थताओं का भी उचित मूल्य देता है विनम्र कबाड़ी
कूड़ा उठाने वाला गुंडे की मस्ती में
हम थोड़े-से पीर फ़कीर
घर अब एक मज़ार
शांति इतनी कि समाधि का एहसास
हफ्ते भर थके हुओं के शरीर में
बुद्ध ईसा मुहम्मद का वास !

*** 

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