अनुनाद

हस्तक्षेप – श्रीकांत वर्मा

(चित्र राजकमल द्वारा प्रकाशित ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ से साभार)

कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए
मगध को बनाए रखना है तो
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए

मगध है, तो शांति है
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए

मगध में न रही
तो कहां रहेगी ?

क्या कहेंगे लोग ?

लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है
रहने को नहीं

कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज़ न बन जाए

एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप –

वैसे तो मगधनिवासियों
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से –

जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है –
मनुष्य क्यों मरता हो?


(`मगध´ संग्रह से)

0 thoughts on “हस्तक्षेप – श्रीकांत वर्मा”

  1. अच्छी कविता ! लेख अधिक लम्बा हो गया था और मैं हिंदी की दुनिया के बारे में अधिक जानती भी नहीं। श्रीकांत वर्मा की कविता बहुत अच्छी है।

  2. lekh lamba ho gaya tha, ye shikayat nahi balki aapko itna lamba type karne ke liye badhai….us par tippani karna chahta tha par magadh mein in dinon aisa riwaj nahi hai…Magadh mein kuchh namon ko authority ke saath pesgh kiya jaana purana silsila hai jo ab naye kandho.n par aa gaya lagta hai

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